फीचर स्टोरी. छत्तीसगढ़ में आदिम संस्कृति-सभ्यता और भरपूर खनिज संपदा के आधार स्तंभ हैं आदिवासी. आदिवासियों ने अपनी पारंपरिक रीति-रिवाजों और संस्कृतियों के साथ जल-जंगल-जमीन को न सिर्फ बचाकर रखा है, बल्कि अपने विस्थापन के साथ ही विकास को गति देने का काम भी किया है.
आदिवासियों ने हमेशा समाज को सब कुछ देने का काम किया है. आजादी के आंदोलनों में अग्रणी भूमिका आदिवासियों की रही है. छत्तीसगढ़ भी आदिवासियों के स्वतंत्रता संग्रामों का गवाह रहा है. एक गौरवशाली इतिहास राज्य में आदिवासियों की है, लेकिन आदिवासियों का अतीत जितना सुनहरा है, उनता ही संघर्षमय और कष्टमय भी रहा है. आदिवासियों को सबने समय के साथ छलने का काम किया, लेकिन समय कब तक निष्ठुर रहता है. समय बदला और समय के साथ बदली आदिवासियों की जिंदगी.
राज्य में ‘वक्त है बदलाव का’ नारे के साथ सत्ता में आई कांग्रेस पार्टी में भूपेश बघेल की सरकार बनी. सरकार बनते ही आदिवासियों के जीवन में भी बदलाव का सिलसिला शुरू हुआ. परिवर्तन किस रूप में हुआ इसे इस रिपोर्ट में जानने की कोशिश करेंगे. वैसे बदलावों को जमीन पर जाकर देखा भी सकता है.
सन् 2018 में छत्तीसगढ़ में सत्ता का परिवर्तन हुआ. भाजपा का शासन खत्म हुआ और कांग्रेस की सरकार बनी. रमन सिंह के बाद भूपेश बघेल राज्य के मुख्यमंत्री बने. मुख्यमंत्री बनने के साथ ही भूपेश बघेल के सामने चुनौती आदिवासियों से जो वादा किया गया था उसे पूरा करने की थी. मुख्यमंत्री ने तत्काल इस पर निर्णय लिया है. आदिवासियों की बड़ी मांग लोहण्डीगुड़ा में जमीन वापसी के साथ पूरी हुई है. बस्तर से आदिवासियों के जीवन में परिवर्तन लाने का जो सिलसिला शुरू हुआ फिर वह रुका ही नहीं. बस्तर से लेकर सरगुजा तक भूपेश सरकार ने साढ़े तीन साल में आदिवासियों के न सिर्फ जीवन स्तर को ऊँचा उठाया, बल्कि आदिवासियों की भाषा-संस्कृति, रीति-रिवाज, परंपरा को संरक्षित करने के साथ उसे अंतर्राष्ट्रीय महोत्सव के रूप में दुनियाभर तक पहुँचाया है.
आदिवासियों के हित में लिए गए निर्णय-
बस्तर अंचल के लोहांडीगुड़ा के 1707 किसानों की 4200 हेक्टेयर जमीन वापस लौटाई. दरअसल एक निजी इस्पात संयंत्र के लिए किसानों की जमीनें अधिगृहित की गई थी, लेकिन कारखाना स्थापित नहीं हो पाया है. सरकार ने वादा किया था कि किसानों को उनके हक की जमीन वापस दी जाएगी. सरकार ने आदिवासी किसानों से किया वादा पूरा किया.
वहीं बस्तर संभाग के जिलों में नारंगी वन क्षेत्र में से 30 हजार 429 हेक्टेयर भूमि राजस्व मद में वापस दर्ज की गई है. इससे बस्तर अंचल में कृषि, उद्योग, अधोसंरचना के निर्माण के लिए भूमि उपलब्ध हो सकेगी.
इसी तरह से अबूझमाड़ के आदिवासियों को मुख्यधारा से जोड़ने सरकार की ओर से तेजी काम किया जा रहा है. आजादी के बाद पहली बार अबूझमाड़ क्षेत्र के 2500 किसानों को मसाहती पट्टा प्रदान किया गया है. अबूझमाड़ के 18 गांवों का सर्वे पूरा कर लिया गया है, दो गांवों का सर्वे जारी है.
