शब्बीर अहमद, भोपाल। दिल्ली में नेशनल हेराल्ड (National Herald) के दफ्तर को प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने सील कर दिया है। भोपाल में भी नेशनल हेराल्ड की प्रॉपर्टी (National Herald property to be sealed in Bhopal) सील होगी। नेशनल हेराल्ड बिल्डिंग का कमर्शियल यूज करने वालों की भी जांच की जाएगी। जांच करने के बाद प्रॉपर्टी सील की जाएगी। वहीं प्रॉपर्टी के लैंड यूज में बदलाव करने वाले अधिकारियों पर भी कार्रवाई होगी। ये जानकारी मध्यप्रदेश के नगरीय प्रशासन मंत्री भूपेंद्र सिंह (Urban Administration Minister Bhupendra Singh) ने दी है।
मंत्री भूपेंद्र सिंह ने कहा कि भोपाल में भी नेशनल हेराल्ड की प्रॉपर्टी सील होगी। नेशनल हेराल्ड बिल्डिंग का जिसने भी कमर्शियल यूज किया है, इसकी जांच कराएंगे। जांच कराने के बाद में प्रॉपर्टी सील की जाएगी। जिन अधिकारियों ने प्रॉपर्टी का लैंड यूज बदलाव किया है। उनपर भी कार्रवाई होगी। जिन लोगों ने भी स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों के नाम पर जगह ली उसके बाद संपत्ति अपने नाम पर करा ली उनके खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जाएगी। नेशनल हेराल्ड के दफ्तर में अभी विशाल मेगा मार्ट सहित कई कमर्शियल दफ्तर चल रहे हैं।
मंत्री भूपेंद्र सिंह ने कहा कि जैसे दिल्ली का नेशनल हेराल्ड का मामला है। वहां प्रॉपर्टी सोनिया गांधी राहुल गांधी ने अपने नाम पर करा ली। जबकि 3000 स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों के नाम पर वो जगह दी गई थी। कांग्रेस ने स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों को भी नहीं छोड़ा। लिहाजा सुप्रीम कोर्ट से ना कोई राहत नहीं मिली है। ये लोग जमानत पर छूटे हुए लोग हैं।
ये है इतिहास भोपाल के नेशनल हेराल्ड की बिल्डिंग की
- राजधानी भोपाल के एमपी नगर प्रेस कॉम्पलेक्स इलाके में नेशनल हेराल्ड को साल 1981 में 1.14 एकड़ आकार का प्लॉट सरकार ने रियायती दरों पर दिया गया था।
- यह प्लॉट 30 साल की लीज पर दिया गया था और भोपाल विकास प्राधिकरण के मुताबिक उस समय इस जमीन का मूल्य करीब 1 लाख रुपए/एकड़ था।
- यहां प्रिंटिंग प्रेस बनाकर नवजीवन समाचार पत्र का प्रकाशन भी शुरु किया गया, लेकिन 1992 में इसका प्रकाशन बंद हो गया।
- 2011 में जब लीज खत्म होने पर भोपाल विकास प्राधिकरण यहां अपना मालिकाना हक लेने पहुंचा तो पाया गया कि यहां प्लॉट पर बड़ा व्यवसायिक कॉम्प्लेक्स बन गया है जहां कई शोरूम खुल गए हैं।
- प्रेस को दिए गए प्लॉट पर व्यवसायिक कॉम्प्लेक्स बनने का पता चलने के बाद भोपाल विकास प्राधिकरण ने इसे अपने कब्जे में लेने की कार्रवाई शुरु की लेकिन इसी बीच कई खरीददार सामने आ गए और मामला अदालत में पहुंचने से कार्रवाई अटक गई थी।
- 2012 में भोपाल विकास प्राधिकरण ने इस प्लॉट की लीज को रद्द कर दिया है लेकिन तब से लेकर अब तक इस प्लॉट के अलग-अलग खरीददार और भोपाल विकास प्राधिकरण के बीच मालिकाना हक को लेकर मामला कोर्ट में विचाराधीन है।
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