गौरव जैन, जीपीएम. गौरेला-पेन्ड्रा-मरवाही आदिवासी जिला है, जहां दूर-दराज के गांवों में स्वास्थ्य सुविधाओं का भारी अभाव है. यहां हम बात कर रहे हैं मरवाही क्षेत्र के ग्राम सेमरदर्री के आयुर्वेद अस्पताल की. जहां संविदा डॉक्टर हैं, मगर डॉक्टर ड्यूटी के दौरान अपने निज निवास कोटमी में ही बीता देते हैं. इस तरह की लापरवाही का खामियाजा आम ग्रामीणों को भुगतना पड़ता है. सेमरदर्री के आयुर्वेद अस्पताल का आलम ये है कि अस्पताल पूरी तरह से पेड़ पौधों से सराबोर है. परिसर उजाड़ में तब्दील हो गया. देखने से ऐसा लगता है जैसे यहां इंसान तो दूर जानवर भी जाने से घबरा जाए. अस्पताल में जब डॉक्टर ही नहीं रहेंगे तो अस्पताल का रख रखाव कैसे होगा..आम लोगों के इलाज की बात तो बहुत दूर है.

बता दें कि, सेमरदर्री पूर्णत आदिवासी क्षेत्र है. पिछड़ी जनजाति पंडो के लोग भी बड़ी संख्या में हैं, मगर अस्पताल में ना तो डॉक्टर है ना ही जाने का रास्ता इसके बाद भी जिम्मेदार अधिकारियों का इस ओर ध्यान नहीं है. वहीं ग्रामीणों और जनप्रतिनिधियों ने बताया कि, यहां पदस्थ डॉक्टर कभी कभार ही आते हैं और औपचारिकता पूरी करते हुऐ हाजरी भरकर चले जाते हैं. यहां के निवासियों ने बताया कि डॉक्टर के खिलाफ पूर्व में शिकायत की जा चुकी है.

वहीं यहां पदस्थ कर्मचारी ने बताया कि, अस्पताल खुलता तो है मगर यहां पर्याप्त दवाइयां नहीं मिल पाती. दवाइयों के अभाव में ग्रामीणों को मरवाही रिफर कर दिया जाता है, जिससे सेमरदर्री में प्राथमिक उपचार भी नहीं हो पाता है. जबकि मरवाही पूर्णतः आदिवासी बाहुल्य क्षेत्र है. जहां गरीब आदिवासी अपनी प्राथमिक चिकित्सा के लिए गांव पर ही निर्भर होते हैं.