सरकार आदिवासियों को वन पट्टा देने के मामले में सफल रही है. सरकार ने आदिवासियों के हित में कई महत्वपूर्ण फैसले उनमें से एक वनाधिकार भी रहा है. वनाधिकार के मामले में सरकार ने बहुत से स्थानों पर पूरी उदारता दिखाई है. सरकारी आँकड़ों के मुताबिक वनवासियों को वन भूमि का अधिकार पट्टा देने के मामले में छत्तीसगढ़ देश का अग्रणी राज्य है. अब तक राज्य में 4 लाख 54 हजार से अधिक व्यक्तिगत वनाधिकार पत्र, 45,847 सामुदायिक वन तथा 3731 ग्रामसभाओं को सामुदायिक वन संसाधन अधिकार पत्र वितरित कर 38 लाख 85 हजार हेक्टेयर से अधिक की भूमि आवंटित की गई है, जो 5 लाख से अधिक वनवासियों के जीवन-यापन का आधार बनी है.
पट्टे की भूमि का समतलीकरण, मेड़बंधान, सिंचाई की सुविधा के साथ-साथ खाद-बीज एवं कृषि उपकरण भी उपलब्ध कराए जा रहे हैं. वन भूमि पर खेती करने वाले वनवासियों को आम किसानों की तरह शासन की योजनाओं का लाभ मिलने लगा है.
इसी तरह से सरकार आदिवासियों को आर्थिक रूप से सशक्त बनाने का भी काम किया है. सत्ता में आने से पहले सरकार ने तेंदूपत्ता संग्रहाकों से जो वादा किया था उसे भी तत्काल पूरा किया है. राज्य में तेंदूपत्ता संग्रहण दर का दर पहले 2500 रूपए प्रति मानक बोरा था. इससे बढ़ाकर 4 हजार रूपए प्रति मानक बोरा किया गया. इससे आज हजारों आदिवासी परिवार लाभांवित है. इसी तरह से प्रदेश मे 65 प्रकार के लघु वनोपज की समर्थन मूल्य पर खरीदी की जा रही है. पहले सिर्फ 7 लघु वनोपज की ही खरीदी समर्थन मूल्य पर होती थी.
यही नहीं राज्य में पहली बार कोदो-कुटकी की खरीदी समर्थन मूल्य पर खरीदने का फैसला भूपेश सरकार ने लिया. इसके पीछे मकसद सीधे तौर पर आदिवासियों को आर्थिक लाभ पहुँचाना है. क्योंकि आदिवासी इलाकों में कोदो-कुटकी-रागी का उत्पादन अधिक होता है. लिहाजा इसका वाजिब लाभ आदिवासियों को मिल सके यह सरकार की मंशा है. राज्य में कोदो-कुटकी के लिए 3000 और रागी की 3377 रूपए प्रति क्विंटल की दर से कुल 16 करोड़ 58 लाख रूपए की खरीदी की गई. कोदो-कुटकी, रागी जैसी फसलों के उत्पादन को बढ़ावा देने और वैल्यु एडिशन के माध्यम से किसानों की आय में बढ़ोत्तरी के लिए मिशन मिलेट शुरू किया गया है.
शिक्षा के मामले में भी राज्य सरकार ने आदिवासियों को कई बड़ी सौगातें दी है. इसमें एक बड़ी उपलब्धि रही है सुकमा जिले में स्कूलों को पुनः प्रारंभ किया. जिन स्कूलों को नक्सलियों ने बंद करा दिया था, उन स्कूलों को पुनः खोला गया. धुर नक्सल प्रभावित क्षेत्र सुकमा जिले में जगरगुंडा सहित 14 गांवों में फिर से स्कूल खोला गया है. यहाँ स्कूल भवनों को मरम्मत किया गया. स्कूलों से आदिवासी बच्चों को जोड़ा गया है. इसी तरह से बीजापुर और बस्तर संभाग के जिलों में भी सैकड़ों बंद स्कूलों को फिर से प्रारंभ किया गया है. वर्तमान में प्रदेश में 9 प्रयास आवासीय विद्यालय संचालित हैं, जहां से शिक्षा प्राप्त 97 विद्यार्थी आईआईटी, 261 विद्यार्थी एनआईटी एवं ट्रिपल आईटी, 44 विद्यार्थी एमबीबीएस तथा 833 विद्यार्थी इंजीनियरिंग कॉलेजों में एडमिशन प्राप्त कर तकनीकी शिक्षा प्राप्त कर रहे हैं. राज्य में 73 एकलव्य आवासीय विद्यालय संचालित हैं. शैक्षणिक सत्र 2022-23 में एकलव्य विद्यालयों में 18 हजार 984 विद्यार्थी अध्ययनरत है.
