
सिंह के अलावा बाघ, चीता और तेंदुआ सभी एक जैसे दिखते हैं लेकिन ये अलग-अलग होते हैं. सभी बिल्ली की प्रजाति से संबंध रखते हैं. मां दुर्गा की कई फोटो या मूर्ति में सिंह दिखता है तो किसी में बाघ दिखाई देता है. लेकिन क्या आप जानते हैं की माता दुर्गा, सती या पार्वती की सवारी क्या है और माता किस की सवारी कहती हैं.

- माता दुर्गा सिंह पर सवार हैं, तो माता पार्वती बाघ पर. देवी दुर्गा के दो वाहन हैं. उन्हे कुछ मूर्तियों और चित्रों में शेर पर तो कुछ-कुछ तस्वीरों में उन्हें बाघ पर विराजमान बताया गया है. मां महिषासुर वध का वधर करते समय वह सिंह पर सवार थीं. इसके अलावा अन्य दैत्यों का वध करते समय वे बाघ पर सवार थीं.
- पार्वती के पुत्र कार्तिकेय का नाम स्कंद भी है, इसीलिए वे स्कंद की माता कहलाती हैं उन्हें शेर पर सवार दिखाया गया है.
- कात्यायनी देवी को भी सिंह पर सवार दिखाया गया है. देवी कुष्मांडा शेर पर सवार है. माता चंद्रघंटा भी शेर पर सवार है.
- जिनकी प्रतिपद और जिनकी अष्टमी को पूजा होती है वे शैलपुत्री और महागौरी वृषभ पर सवारी करती है.
- माता कालरात्रि की सवारी गधा है तो सिद्धिदात्री कमल पर विराजमान है.
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शेर ऐसे बना था मां पार्वती वाहन
एक कथा अनुसार शिव को पति रूप में पाने के लिए देवी पार्वती ने हजारों वर्ष तक तपस्या की थी. तपस्या से देवी सांवली हो गई थी. भगवान शिव से विवाह के बाद एक दिन जब शिव पार्वती साथ बैठे थे तब भगवान शिव ने पार्वती से मजाक करते हुए काली कह दिया. देवी पार्वती को शिव की यह बात चुभ गई, जिसके बाद मां कैलाश छोड़कर वापस तपस्या करने में लीन हो गई. इस बीच एक भूखा शेर देवी को खाने की इच्छा से वहां पहुंचा था. लेकिन तपस्या में लीन देवी को देखकर वह चुपचाप बैठ गया.
शेर सोचने लगा कि देवी कब तपस्या से उठे और वह उन्हें अपना आहार बना ले. इस बीच कई साल बीत गए लेकिन शेर अपनी जगह डटा रहा. इस बीच देवी पार्वती की तपस्या पूरी होने पर भगवान शिव प्रकट हुए और पार्वती गौरवर्ण यानी गोरी होने का वरदान दिया था. इसके बाद देवी पार्वती ने गंगा स्नान किया और उनके शरीर से एक सांवली देवी प्रकट हुई, जो कौशिकी कहलायी और गौरवर्ण हो जाने के कारण देवी पार्वती गौरी कहलाने लगी.
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माता पार्वती को जब यह पता चला कि यह बाघ उनके साथ ही तपस्या में यहां सालों से बैठा था, तो माता ने प्रसंन्न होकर उसे वरदान स्वरूप अपना वाहन बना लिया. तब से बाघ मां पार्वती का वाहन हो गया. इसका कारण यह था कि बाघ ने देवी को खाने की प्रतिक्षा में उन पर नजर टिकाए रखकर वर्षो तक उनका ध्यान किया था. देवी ने इसे बाघ की तपस्या मान लिया और अपनी सेवा में ले लिया. इसलिए देवी पार्वती के बाग और वृष दोनों वाहन माने जाते हैं.
वहीं, दूसरी कथा अनुसार, संस्कृत भाषा में लिखे गए ‘स्कंद पुराण’ के तमिल संस्करण ‘कांडा पुराणम’ में उल्लेख है कि देवासुर संग्राम में भगवान शिव के पुत्र मुरुगन (कार्तिकेय) ने दानव तारक और उसके दो भाइयों सिंहामुखम और सुरापदम्न को पराजित किया था. अपनी पराजय पर सिंहामुखम ने माफी मांगी तो मुरुगन ने उसे एक बाघ में बदल दिया और अपना माता पार्वती के वाहन के रूप में सेवा करने का आदेश दिया था. एक मान्यता भी है कि एक युद्ध में मां पार्तती ने राक्षसों के राजा का दमन किया था. जिसकी वजह से उनके पिता हिमावत ने उन्हें एक सफेद शेर भेंट में दिया था.
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