उत्तर बस्तर कांकेर से लौटकर वैभव बेमेतरिहा की रिपोर्ट
रायपुर। छत्तीसगढ़ में आज विकास बुलेट ट्रेन की रफ्तार से दौड़ रहा है ये सरकार का कहना है. तरक्की का सफर आज सुहाना हो चला है ये सरकार का कहना है. उत्तर से लेकर दक्षिण छत्तीसगढ़ में प्रगति तेज हो चली है ये सरकार का कहना है. बस्तर संवर रहा है, बस्तर बदल रहा है ये सरकार का कहना है. लेकिन बस्तर कहाँ और किस रूप में, किस रफ्तार से बदल रहा है बस्तर के अंदरुनी इलाकों में जाने से पता चलता है. बस्तर के मूलनिवासी आदिवासियों के बीच जाने से पता चलता है. बस्तर के घने जंगलों में रहने वाले गाँव वालों के बीच वक्त गुजारने से पता चलता है. दरअसल बस्तर का सच है क्या इसके लिए आपकों हाइवे को छोड़कर जंगलों और पहाड़ों के बीच जाना होग. बस्तर के भीतर एक ऐसा सच जिसे देख यकीन नहीं होता कि आजादी को 70 बरस बीत गए, एक ऐसा सच जिसे देखकर ये यकीन नहीं होता कि हमारा गणतंत्र दुनिया में सबसे सशक्त है. एक ऐसा सच जिसे देखकर ये यकीन नहीं होता कि सच में हम मूलनिवासियों को उसके अधिकार को दे पाने में सफल रहे हैं. आज हमारी इस खास पेशकश में कहानी बस्तर के ऐसे ही एक गाँव की. राजधानी की चकाचौंध से इतर अंधेरे में गुम बस्तर के एक गाँव की कहानी. एक ऐसे गाँव की कहानी जहाँ से मंत्री निकले, सांसद निकले, विधायक निकले…. लेकिन कोई निकल नहीं पाया तो अंधेरे में गुम, पहाड़ों के पार, जंगलों के बीच में रहने वाले हमारे अपने मूलनिवासी आप इस कहानी को मूलनिवासियों के बीच देखेंगे भी और उन्हें सुनेंगे…
उससे पहले इन तस्वीरों को देखिए…..देखिएं साहब…बड़े गौर से देखिए….ये बस्तर की तस्वीर है….ये उत्तर बस्तर कांकेर की तस्वीर है….ये तस्वीर ब्लॉक मुख्यालय से कुछ किलोमीटर दूर गाँवों की है….ये तस्वीर उन रास्तों की जहाँ विकास 70 बरस बाद भी नहीं पहुँचा…ये उस इलाके की तस्वीर है जहाँ मंत्री, सांसद, विधायक चुनकर आएं. लेकिन भारत भाग्य विधाता में दुर्भाग्य यहाँ के मूलनिवासी अादिवासियों की ये है कि इनके हिस्से आज तक कुछ नहीं आया. बस्तर में विकास की पड़ताल में आपको ऐसे ही इलाके की तस्वीर दिखाने जा रहा है जहाँ न सड़क है, न बिजली, न स्वास्थ, न पेयजल.
छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर से तकरीबन ढाई सौ किलोमीटर दूर उत्तर बस्तर कांकेर के अंतागढ़ ब्लॉक मुख्यालय में हम अपनी टीम के साथ बस्तर में विकास का सच देखने पहुँचें. अंतागढ़ पहुंचने के बाद हमारी टीम को पता चला कि ब्लॉक मुख्यालय से 3 किलोमीटर दूर हिड़ोमा पंचायत है. हिड़ोमा वर्तमान कांकेर सांसद और पूर्व मंत्री विक्रम उसेण्डी का गाँव है, बस्तर विकास प्राधिककरण के उपाध्यक्ष और विधायक भोजराम नाग का गाँव है. लेकिन खबर हिड़ोमा की नहीं. खबर इस पंचायत के अंतर्गत आने वाले ब्लॉक मुख्यालय से 12 किलोमीटर और हिड़ोमा पंचायत से 9 किलोमीटर दूर गरदा की है. गरदा गाँव पहुंचने के लिए कोई भी सड़क नहीं है. कच्ची सड़क है लेकिन बेहद पथरीला. गरदा पहुँचने के लिए एक पहाड़ को चढ़कर जाना होता है.
गरदा तक पहुँचना आसान नहीं है. क्योंकि इस इलाके से निकले मंत्री, सांसद, विधायक ने कभी इसे विकसित करने का सोचा ही नहीं. नक्सल दहशत का हवाला देकर इस इलाके में विकास को सिस्टम ने आज तक रोके रखा है. सरकार की पहुँच इस इलाके में बुनियादी तौर पर नहीं हो सकी है. लेकिन हमारी टीम ने तय कर लिया था कि वो गरदा पहुँचकर विकास के सच को जरूर देखेगी. हमारी टीम ने पथरीले, पहाड़ी और घने जंगल वाले रास्ते पर अपना सफर जारी रखा. हिड़ोमा से 4 किलोमीटर अब हमारी टीम घने जंगल की बीच पहुँच चुकी थी. नाले को पार करते, पहाड़ पर बाइक पर संभलते-संभलते आगे बढ़े जा रही थी. आखिरकार सिर्फ 9 किलोमीटर, लेकिन थका देने वाली सफर के बाद हमारी टीम गरदा पहुँच ही गई. वही गरदा जहाँ आजादी के 70 बरस बाद आज तक बिजली नहीं पहुँची, जहाँ आजादी के 70 बरस बाद भी अब तक सड़क नहीं, वही गरदा जहाँ आजादी के 70 बरस बाद मूलनिवासी आदिवासी आज भी बुनियादी सुविधाओं से वंचित हैं. वही गरदा जहाँ शिक्षा, स्वास्थ्य अभी बड़ी चुनौती है. वही गरदा जहाँ साफ पीने के पानी के आभाव में आदिवासी मलेरिया और हैजा से पीड़ित होकर आकाल मौत मरते हैं. गरदा के इसी गाँव से अब इस वीडियो में देखिएं बस्तर में विकास का असल सच…उन आदिवासियों की जुबानी …जिन्हें सुनने के लिए न तो यहाँ कोई जनप्रतिनिधि पहुँचता है…न कोई अधिकारी….सच ये है कि आज भी यहाँ के आदिवासी सुराज की बांट जोह रहे हैं…..
देखिएं वीडियो-
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