रोलेक्स वाले “साहब”
करप्शन करने वाले अधिकारी की सूरत-सिरत अलग किस्म की होती है. इनके नैन-नक्श, हाव-भाव, रहन-सहन, तौर-तरीके सब आम लोगों से अलग होते हैं. भीड़ में रहते हुए भी ये आसानी से पहचान लिए जाते हैं. कोई खुलकर, तो कोई इशारों में अपनी डिमांड सामने रख देता है. मगर यकीन मानिए आल इंडिया सर्विस के इस हुनरमंद साहब को देखकर अंदाजा भी नहीं लगा पाएंगे कि इनकी ख्वाहिशों का समदंर कितना विशाल है. करप्शन का इनका मैथड बड़ा यूनिक है. अपनी हिस्सेदारी ये लिक्विड में नहीं, साॅलिड में लेते हैं. जब जिला संभालते थे, तब निचले कर्मचारियों का सीआर लिखने अपनी स्याही की कीमत भी वसूल लेते थे. जब बड़े ओहदे पर बैठे, तब करप्शन का नया फार्मूला गढ़ने का वक्त मिला. सुनाई पड़ा है कि अपनी पिछली पोस्टिंग में एक टेंडर के ऐवज में उन्होंने ‘रोलेक्स घड़ी’ मांग ली थी. रोलेक्स दुनिया भर में घड़ी की सबसे ऊंची ब्रांड है. इलीट क्लास में स्टेटस सिंबल के साथ-साथ रोलेक्स पर खर्च की गई रकम एक किस्म का इनवेस्टमेंट माना जाता है. 1968 में बनी एक रोलेक्स घड़ी 2017 की एक नीलामी में 134 करोड़ में बिकी थी. जाहिर है, इस खबर ने ही साहब को ये पैतरा सुझाया होगा. अच्छा भी है. ईडी-आईटी की नजर से भारी भरकम कैश को बचा पाना मुश्किल होता होगा. ठिकाने लगाने का सिरदर्द अलग, सो रोलेक्स ही बढ़िया है. बुढ़ापे में कभी बेचने की नौबत भी आई, तब 134 करोड़ ना सही, अच्छी खासी रकम मिल ही जाएगी.
बगैर सेक्रेटरी विभाग
टीम मैदान में है, लेकिन कप्तान कौन है, ये कोई नहीं जानता. यही हाल महिला एवं बाल विकास विभाग का हो चला है. 12 अगस्त से विभाग में कोई सेक्रेटरी ही नहीं. महीना बीतने को है, हाल जस का तस है. बताते हैं कि जुलाई में रीना बाबा कंगाले लंबी छुट्टी पर जब गई, तब उनका प्रभार भुवनेश यादव को सौंपा गया था. आदेश में स्पष्ट जिक्र था कि कंगाले के लौटने तक प्रभार रहेगा. रीना बाबा कंगाले जब छुट्टी से लौटी, तब उन्होंने केवल निर्वाचन में ही अपनी ज्वाइनिंग दी. इधर भुवनेश यादव ने विभाग की फाइलों को देखना बंद कर दिया. सो अब फाइलों का ढेर बढ़ रहा है. कुछ जरुरी फाइले निचले अधिकारियों के रास्ते आगे बढ़ाए जा रहे हैं. सुनते हैं कि पिछले दिनों प्रतिनियुक्ति से विभाग में लौटे एक अधिकारी को ज्वाइनिंग देने जद्दोजहद करनी पड़ी. ज्वाइनिंग दिलाई जानी थी, सो विभाग के दूसरे सीनियर अधिकारी के जरिए प्रक्रिया आगे बढ़ाई गई. इधर निर्वाचन में रीना बाबा के रहते जीएडी ने चुनाव आयोग से पत्र लिखकर महिला एवं बाल विकास विभाग देने की अनुमति मांगी थी. अब जब रीना लौट आई हैं, तब सुनते हैं कि जीएडी ने वापस चुनाव आयोग को पत्र लिखकर विभाग वापस लिए जाने की अनुमति मांगी है. इन सबके चक्कर में विभाग बगैर सेक्रेटरी चल रहा है.
