रायपुर. दशमी तिथि पर मृत्‍यु होने वाले पूर्वजों और संबंधियों का श्राद्ध दशमी तिथि पर संपन्‍न किया जाता है. पितृ पक्ष श्राद्ध, पार्वण श्राद्ध है और इसे श्रद्धा को करने पर पूर्वज संतुष्ट होते है जो आपके जीवन में सुख और समृद्धि लाती है. मातृपक्ष अर्थात माता के अतिरिक्त मामा-मामी, मौसा-मौसी, नाना-नानी तथा पितृ पक्ष अर्थात दादा-दादी, चाचा-चाची, ताऊ ताई आदि को कष्ट व दुख देता है और उनकी अवहेलना व तिरस्कार करता है, उनको लगे पितृ दोष की निवृति भी पितृ पक्ष में करना चाहिए.

आश्विन माह के कृष्णपक्ष की दशमी तिथि पर उन पितृगणों के निमित कर्म किया जाता है, जिनका देहावसान दशमी तिथि को हुआ था. दशमी तिथि का शास्त्रों के अनुसार दशमी तिथि के श्राद्धकर्म में श्राद्ध करने के उपरांत ब्राह्मणों को भोजन करवाने का विधान है. सर्वप्रथम नित्यकर्म से निवृत होकर घर की दक्षिण दिशा में सफेद वस्त्र बिछाएं.

पितृगण के चित्र अथवा प्रतीक हरे वस्त्र पर स्थापित करें. पितृगण के निमित, तिल के तेल का दीपक जलाएं, सुगंधित धूप करें, जल में हल्दी और तिल मिलाकर तर्पण करें. फिर चंदन और तुलसी पत्र समर्पित करें. इसके उपरांत ब्राह्मणों को खीर, पूड़ी, सब्जी, केले, केसर से बने पकवान, लौंग-ईलायची तथा मिश्री अर्पित करें.