नए नवेले एसपी…

नई-नई नौकरी में पहले आदमी दम निचोड़कर काम किया करता था. जोश सिर्फ काम तक सिमटा होता था, मगर कामकाज का पुराना ढर्रा नए लोगों को रास नहीं आ रहा. एक नए नवेले आईपीएस को एक नए जिले में पोस्टिंग क्या मिली, पहले दिन से ही परफॉर्म करना शुरू कर दिया है. उनके किस्सों की गूंज ऊपर तक जा पहुंची है. बताते हैं कि एसपी साहब की मैराथन पारी उस दिन ही शुरू हो गई थी, जिस दिन मुख्यमंत्री एसपी दफ्तर का फीता काटकर लौटे थे. कुर्सी पर पहली दफा बैठते ही एसपी ने शायद अपनी लिस्ट बनाई होगी. तभी तो दूसरे दिन ही उन-लोगों की पेशी करवाई गई, जहां से मामला फिट हो सकता था. क्या कबाड़ी और क्या ट्रांसपोर्टर? सभी को एसपी दफ्तर बुलाकर नया बही खाता शुरू करने की हिदायत दे दी गई. चर्चा है कि इस जिले का एक बड़ा ट्रांसपोर्टर सत्तारूढ़ दल के विधायक का करीबी है, सो ट्रांसपोर्टर ने विधायक से एसपी की शिकायत कर दी. विधायक ने सीधे एसपी को फोन मिलाकर ठीक ठाक लहजे में समझा भी दिया कि कुछ लोगों को छोड़कर बहीखाता चलाए. कहते हैं कि एसपी ने ट्रांसपोर्टर को बुलाकर ना केवल फटकार लगाई बल्कि किसी तरह की राहत देने से इंकार कर दिया. भाई इतना साहस पुराने जमाने के एसपियों ने की होती, तो मालूम नहीं लाॅ एंड आर्डर का क्या हाल बना होता. खैर विधायक ने भी इसे दिल पर ले लिया. बताते हैं कि विधायक सीधे एसपी दफ्तर जा पहुंचे और अपनी रसूख दिखाते हुए किसी बड़ी शख्सियत को फोन लगाया. एसपी का ठीक ठाक हिसाब हो गया. खूब फटकार मिलने की खबर है. वैसे चुनाव करीब आ रहा है, पुरानी कहावत भी है कि वर्दी वालों से ना दोस्ती अच्छी, ना दुश्मनी. 

कबीरा तेरे देश में भांति-भांति के मूर्ख…

वैसे सरकारी कामकाज पर एकबारगी नजर दौड़ाया जाए, तो यकीन मानिए कई काम ऐसे मिलेंगे, जो मूर्खताओं के किस्सों से भरे होंगे. अब बस्तर से निकले इस मामले को ही देखिए. बस्तरिया इमली दुनिया के कई हिस्सों में अपनी पहचान कायम कर रही है. इसी बस्तर में आर्गेनिक इमली समेत कुछ अन्य उत्पादों का प्रमाणीकरण किए जाने के लिए दिल्ली से एक टीम आई थी. आर्गेनिक इमली एक गोडाउन में रखी गई थी. प्रमाणीकरण के लिए पहुंची टीम को इस गोडाउन में ही आना था. जिम्मेदारों ने सोचा होगा, थोड़ी साफ-सफाई कर ली जाए. इज्जत नसीब होगी. सो गोडाउन में साफ-सफाई के साथ-साथ मच्छर का लार्वा मारने वाली दवा का भी छिड़काव करा दिया गया. यह सब देख प्रमाणीकरण करने पहुंची टीम ने भी अपना सिर पीट लिया. पूछा- जब इमली आर्गेनिक है, फिर गोडाउन में रासायनिक दवा का छिड़काव क्यों? बताते हैं कि जिम्मेदार एक-दूसरे का मुंह ताकते नजर आए. बताते हैं कि प्रमाणीकरण टीम बगैर कुछ किए दिल्ली लौट गई. इस घटना से कहीं दीवारों पर लिखी कुछ पंक्तियां याद आ गई ”कबीरा तेरे देश में भांति-भांति के मूर्ख”….

