फीचर स्टोरी. छत्तीसगढ़ में कई विशेष पिछड़ी जनजातियां हैं. इनमें से एक है बैगा जनजाति. बैगा जनजातियों की आबादी प्रदेश में बहुत कम है. यह जनजाति मुख्य रूप से कवर्धा जिले में निवास करती है. हालांकि मुंगेली, छुईखदान के हिस्सों में बैगाओं की बस्तियाँ है. बैगा जनजाति शिक्षा के क्षेत्र में बहुत पिछड़ी रही है, लेकिन सरकारी अथक प्रयासों से अब बैगाओं को अच्छी शिक्षा के साथ ही रोजगार भी मिल रहा है.

बैगाओं को समाज की मुख्यधारा से जोड़ने मौजूदा कांग्रेस सरकार कई योजनाओं के साथ काम कर रही है. शिक्षा और रोजगार के साथ ही बैगाओं को सामुदायिक वन का अधिकार भी सरकार दे रही है. वन पट्टा सहित कई सौगातें बैगाओं को बीते साढ़े तीन साल में भूपेश सरकार ने दी है.

सरकारी रिपोर्ट की मुताबिक कवर्धा जिले में 263 बैगा जनजातियों के गांव या बसाहट का चिन्हांकन किया गया है. सर्वाधिक गांव बोडला विकाखसण्ड में है. बोडला विकासखण्ड में विशेष पिछड़ी बैगा जनजाति गांव 183 और पंडरिया विकासखण्ड में 75 आबादी गांव है. हालांकि इसके अलावा प्रदेश के अन्य राजनांदगावं, कोरिया, मुंगेली, बिलासपुर और नवीनतम जिला खैरागढ़, गौरेला पेंड्रा-मरवाही के वनांचल क्षेत्रों में यह जनजाति निवास करती है. चिन्हित गांवों में सरकार अपनी विभिन्न योजनाओं को पहुँचाने की कोशिश कर रही है. इसके साथ ही सरकार की बैगाओं की भाषा और संस्कृति को संरक्षित भी किया जा रहा है.

बैगाओं को जड़ी-बुटी या कहिए कि वन औषधि का भी पूर्ण ज्ञान होता है. लिहाजा सरकार बैगाओं की प्राचीन विद्या या कहिए चिकित्सा पद्धति को भी सहेजने में जुटी हुई है. सरकार की ओर से बैगाओं के आयुर्वेद के खजाने को और विकसित करने और प्रोत्साहित करने के लिए भी प्रयास किया गया और किया जा रहा है. सरकारी रिपोर्ट्स के मुताबिक बैगा जनजाति के बच्चों को उनकी भाषा में शिक्षा देने का अभिनव प्रयास किया गया है. बैगाओं की बैगानी भाषा में किताबें प्रकाशित की गई है. इससे बैगा जनजाति की नई पीढ़ियों को शिक्षा से जोड़ने में और मदद भी मिल रही है. राज्य शासन के राज्य शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद छत्तीसगढ़ ने इस किताब को तैयार किया है. वहीं अब जल्द ही बैगा-बोली भाषा में पहाड़ा और बारहखड़ी भी प्रकाशित होने वाली. इस दिशा में राज्य शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद ने अपना काम भी शुरू कर दिया है.

बैगाओं की भाषा-संस्कृति, मौखिक साहित्य को समाज और देश-दुनिया के बीच लाने के लिए कई कार्यक्रमों का आयोजन भी किया जा रहा है. बीते दिनों कवर्धा में विशेष पिछड़ी जनजाति ( बैगा, कमार, पहाड़ी कोरबा, बिरहोर, अबूझमाड़िया ) के लिए एक महोत्सव का आयोजन किया गया था.

भूपेश सरकार की योजनाओं का समाज पर व्यापक असर : ईतवारी बैगा

बैगा समाज के ईतवारी बैगा कहते हैं कि सरकार की ओर से चलाई जा रही कल्याणकारी योजनाओं ने बैगाओं को काफी हद प्रभावित किया है. बैगाओं के जीवन में अब व्यापक परिवर्तन दिखाई दे रहा है. मैं सरकार के प्रयासों को जमीन पर साकार होते देख रहा हूँ. राज्य सरकार की नीति से समाज के पढे लिखे-युवक-युवतियों को स्थानीय स्तर पर शाला संगवारी, मितानिन कार्यकर्ता, आंगनबाड़ी कार्यकर्ता, सहायिका, सहित जिला स्तर पर सीधी भर्ती में प्राथमिकता देने से समाज के लोगों में शिक्षा के प्रति चेतना आई है. शिक्षा के महत्व को समझने लगे है. शिक्षा, स्वास्थ्य और स्वच्छता के प्रति आई जागरूकता से जीवन शैली में सकारात्मक बदलाव भी देखी जा रही है. समाज का मानना है कि शिक्षा ही सभी समस्याओं का हल है, और यही शिक्षा ही बेहतर कल देने की हमारी मदद करेगी.

