रुपेश गुप्ता, रायपुर। मध्यप्रदेश में किसानों के आंदोलन का असर छत्तीसगढ़ में पड़ेगा या नहीं. सरकार इस बात पर पैनी नज़र बनाए हुए है. सरकार के आलाधिकारियों ने खुफिया विभागों को एलर्ट कर दिया है. खुफिया विभाग को कहा गया है कि अगर मध्यप्रदेश के किसानों के गुस्से का असर छत्तीसगढ़ में दिखे तो तुंरत रिपोर्ट की जाए. ताकि वक्त रहते इससे निपटने के इंतज़ाम किए जा सकें.
इधर राज्य में किसान नेता मध्यप्रदेश के हालात पर नज़र बनाए हुए हैं. वहां किसानों के मुद्दे पर मिल रहे जनसमर्थन को देखते हुए वे भी इस बात पर विचार कर रहे हैं कि क्या कोई आंदोलन यहां किया जा सकता है. राज्य में किसानों के हालात खराब हैं. सरकार ने चुनावी वादा पूरा नहीं किया है. ऐसे में इस संभावना को भी किसान नेता टटोल रहे हैं कि क्या मध्यप्रदेश की तर्ज पर उग्र आंदोलन करके सरकार पर वादा पूरा करने का दबाव बनाया जा सकता है. वे लगातार मध्यप्रदेश और महाराष्ट्र के आंदोलनकारी किसानों से संपर्क में हैं.
इस सिलसिले में प्रदेश के हर किसान संगठन लगातार बैठकें करने वाले हैं जिसमें इस विषय पर चर्चा हो सके. 10 जून शनिवार को किसानों के करीब एक दर्जन संगठन छत्तीसगढ़ प्रगतिशील किसान संगठन के बैनर तले एक बैठक करने वाले हैं. इसके बाद नया रायपुर के किसानों की बैठक हो रही है. यह बैठक 15 जून के आसपास संभावित है.
हांलाकि किसान आंदोलन में साथ निभाने वाले कई बड़े नेता मानते हैं कि मध्यप्रदेश जैसे हालात छत्तीसगढ़ में संभव नहीं हैं क्योंकि यहां के लोगों की तासीर बेदह शांत और संतुष्ट रहने वाली है. वीरेंद्र पांडय का कहना है कि छत्तीसगढ़ का किसान इतना ठंडा है कि उसमें उबाल नहीं आ सकता. वो खूब सहता है.
पिछले करीब 22 साल से किसानों की लड़ाई लड़ने वाले किसान नेता रुपम चंद्राकर भी इस बात से इत्तेफाक रखते हैं. उनका कहना है कि ये दुर्भाग्य है कि किसान अपने हितों की लड़ाई लड़ने वाले को राजनीतिक चश्मे से देखता है. यही वजह है कि किसान ने न तो 2100 रुपये समर्थन मूल्य मांगा न ही 300 बोनस मांगा.
उधर, कांग्रेस भी देख रही है कि कैसे इस मुद्दे का राजनीतिक लाभ लिया जाए. किसान मोर्चा के अध्यक्ष चंद्रशेखर शुक्ला की अगुवाई में मुख्यमंत्री को नोटिस भेजने जैसे कार्यक्रम किए जा रहे हैं. लेकिन इसका असर नहीं दिखता.