संजय शुक्ला ताजपोशी
वन महकमे से पिछले दिनों ये खबर सुनाई पड़ी थी कि राकेश चतुर्वेदी के रिटायरमेंट के बाद श्रीनिवास राव को पीसीसीएफ बनाया जाएगा. मगर इसके लिए कई सीनियर आईएफएस को सुपरसीड कर राव को कमान सौंपनी पड़ती. तकनीकी दिक्कतें थी. अब यह तय हो गया है कि संजय शुक्ला पीसीसीएफ के साथ-साथ हेड आफ फारेस्ट होंगे. राकेश चतुर्वेदी 30 सितंबर को रिटायर हो रहे हैं. चर्चा है कि सरकार चतुर्वेदी को पोस्ट रिटायरमेंट पोस्टिंग देने जा रही है. उन्हें पाल्यूशन कंट्रोल बोर्ड का जिम्मा सौंपा जा रहा है. राकेश चतुर्वेदी सरकार के करीबी अधिकारियों में शुमार हैं. जाहिर है रिटायरमेंट के बाद भी सरकार उनका उपयोग करना चाहती है.
एक किस्सा ये भी…
‘पावर सेंटर’ के पिछले काॅलम में ही हमने बताया था कि बस्तर के रास्ते आने वाले एक जिले के डीएफओ की गाड़ी का एक्सीडेंट हो गया. एक्सीडेंट की जानकारी छिपाई गई. चर्चा इस बात की भी हुई कि गाड़ी में जानवर के खाल की तस्करी की जा रही थी. बहरहाल इस बीच एक पुराने किस्से का जिक्र फूट पड़ा, जिसमें बताया गया कि आखिर कैसे एक सीनियर आईपीएस ने एक आईएफएस का इस्तेमाल कर अपने आध्यात्मिक गुरू के लिए बाघ की खाल का इंतजाम किया था. कहते हैं कि आईएफएस के खिलाफ एक मामला थाने जा पहुंचा था. गंभीर शिकायत दर्ज कराई गई थी. तब एक सीनियर आईपीएस ने आईएफएस को बचाने के ऐवज में बाघ की खाल की डिमांड की थी. बाघ का खाल ढूंढवाया गया, मगर मिला नहीं. शिकार पर बवाल होता, लिहाजा आईएफएस ने एक सरकारी गाड़ी उत्तरप्रदेश भिजवाई. वहां से बाघ की खाल लाकर सीनियर आईपीएस को दी गई. सीनियर आईपीएस देश के एक बड़े आध्यात्मिक संत के अनुयायी थे, फिलहाल इन दिनों रिटायरमेंट का सुख ले रहे हैं. ऐसा ही एक किस्सा तत्कालीन सरकार से भी जुड़ा है. एक बड़े नेता ने जान-माल की हानि से बचने और प्रभावशाली बने रहने के लिए बिलासपुर में एक यज्ञ करवाया था. इस यज्ञ के लिए बाघ की मूंछ- पूंछ के बाल और नाखुन की जरुरत पड़ी. एक चिड़ियाघर के बाघ से जरुरत की चीजें ली गई. इस दौरान बाघ के पूंछ का बाल ज्यादा कट गया. खूब ब्लिडिंग हुई. घबराए अधिकारियों ने रास्ता निकाल लिया. बताया गया कि दो बाघों की लड़ाई में एक को चोट लग गई. अब इन अधिकारियों-नेता-मंत्रियों को कौन समझाए कि जो बाघ खुद सुरक्षित नहीं, उसकी पूंछ-मूंछ, नाखुन भला दूसरों को कैसे सुरक्षा देंगे.
