रायपुर. मंगला गौरी का व्रत श्रावण मास के प्रति मंगलवार को किया जाता है. यह व्रत माता पार्वती यानी गौरी को समर्पित है. अविवाहित महिलाओं के मंगला गौरी व्रत करने से विवाह में आ रही रुकावटें दूर हो जाती हैं. इससे सुहागिनों को अखंड सौभाग्य की प्राप्ति भी होती है. युवतियों और महिलाओं की कुंडली में वैवाहिक जीवन में कमी होती है या शादी के बाद पति से अलग होने या तलाक हो जाने जैसे अशुभ योग निर्मित हो रहे हो तो उन महिलाओं के लिए मंगला गौरी व्रत विशेष रूप से फलदायी है.

पुराणों के अनुसार, भगवान शिव-पार्वती को श्रावण माह अति प्रिय है. यह व्रत श्रावण माह के मंगलवार को ही किया जाता है. इसलिए इसे मंगला गौरी कहा जाता है. मंगला गौरी पूजन की आवश्यक सामग्री : गौरी पूजन में सुहाग के समान और 16-16 वस्तुओं का बहुत महत्व है.

आवश्यक सामग्री –

1. चौकी/पाटा/बाजोट, जो भी उपलब्ध हो, पुजा के लिए रख लें.

2. सफेद व लाल कपड़ा व कलश.

3. गेंहू व चावल.

4. आटे का चौ-मुखी दीपक, अगरबत्ती, धुपबत्ती, कपूर, माचिस.

5. 16-16 तार की चार बत्ती.

6. साफ व पवित्र मिट्टी, माता गौरा की प्रतिमा बनाने के लिए.

7. अभिषेक के लिए साफ जल, दूध, पंचामृत (दूध, दही, शहद, घी, शक्कर का मिश्रण).

8. माता गौरा के लिए वस्त्र.

9. पूजा सामग्री-मौली, रोली (कुमकुम), चावल, अबीर, गुलाल, हल्दी, मेहंदी, काजल, सिंदूर.

10. 16 तरह के फूल, माला, पत्ते आटे के लड्डू, फल.

11. पंचमेवा, 7 तरह के अनाज.

12. 16 पान, सुपारी, लोंग.

13. 1 सुहाग पिटारी. (जिसमें सिंदूर, बिंदी, नथ, काजल, मेहंदी, हल्दी, कंघा, तेल, शीशा, 16 चूड़ियां, बिछिया, पायल, नैलपॉलिश, लिपस्टिक, बालों की पिन, चूनरी आदि शामिल हों).

14. इच्छानुसार नैवेद्य/प्रसाद.

व्रत और पूजा विधि

मंगलवार को सुबह जल्दी उठकर नहाएं और भगवान शिव-पार्वती की पूजा करें.

इसके बाद सौभाग्य और समृद्धि के लिए मंगला गौरी व्रत करने का संकल्प लें.

फिर मां मंगला गौरी यानी पार्वतीजी की मूर्ति स्थापित करें. मूर्ति को लाल कपड़े पर रखना चाहिए.

मां गौरी की पूजा करने के बाद उनको 16 मालाएं, लौंग, सुपारी, इलायची, फल, पान, लड्डू, सुहाग की सामग्री, 16 चूड़ियां और मिठाई चढ़ाई जाती है.

पूजा में चढ़ाई गई सभी चीजें सोलह की संख्या में होनी चाहिए.

इसके अलावा 5 तरह के सूखे मेवे, 7 प्रकार के अनाज-धान्य (जिसमें गेहूं, उड़द, मूंग, चना, जौ, चावल और मसूर) आदि होना चाहिए.

पूजा में आटे से बना दीपक घी जलाएं। पूजा, आरती करें. पूजा के बाद मंगला गौरी की कथा सुननी चाहिए.

पांच साल तक मंगला गौरी पूजन करने के बाद पांचवें साल सावन के आखिरी मंगलवार को इस व्रत का उद्यापन किया जाता है. पूरी श्रद्धा से मां का व्रत और पूजन करने पर मनोरथ जरूर पूर्ण होते हैं.