उनका यह भी मानना है कि संचालनालय आदिम जाति अनुसंधान एवं प्रशिक्षण संस्थान, छत्तीसगढ़ शासन द्वारा राष्ट्रीय जनजाति साहित्य महोत्सव में छत्तीसगढ़ राज्य के विशेष संरक्षित जनजातियों के समाज प्रमुखों एवं बैगा समाज की कला, साहित्य, हुनर को संरक्षण, संवर्धन करने के लिए अवसर दिया गया.

शिक्षा के क्षेत्र में सराहनीय प्रयास

सरकार की ओर से बैगाओं के साथ ही विशेष पिछड़ी जनजातियों के लिए अभिकरण का गठन भी किया गया है. अभिकरण के माध्यम से जनजातियों की रहन-सहन,बोली-भाषा, वेश-भूषा, कला,संस्कृति और उनके रीति-रिवाजों को मूलस्वरूप में बनाए रखने के लिए काम किया जा रहा है. वहीं बैगा जनजातियों के बच्चों को लिए कबीरधाम जिले के पंडरिया विकासखण्ड के ग्राम पोलमी में बालक और बालिका के आवासीय विद्यालय संचालित है. यहां कक्षा पहली से दसवीं तक कक्षा संचालित है. इसके साथ ही बालक और बालिका के लिए सौ-सौ सीट निर्धारित है. इसी प्रकार बोडला विकासखण्ड के ग्राम चौरा में आवासीय विद्यालय खोली गई है. कवर्धा में बैगा बालक छात्रावास संचालित है. पंडरिया विकासखण्ड के ग्राम कुकदूर में लगभग 14 करोड़ 50 लाख रूपए की लागत से राज्य शासन द्वारा विशेष पिछडी बैगा जनजाति के पोस्ट मैट्रिक विद्यार्थियों के लिए छात्रावास तैयार किया जा रहा है. इस छात्रावास में बालक और बालिका के लिए 250 सीट अलग-अलग निर्धारित है.

शिक्षित बैगाओं को सीधा रोजगार

यही नहीं प्रदेश का कबीरधाम ऐसा पहला जिला है, जहां बैगा समाज के पढे-लिखें 117 शिक्षित युवक-युवतियों को शाला संगवारी के रूप में चयन कर रोजगार से जोड़ा गया है. राज्य सरकार की नीति के परिणाम है कि आज बैगा समाज के युवक-युवतियां स्कूलों में बच्चों को पढ़ा रही है. शाला संगवारी बनने वाले बैगाओं का मानना है कि राज्य सरकार की ओर से जो सुविधाएं उन्हें दी जा रही है, जो शिक्षा उन्हें दी जा रही है, जिस तरह से उन्हें रोजगार से जोड़ा जा रहा है उससे जीवन स्तर में काफी बदलाव आया है. वहीं वनोपज संग्रहण की नीतियां भी कारगर साबित हुई है.

नीतियो का सकारात्मक परिणाम

दरअसल राज्य में मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की मंशा के अनुरूप प्रदेश के वनवासियों के हित को ध्यान में रखते हुए समर्थन मूल्य पर 61 लघु वनोपजों की खरीदी की जा रही है. इस तरह छत्तीसगढ़ में लगभग तीन वर्ष में समर्थन मूल्य पर खरीदी के लिए लघु वनोपजों की संख्या 7 से बढ़ाकर 61 कर दी गई है. तेन्दूपत्ता संग्रहण पारिश्रमिक दर 25 सौ रूपए से बढ़ाकर सीधे 4 हजार रूपए कर दिया गया है. प्रदेश भर में 856 हाट-बाजारों में लघु वनोपज की खरीदी की नई व्यवस्था देने से प्रदेश के किसानों से लेकर वनो में निवारत लाखों वनवासियों को इसका सीधा लाभ मिल रहा है. छत्तीसगढ़ सरकार द्वारा तेंदूपत्ता संग्राहकों को समाजिक सुरक्षा का लाभ देने के लिए सहित शहीद महेन्द्र कर्मा तेंदूपत्ता संग्राहक समाजिक सुरक्षा योजना बनाई गई है. पूरे प्रदेश में इस योजना के तहत तेंदूपत्ता संग्राहक में लगे हुए लगभग 12 लाख 50 हजार संग्राहक परिवारो को समाजिक सुरक्षा का लाभ मिलेगा.

सम्मान के साथ हक और अधिकार

यही नहीं वनवासियों को वन भूमि का अधिकार पट्टा देने के मामले में छत्तीसगढ़ देश का अग्रणी राज्य है. अब तक राज्य में 4 लाख 54 हजार से अधिक व्यक्तिगत वनाधिकार पत्र, 45,847 सामुदायिक वन तथा 3731 ग्रामसभाओं को सामुदायिक वन संसाधन अधिकार पत्र वितरित कर 38 लाख 85 हजार हेक्टेयर से अधिक की भूमि आवंटित की गई है.