प्रतीक चौहान. रायपुर. दक्षिण पूर्व मध्य रेलवे के आईजी के परिवार के साथ निरीक्षण के बहाने पिकनिक जाने के खुलासे के बाद आरपीएफ आईजी सवालों के घेरे में है. यही कारण है कि अपनी गलती का ठिकरा फोड़ने के लिए वे मोहरा खोज रहे हैं.

 इतना ही नहीं लल्लूराम डॉट कॉम को इंटरनल जानकारी कौन पहुंचा रहा है, इसे लेकर भी आरपीएफ की टीम लगी हुई है. इसके लिए बिलासपुर पुलिस से अनाधिकृत रूप से जानकारी लिए जाने की खबर है. वहीं आरपीएफ के अधिकारियों ने अपनी विभिन्न एजेंसियों को भी अपनी ड्यूटी छोड़ लल्लूराम डॉट कॉम के सूत्रों को खंगालने में लगा दिया है, लेकिन सब तरफ हाथ-पैर मारने के बाद भी उन्हें कहीं से कामयाबी नहीं मिल रही है.

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सूत्रों ने तो यहां तक बताया कि बिलासपुर जोन के अधिकारियों ने रायपुर आरपीएफ के अधिकारियों से भी संपर्क किया है, जिससे लल्लूराम डॉट कॉम में आईजी के पिकनिक जाने की खबर लिखने वाले पत्रकार की कॉल हिस्ट्री अनाधिकृत तरीके से निकलवाने की चर्चा पूरे आरपीएफ खेमे में हैं. सूत्रों ने तो यहां तक दावा किया कि जोन के कुछ इंस्पेक्टर इन दिनों बिलासपुर पुलिस के कुछ उच्च पदस्थ अधिकारियों के संपर्क में है और 1-2 बार उनके दफ्तर भी गए, जहां से पत्रकार की कॉल डिटेल निकाली जा सके.

 हालांकि आरपीएफ अक्सर ऐसे मामलों में एसआईबी की कथित रिपोर्ट का हवाला देकर किसी भी बेकसूर को अपना मोहरा बनाती है, लेकिन अपने परिवार के लिए पूरे सैलून और सिस्टम का गलत उपयोग करना उन्हें नजर नहीं आता है.

आरपीएफ आईजी का पिकनिक जाना क्या सच में इतना बड़ा मामला है, जो लल्लूराम बार-बार इसे छाप रहा है ?

अब सवाल ये भी उठता है कि क्या आरपीएफ आईजी का अपनी पत्नी के साथ पिकनिक जाना क्या सच में इतना बड़ा मामला है कि लल्लूराम बार-बार इसे प्रकाशित कर रहा है ? तो चलिए आपको 2 लोगों के पिकनिक के लिए पूरे सिस्टम के इस्तेमाल के बारे में बताते हैं.

पिकनिक में जाने के लिए आरपीएफ आईजी और उनकी पत्नी जब घर से निकली होगी तो उनके पेट्रोलिंग में आरपीएफ का पूरा अमला लगा होगा. इसके बाद जिस ट्रेन में सैलून (शाही बोगी) लगा उसके संटिंग (कोच के ट्रेन में लगने की प्रक्रिया) में लाखों रूपए का खर्च आता है. वो ऐसे कि इस स्पेशल कोच को लगाने के लिए एक इंजन सबसे पहले कोच को साइडिंग वाले ट्रैक से स्टेशन के ट्रैक तक लाता है. वहां जिस ट्रेन में उसे जोड़ना है उसके लिए सैलून को पुनः आगे पीछे करने की प्रक्रिया में पूरा अमला लगता है. उसके बाद उसे ट्रेन में जोड़ा जाता है. यही प्रक्रिया बिलासपुर स्टेशन के बाद पुनः अंबिकापुर, इसके बाद बिजुरी और पुनः बिलासपुर में की गई.

अब यदि आईजी साहब को परिवार के साथ पिकनिक जाना ही था तो ट्रेन के उस कैटेगिरी में यात्रा कर सकते थे, जिसके लिए उन्हें रेलवे पास देता है. जिससे पूरे अमले और रेलवे के लाखों रूपए के राजस्व की बचत होती.

अब आगे का फंडा समझिए

आईजी के परिवार के साथ अंबिकापुर पहुंचने के बाद वहां पूरा अमला लगा. उनके साथ अंबिकापुर की टीम भी पिकनिक स्पॉट मैनपाट के लिए रवाना हुई. लेकिन लल्लूराम की खबर छपने के बाद आईजी ने अपने साथ गए आरपीएफ के स्टॉफ को वापस लौटा दिया. यानी यहां भी स्टॉफ के जाने आने और आईजी के लिए किए गए पूरे ताम-झाम का खर्चा अनाधिकृत तरीके से अंबिकापुर आरपीएफ पोस्ट को उठाना पड़ा होगा, क्योंकि कागजों में आईजी निरीक्षण करने पहुंचे थे.

 इसके बाद अंबिकापुर से आईजी उनका परिवार, बिलासपुर के सीनियर डीएससी और उनका परिवार भी अमृतधारा में पिकनिक मनाने पहुंचा. हालांकि अच्छी बात ये थी कि बिलासपुर मंडल के सीनियर डीएससी ने सैलून का इस्तेमाल न कर वे ट्रेन के एसी कोच में बैठे थे. जिससे उनके लिए कोई अतिरिक्त ताम-झाम की जरूरत नहीं पड़ी. इसके बाद अमृतधारा से पूरे ताम-झाम और मंत्री जैसी पेट्रोलिंग के साथ आईजी साहब मनेंद्रगढ़ आरपीएफ पोस्ट में निरीक्षण करने पहुंचे और यहां से फिर वे बिलासपुर के लिए रवाना हुए, जहां पुनः सैलून ट्रेन में संटिंग कर जोड़ा गया.

लल्लूराम खबर नहीं छापता तो पिकनिक का खर्चा होता ‘प्रोटोकॉल’  

अब आपको बताते हैं कि आरपीएफ में एक शब्द हो प्रोटोकॉल, यानी अनाधिकृत तरीके से करवाई गई सेवा. जब भी रेलवे या आरपीएफ का कोई बड़ा अफसर पिकनिक माने जाता है तो संबंधित पोस्ट के इंस्पेक्टर की ये पूरी जिम्मेदारी होती है कि वे साहब के लिए प्रोटोकॉल की पूरी व्यवस्था करें. यानी यदि लल्लूराम डॉट कॉम में खबर प्रकाशित नहीं होती तो होटल में रूकने और खाने पीने के खर्चे का बतौर प्रोटोकॉल संबंधित थानाक्षेत्र के इंस्पेक्टर को करना पड़ता. लेकिन खबर छापने के बाद साहब ने बतौर प्रूफ रखने खुद अपने अकाउंट से ऑन लाइन पेमेंट किया. जो अपने आप में ये प्रमाण है कि वे पिकनिक गए थे.