लक्ष्मीकांत बंसोड़, बालोद. नवरात्रि के नौ दिनों में मां दुर्गा के नौ रूपों की उपासना की जाती है. लेकिन छत्तीसगढ़ के बालोद जिले में एक गांव ऐसा है जहां ग्रामीण परेतिन दाई की पूजा करते हैं, जाने क्या है मंदिर की कहानी…

बालोद जिले के अर्जुन्दा नगर पंचायत से 4 किलोमीटर दूर बसे गांव झींका, जहां सड़क किनारे स्थापित परेतिन दाई का मंदिर ग्रामीणों के साथ-साथ राहगीरों के लिए भी आस्था का केंद्र है. ग्रामीण बताते हैं कि कई वर्षों से चली आ रही परंपरा के अनुसार मंदिर के सामने मार्ग से जो भी राहगीर चबूतरा घुमा नीम पेड़ के सामने बिना माथा टेके आगे बढ़ते थे, उनके साथ अप्रिय घटना हो जाती थी. लगातार घटनाएं होती गई. आखिरकार ग्रामीण इस स्थान पर रुककर पूजा और प्रणाम कर आगे बढ़ने लगे. जिसके बाद अनहोनी घटनाएं होना बंद हो गई. तब से यह परंपरा चलते आ रही है. दिन-ब-दिन (परेतिन दाई) के प्रति लोगों की आस्था बढ़ती जा रही है. आज ग्रामीणों और भक्तों की मदद से मंदिर स्थापित की गई है. जहां नवरात्र के 9 दिनों तक विधि विधान से ग्रामीण पूजा पाठ करते हैं.

माता को चढ़ाते हैं रेत और ईंट

ग्रामीणों के मुताबिक जब किसी के घर जब नवजात बच्चे लगातार रोने लगते हैं या कोई नया बच्चा घर में जन्म लेता है तो परिवार वाले यहां पहुंचकर काले रंग की चूड़ी और काजल परेतिन दाई को चढ़ाते हैं. जिसके बाद बच्चा रोना बंद कर देता है. साथ ही इस मंदिर से गुजरते वक्त जो भी समान हो चाहे खाने पीने की समान हो या बिल्डिंग मटेरियल सम्बंधित समान इट रेत गिट्टी हो सभी परेतिन माता को पहले चढ़ाया जाता है.

ग्रामीणों की मान्यता

ग्रामीण राजू सिन्हा बताते हैं कि परेतिनदाई के सामने से जो कोई भी गुजरता है तो बिना माथा टेके नहीं जाता है. यहां बिना पूजा कीए कोई गुजरता है तो कोई न कोई अनहोनी होती है. टिकरी गांव के रहने वाले रितेश देवांगन बताते हैं कि दोनों नवरात्र में यहां परेतिन दाई की पूजा अर्चना की जाती है. मनोकामना पूरी होती है. घर में नवजात बच्चा या छोटे बच्चे रोते हैं तो माता परेतिन दाई के मंदिर के गेट में काली चूड़ियां बांधते हैं जिससे बच्चे रोना बंद कर देता है.

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