ये टीडीएस कौन है?

दुनिया भले यह जानती हो कि टीडीएस मतलब TAX DEDUCTED AT SOURCE होता है, लेकिन छत्तीसगढ़ में इस टीडीएस का मतलब कुछ और ही है !  नान घोटाले की डायरी याद है ना? जिन-जिन लोगों तक पैसा पहुंचाया जाता था, डायरी में उनके नाम शॉर्टकट में लिखे हुए थे. जैसे : ए एस, ए टी, ए जे, वी वी एस, एस एस, बी के, सी एम, आर एम…और ना जाने क्या-क्या ! कुछ इस तरह से ही शार्टकट नामों का हल्ला एक बार फिर उछल रहा है. ईडी ने सुप्रीम कोर्ट में बंद लिफाफे में करीब छह सौ पेज का जो दस्तावेज जमा किया है, चर्चा है कि इसी तरह के नामों का जिक्र उसमें मिलता है. बताया जा रहा है कि ये दस्तावेज व्हाट्स एप पर हुई बातचीत का ब्यौरा है. खैर ये ईडी जाने और सुप्रीम कोर्ट, लेकिन इन सबके बीच एक चर्चा बड़ी तेजी से सुनाई पड़ी है कि इन्हीं किसी चैट हिस्ट्री में एक नाम का शॉर्टकट टीडीएस के रूप में सामने आया है. ऐसे में प्रशासनिक गलियारों में ये पूछा जा रहा है कि आखिर ये टीडीएस है कौन? बताते हैं कि कोर्ट में जमा किए गए दस्तावेजों में ईडी के पूछे गए सवालों का ब्यौरा भी है. जैसे ईडी ने अपनी पूछताछ में किसी से पूछा है कि ये 12 क्या है? जवाब में बताया गया कि ये 12 दरअसल साड़ियां हैं. साड़ियां बांटी गई थी. ये वही संख्या है. कहते हैं कि ऐसा ही एक दूसरा सवाल है. ये 7 लाख किसे दिया? इसके जवाब में बताते हैं कि ये लिखा हुआ है कि फलाने व्यक्ति को जमीन खरीदनी थी. उसके पास 3 लाख रुपए थे, 4 की जरुरत थी. इस संदर्भ में ही 7 लाख का जिक्र है. अब ईडी वाले यह कहते सुने गए कि चुटकुले सुनने हो तो छत्तीसगढ़ में छापा मारो और वहां के अधिकारियों-नेताओं से तरह-तरह के चुटकुले सुनो !

समोसे-पेटीज का बिल…

एक विभाग के संसदीय सचिव ने खूब गंध मचा रखी है. आलम यह है कि अधिकारी अब उनके नाम से ही भौंहे टेढ़ी कर रहे हैं. संसदीय सचिव का खर्चा विभाग से चल रहा है. वैसे ये कोई नई बात नहीं होगी, कई संसदीय सचिव ऐसे होंगे, जिनकी छोटी-मोटी जरूरतें विभागों से पूरी होती होंगी. मगर ये महोदय अलग मिजाज के हैं. खाने-पीने के शौकीन लगते हैं, शायद तभी समोसे और पेटीज तक का बिल विभाग के नाम कटवा रहे हैं. बताते हैं कि 25 समोसे भी खरीदे गए, तो पर्ची विभाग के हिस्से ही आती है. एयर टिकट हो, टैक्सी चाहिए या फिर निजी दफ्तर के लिए कंप्यूटर-प्रिंटर की जरुरत, यह सब कुछ विभाग के मिसलेनियस खर्च का हिस्सा बन गया है. सुनाई पड़ा है कि संसदीय सचिव ने एक विभाग से इनोवा क्रिस्टा कार मांगी है. वह भी बास्केट सीट वाली. कहते हैं कि विभाग कभी डिमांड पूरी करने में थोड़ी ढिलाई बरतता है, तो बाकायदा संसदीय सचिव अपने नैतिक अधिकार का हवाला देकर डराने धमकाने लगते हैं. इस दलील के साथ कि कौन कितना भ्रष्टाचार कर रहा है, वह सब जानते हैं. फिलहाल अंडर स्टैंडिंग पर सब कुछ चल रहा है. 