स्वास्थ्य के क्षेत्र में भी आदिवासी इलाकों में सरकार ने काफी काम किया है. सरकार की कई बड़ी योजनाओं का शुभारंभ ही बस्तर से हुआ है. इसके साथ कई महत्वपूर्ण अभियान भी बस्तर से शुरू किया गया है. इनमें कुपोषण के खिलाफ जंग और मलेरिया से मुक्त महत्वपूर्ण रहा है. मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने 2019 में सुपोषित छत्तीसगढ़ अभियान की शुरुआत दंतेवाड़ा से की थी. वहीं मलेरिया मुक्त अभियान का आगाज 2020 से हुआ था. इसके साथ ही हाट-बाजार क्लिनीक योजना का शुभारंभ भी बस्तर से हुआ था. वहीं बीजापुर से बलरामपुर तक सभी अस्पतालों में अत्याधुनिक उपकरणों से सुसज्जित किया गया है. इन अस्पतालों में प्रसुति सुविधा, जच्चा बच्चा देखभाल सहित पैथालाजी लेब और दंतचिकित्सा सहित विभिन्न रोगों के उपचार और परीक्षण की सुविधाएं उपलब्ध करायी गई है. हाट-बाजारों में स्वास्थ्य सुविधा उपलब्ध कराने के लिए मुख्यमंत्री हाट बाजार क्लिनिक योजना में मेडिकल एम्बुलेंस के जरिए दुर्गम गांवों तक निःशुल्क जांच और उपचार की सुविधा के साथ दवाईयों का वितरण किया जा रहा है.
प्रदेश में आदिवासी संस्कृतियों को सहजने उसे देश और दुनिया से परचित कराने के साथ आदिवासियों की देवगुड़ी को विकसित करने का भी राज्य की सरकार ने किया है. छत्तीसगढ़ के आदिवासी नायकों और आदिवासी लोक-कला, संस्कृति-परंपरा, रीति-रिवाज को संग्रहित करने की दिशा में भी सरकार वृह्द रूप में काम कर रही है. छत्तीसगढ़ के प्रथम शहीद वीरनारायण सिंह की स्मृति में लगभग 25 करोड़ 66 लाख रूपए की लागत से 10 एकड़ भूमि में स्मारक-सह-संग्राहलय का निर्माण नवा रायपुर अटल नगर में पुरखौती मुक्तांगन में किया जा रहा है. इसमें प्रदेश के जनजातीय वर्ग के स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों का जीवंत परिचय प्रदेश और देश के शोध छात्र और आम जनों को हो सकेगा.
इसके साथ ही आदिवासी अँचलों में सुगम आवागमन पर सरकार फोकस है. बस्तर और सरगुजा अँचल में हवाई सुविधाओं का विस्तार किया जा रहा है. इन सुविधाओं के विस्तार के साथ ही पर्यटन को बढ़ावा मिलेगा. जगदलपुर एयरपोर्ट आधुनिक सुविधाएं उपलब्ध करायी गई हैं. इस एयरपोर्ट का नामकरण बस्तर की आराध्य देवी मां दंतेश्वरी के नाम पर किया गया है. अंबिकापुर में शीघ्र हवाई सेवा शुरू करने के लिए दरिमा स्थित मां महामाया एयरपोर्ट में हवाई पट्टी का विस्तार शुरू कर दिया गया है.
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