नेहा केशरवानी, रायपुर. केंद्र सरकार द्वारा 12 आदिवासी समुदाय को अनुसूचित जनजाति में शामिल करने के बाद से समाज मे खुशी की लहर है. इसी के चलते आज वंचित आदिवासी संगठन के लोग राज्यपाल अनुसुइया उइके का आभार जताने राजभवन पहुंचे. राजभवन के दरबार हॉल मे राज्यपाल ने समाज के लोगों से मुलाकात की. इसके बाद आदिवासी समुदाय के लोगों ने अनुसूचित जनजाति में शामिल करने पर उनका आभार जताया. इस दौरान आदिवासी संगठन के लोगों ने कहा कि हमने बहुत बड़ी जंग जीती है. हमारे लिए कठिन लग रहा था लेकिन राज्यपाल ने उसे आसान बना दिया. राज्यपाल का सानिध्य हमे मिला इसके चलते हमारीं समस्याएं दूर होती जा रही हैं.

आदिवासी संगठन के लोगों ने यह भी कहा, राजभवन हमारे लिए जनता भवन बन गया है. हमें सबका सहयोग मिला. मात्रात्मक त्रुटि होने की वजह से हमें नुकसान हो रहा था. हम राज्य शासन के भी आभारी हैं.आजादी के इतने दिन बाद भी हम अधिकारों से वंचित रहे. राज्यपाल अनुसुइया उइके ने कहा कि, मैं इस प्रदेश के जनजाति समाज की ओर से प्रधानमंत्री को धन्यवाद देती हूं. राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, राज्यपाल और उपराष्ट्रपति संवैधानिक दायित्व में होते हैं. राज्यपाल प्रदेश के सरंक्षक के साथ-साथ आदिवासी समाज का सरंक्षक होता है. मैं जब छत्तीसगढ़ आई तो समाज के लोग मुझसे समस्याओं के लेकर मुलाकात करते थे.12 समुदाय को शामिल करने हमने प्रस्ताव भेजा था. यह मामला बहुत गंभीर था. इसे लेकर प्रधानमंत्री से विस्तार से चर्चा मैने की. प्रधानमंत्री ने भी इस बात को गंभीरता से लिया.केंद्र सरकार को मैंने रिपोर्ट दी थी. मैने सुझाव दिया था कि जिसकी भी जमीन जाए उनको शेयर होल्डर बना दिया जाए. उन्होंने आगे कहा कि मेरे अकेले का नहीं इसमें सबका योगदान है.जनजाति समुदाय के लिए बहुत बड़ा फैसला हुआ है.

वहीं 18 साल बाद फैसला आने पर बहुत से लोगो कई लाभों से वंछित रह जाएंगे, जिनकी उम्र सीमा समाप्त हो चुकी उनके लिए राज्यपाल ने कहा है केंद्र में इन बातों को रखेंगी. इसी कार्यक्रम में आदिवासियों ने अपनी संघर्ष बताया कि, 18 साल से प्रयास कर रहे थे, किसी राज्यपाल ने हमारे लिए दरवाजा नहीं खोला, राज्यपाल अनुसुइया उइके के द्वारा ही प्रधानमंत्री राष्ट्रपति के समक्ष हमारी समस्या रखी और अब जाकर समाधान हुआ.

आदिवासियों ने अपने संघर्ष की गाथा सुनाते हुए कहा कि, 18 साल का महाभारत समाप्त हुआ, इसका नेतृत्व करने के लिए महामहिम को धन्यवाद, हमारे लिए गर्व की बात है. आदिवासी होते हुए भी हम अपनी जाति बताने में डरते थे. जाति बताने पर नोटिस जारी हो जाता था कि सत्यापन करके आओ, मेडिकल में चयनित हुआ एडमिशन नहीं मिला, प्रोफेसर लेक्चरर में सेलेक्ट हुए, लेकिन नहीं कर पाए. आज यह सब खेती किसानी कर अपना जीवन काट रहे थे, लेकिन अब 65 लाख लोगों को इसका सीधा लाभ मिलेगा.