सांप-सीढ़ी का खेल

राजनीति और शतरंज का खेल, हमेशा से ही एक-दूसरे का पर्याय माने जाते रहे. शतरंज की बिसात बिछाई जाती है, राजनीति भी ऐसी ही बिसात पर सजती-बिछती आई. प्यादे आमने-सामने की लड़ाई लड़ते हैं, वजीर-हाथी-घोड़े रणनीतिक चाल चलते हैं. मगर सियासत की नई स्क्रिप्ट में अब शतरंज की जगह सांप-सीढ़ी के खेल ने ले ली है. दरअसल ऐसा मुख्यमंत्री भूपेश बघेल मान रहे हैं. शायद तभी पिछले दिनों शतरंज खिलाड़ियों के साथ एक डिनर फंक्शन में उन्होंने कहा कि राजनीति, शतरंज से ज्यादा सांप-सीढ़ी का खेल बन गया है. 99 नंबर पर पहुंचकर भी एक छोटी गलती सीधे 3 नंबर पर ले आती है. यकीनन राजस्थान के सियासी घमासान के बीच उनकी यह टिप्पणी थी, मगर सियासी शतरंज के माहिर खिलाड़ी माने जाने वाले भूपेश बघेल यूं ही ऐसी टिप्पणी नहीं करते. उनके इस बयान के गंभीर मायने ढूंढे जा सकते हैं. बहरहाल सियासत में मोहरों का ही इस्तेमाल होता आया है. हर मोहरे का सही वक्त पर सही तरीके से इस्तेमाल करने का हुनर जानने वाला ही बड़ा सियासी पंडित बनता है. भूपेश बघेल इसके माहिर खिलाड़ी रहे हैं, अब लगता है कि सांप-सीढ़ी के खेल ने उन्हें संभलकर चलने का हुनर भी सीखा दिया है. 

नोटिस की जानकारी

बीजेपी विधायक सौरभ सिंह पढ़े लिखे नेताओं में गिने जाते हैं. आरकेसी से स्कूलिंग की है, दिल्ली से ग्रेजुएट हुए, यूपीएससी इंटरव्यू तक पहुंचे. उनकी राजनीतिक समझ ऐसे समझिए कि पिछले हफ्ते उन्होंने ईडी और आईटी को अलग-अलग चिट्ठी भेजकर उन आईएएस-आईपीएस की जानकारी मांगी है, जिन्हें नोटिस जारी किया गया. अब इससे बीजेपी विधायक की दिलचस्पी का आंकलन किया जा सकता है. आईएएस-आईपीएस जिस ढंग से काम कर रहे हैं, वह सबकी नजर में है. एक-दो भी टंग गए, तो बड़ा हिसाब-किताब हो जाएगा. सुनाई पड़ा है कि बीजेपी ऐसी ही किसी मिशन पर चल रही है. वैसे भी गैर कांग्रेसी शासित राज्यों की ओर नजरें घुमाएं तो मालूम चलेगा कि चुनावी साल में सेंट्रल एजेंसिज का किस ढंग से इस्तेमाल होता आया है. छत्तीसगढ़ में अगले साल चुनाव है. ऐसे में सवाल उठ रहा है कि चुनाव के पहले  इस रास्ते किसी तरह का पालिटकिल प्लाट सेट करने का कहीं कोई इरादा तो नहीं?