सरकारी पैसा-निजी बैंक
मंडी बोर्ड का हालिया मामला सब जानते ही है कि कैसे तीन अलग-अलग सार्वजनिक बैंकों में रखी गई 60 करोड़ की रकम एक्सिस बैंक में शिफ्ट कर दी गई थी. रकम सिर्फ शिफ्ट नहीं हुई, बल्कि बड़ा घालमेल हुआ. बोर्ड के मासूम अधिकारी नींद के आगोश में रहे और बाहरी लोगों ने सांठगांठ कर बड़ी रकम निकाल ली. खुलासा भी तब जाकर हुआ जब बैंक के ही एक मैनेजर ने इसकी शिकायत पुलिस में की थी. सूबे के विभागों में सार्वजनिक बैंकों में रखा सरकारी पैसा निजी बैंकों में रखे जाने की होड़ मची है. मंडी बोर्ड के बाद स्कूल शिक्षा का बड़ा पैसा एक्सिस बैंक शिफ्ट किया गया. अब सवाल उठ रहा है कि एक्सिस बैंक ही क्यों? बताते हैं कि एक हुनरमंद शख्स की इसमें अहम भूमिका है. जुगाड़ में माहिर इस शख्स की पत्नी एक्सिस बैंक की एक ब्रांच में बतौर हेड काम करती हैं. सरकारी विभागों का सैकड़ों करोड़ बैंक की किसी एक ब्रांच में जाए, तो इसके मायने समझने में देरी नहीं लगती. सुना है देखते ही देखते बैंक ने दो प्रमोशन दिए हैं.
लाठी बगैर पुलिस
अमूमन आंदोलन-प्रदर्शन में पुलिस उग्र भीड़ पर लगाम कसने अपनी लाठी से सुताई कर ही देती है. मगर पिछले दिनों भाजपा के अब तक के सबसे बड़े प्रदर्शन में पुलिस खाली हाथ नजर आई. हाथों में ना लाठी थी, ना ही कोई दूसरे साजो सामान थे. प्रदर्शन करने आए भाजपाईयों को भी यह सवाल सताता रहा कि आखिर पुलिस कब से गांधीगिरी के रास्ते चलने लग गई. साढ़े तीन सालों के भूपेश सरकार में भाजपा का यह सबसे बड़ा प्रदर्शन था. कोशिश थी कि 2003 में हुए प्रदर्शन की तस्वीर दोहराई जाए. दो-चार नेताओं के पैर टूटे, तो सत्ता में आने का नेग पूरा हो सके. मगर पुलिस ने भाजपा के अरमानों पर पानी फेर दिया. तत्कालीन जोगी सरकार के खिलाफ जब बीजेपी युवा मोर्चा ने बिगुल फूंकते हुए प्रदर्शन किया था, तब दर्जन भर नेता चोटिल हुए थे. नंदकुमार साय का तो पैर टूट गया था. इस बार के प्रदर्शन में साय की जगह कौन लेगा ये सवाल बना हुआ था? मगर अब पैर तुड़वाने वाली सियासत खत्म हो गई है. अंडरस्टैडिंग से सब चल रहा है. वैसे कुल मिलाकर बीजेपी मानकर चल रही है कि प्रदर्शन सक्सेसफुल रहा. इधर पुलिस सुकून में है कि ज्यादा बवाल नहीं हुआ. बहरहाल कितना अच्छा होगा अगर पुलिस सारे मसले गांधीगिरी से हल करने लग जाए.
हिमाचली कनेक्शन
सियासत में एक नई चर्चा छेड़ी जा रही है. ये चर्चा स्वास्थ्य मंत्री टी एस सिंहदेव और क्षेत्रीय संगठन महामंत्री अजय जामवाल को लेकर है. दोनों का हिमाचली कनेक्शन जोड़ा जा रहा है. जामवाल हिमाचल प्रदेश से आते हैं. सिंहदेव का भी हिमाचल से सीधा जुड़ाव है. वहां की वरिष्ठ कांग्रेस नेत्री आशा कुमारी उनकी बहन हैं. पूर्व मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह उनके सगे मौसा थे. बीजेपी में अब लोग चुटकी लेकर कह रहे हैं कि कहीं आगे चलकर हिमाचली खिचड़ी तो नहीं पकेगी. सेब के बगानों में नई तरह की राजनीतिक बिसात तो नहीं बिछाई जाएगी. इस चर्चा भर से बीजेपी की बांछे खिल गई है.