अनिल सिंह कुशवाह, भोपाल। बीजेपी और आरएसएस पर अपने तीखे बयानों के तीर छोड़ने वाले दिग्विजय सिंह ‘मौलाना दिग्विजय’ घोषित कर दिए गए थे ! लेकिन, क्या माँ नर्मदा की 3300 किलोमीटर कठिन पैदल यात्रा कर वह अब ‘संत’ और सनातन जनों के भी प्रिय हो गए है ? सवाल इसलिए यक्ष है, क्योंकि दिग्विजय सिंह की नर्मदा परिक्रमा अब कुछ ही दिनों में पूरी होने वाली है। दिग्विजय सिंह मध्य प्रदेश विधानसभा की 114 सीटों को भी नाप कर लौट रहे हैं ! खालिस राजनीति के खिलाड़ी रहे पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह के पास मध्यप्रदेश में कांग्रेस का वनवास खत्म करने कोई ‘रोडमैप’ जरूर होगा।

मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने भी नर्मदा यात्रा की थी, लेकिन पूरी शान-ओ-शौकत और हेलीकॉप्टर से। वजह भले ही माँ नर्मदा नदी को प्रदूषण मुक्त करना बताई गई। लेकिन, लक्ष्य मध्य प्रदेश विधानसभा की 230 में से इन 114 सीटों पर ही था। तो क्या दिग्विजय सिंह ने 6 महीने पहले ही बीजेपी का कोई गणित बिगाड़ा है ? कहा जाता है, मध्य प्रदेश में कांग्रेस के सक्रिय कार्यकर्ताओं और जिताऊ उम्मीदवारों की सूची अगर किसी की जेब में है तो वह सिर्फ दिग्विजय सिंह ही हैं। यही कारण है, बीजेपी का चुनाव कैम्पेन मध्य प्रदेश में हर बार उन्हें रोकने पर ही रहा। शायद इसलिए, मनोवैज्ञानिक तरीके से ‘श्रीमान बंटाधार’ जैसे स्लोगन उछाल दिए जाते हैं। लेकिन, साढ़े 14 साल की खामियों को कब तक ’10 साल’ की याद दिलाकर छिपाया जा सकता है ? जबकि, बिजली-सड़कों को लेकर अधिकांश उन्हीं प्लान पर बीजेपी सरकार काम कर रही है, जो दिग्विजय शासन में बनाए गए थे। दिल्ली की एनडीए सरकार यदि आर्थिक सहायता देने में उदारता दिखाती तो शायद स्थितियां कुछ और होती।

खैर, सवाल यहां यह भी है कि क्या चुनावों में कांग्रेस की गुटबाजी का लाभ बीजेपी अब तक लेती आई है ? दिग्विजय सिंह के ‘नर्मदा तप’ के दौरान कांग्रेस नेताओं के नजदीक आने से क्या कार्यकर्ताओं में अब ‘डबरा सम्मेलन’ जैसी एकजुटता का कोई संदेश गया है ? कमलनाथ और ज्योतिरादित्य सिंधिया भी दिग्विजय सिंह की इस यात्रा में शामिल होने पहुंचे थे। इन कांग्रेस नेताओं के एक साथ आने से कांग्रेस की ताकत बढ़ेगी। क्योंकि, गुटबाजी के चलते इन सभी दिग्गज नेताओं के कार्यकर्ता अलग-अलग काम करते हैं। जिससे असर भी कम होता है। अगर ये नेता एक होते हैं तो इनके कार्यकर्ता भी एकजुट होकर काम करेंगे, जो मध्यप्रदेश में कांग्रेस का वनवास खत्म करने में काफी हद तक मदद कर सकते हैं।

खैर, दिग्विजय सिंह राजनीतिक छुट्टी लेकर पिछले 6 महीने से नर्मदा परिक्रमा कर रहे हैं। इसे भले ही गैर राजनीतिक बताया गया हो, मगर यह कैसे संभव हो सकता है कि दिग्विजय सिंह जैसा धुर राजनीतिज्ञ छह माह तक गैर राजनीतिक रहे। हो सकता है, इन 114 सीटों पर कार्यकर्ताओं का मनोबल बढ़ा दिया हो। नर्मदा परिक्रमा के दौरान दिग्विजय कभी नदी के कीचड़ से गुजरे तो कभी बोरी बांध बनाकर कार्यकर्ताओं ने उनको नदी पार कराया, तो भाई और भतीजे के झांझ मजीरे बजाने के दृश्य ने हर किसी को रोमांचित किया। साधू-संतों और पुजारियों ने मंदिर-आश्रमों में आने-ठहरने के आमंत्रण दिए। आज भी भारतीय समाज में ‘त्याग’ को पूजा जाता है।

बैसे दिग्विजय सिंह राजनीति से दूर रह कर भी क्या कर सकते हैं, यह बीजेपी के रणनीतिकार हाल के निकाय चुनाव में देख चुके हैं। ‘दिग्गी राजा’ की गैरमौजूदगी में भी उनके राघौगढ़ को जीतने का सपना बीजेपी के लिए सपना ही रह गया। सत्ता और संगठन ने पूरी ताकत झौंक दी थी, छोटे चुनाव होने के बावजूद मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने खुद को थकाने तक की कई सभाएं और रोड शो कर डाले। लेकिन, दिग्विजय ने सिर्फ एक चिट्ठी भेजकर बाजी पलट दी।

दिग्विजय सिंह 2003 में 10 साल राजनीतिक सन्यास पर भी रह चुके हैं। इस दौरान न कोई चुनाव लड़ा और न ही संगठन में पद लिया। बावजूद इसके, सबसे चर्चित नेता रहे। नहीं तो, नेता इसलिए पद नहीं छोड़ते, क्योंकि कार्यकर्ता भूल जाया करते हैं। लेकिन, दिग्विजय सिंह राजनीति में इसके अपवाद हैं। 10 सालों में न केवल अपना करिश्मा बनाये रखा, बल्कि प्रदेश की सियासत से निकल राष्ट्रीय राजनीति के फ़लक पर चर्चित चेहरा बन गए।

बहरहाल, प्रसंग अभी दिग्विजय सिंह के 6 अप्रैल के बाद नर्मदा परिक्रमा से लौटने और करवट ले सकती राजनीति का है। पुराणों में ऐसा वर्णित है कि श्रद्घा शक्ति और सच्चे मन से माँ नर्मदा की परिक्रमा करने और जल अर्चन से सारी मनोकामना पूरी होती हैं। तो दिग्विजय सिंह माँ नर्मदा से क्या फल लेकर लौट रहे हैं ? छह महीने बाद मध्य प्रदेश में विधानसभा चुनाव और इसके बाद लोकसभा के चुनाव होना हैं। इन चुनावों में दिग्विजय सिंह की भूमिका क्या रहती है, और उनके पास क्या कोई रोडमैप है ? परिक्रमा में पत्नी अमृता सिंह (राय) भी साथ हैं, क्या वह भी सियासी पन्नों पर अपने लिए कोई इबारत लिखेंगी ?