चंद्रकांत देवांगन, दुर्ग।  नेतृत्व के स्वाभाविक गुणों के साथ जन्में हेमचंद यादव ने गैरराजनीतिक युवा संगठन के माध्यम से अपने सार्वजनिक जीवन की शुरुआत की । 1988 तक बेराजगार संघ के जिला अध्यक्ष के साथ साथ जय शीतला युवा वृंद और शीतला मंदिर समिति के अध्यक्ष का पद संभाला उसके बाद भारतीय जनता पार्टी के विचारों और सिद्धांतों को स्वयं के अनुकूल पाकर 1988 में बैगापारा वार्ड अध्यक्ष के रुप में राजनीतिक जीवन में पहला कदम रखा इसके बाद निरंतर आगे बढऩे का ही क्रम चला । आज के युवाओं को राजनीति में तत्काल ही परिणाम और सफलता की चाह होती है ऐसे में हेमचंद यादव भाजपा की राजनीति में पार्टी के युवाओं के लिए आदर्श हैं उन्होनें वार्ड अध्यक्ष जैसे जमीनी स्तर पर काम करने से लेकर भाजयुमो शहर अध्यक्ष, भाजपा शहर अध्यक्ष, भाजपा जिला अध्यक्ष, विधायक और केबिनेट मंत्री तक की राजनीतिक यात्रा में कभी तत्काल परिणाम पाने और सफलता के लिए शार्टकट तरीका अपनाने की कोशिश नही की । संगठन को सर्वोपरि मानकर स्वयं को हमेशा परिस्थितियों के अनुरुप ढालना ही उनकी सफलता के कारणों में से एक है ।

1990 में हेमचंद यादव जी के भाजयुमो शहर अध्यक्ष बनने के बाद जब संगठन मंत्री स्व. गोविन्द सारंग जी का दुर्ग प्रवास हुआ तब पहली मुलाकात में ही उन्होने हेमचंद यादव के अदंर छिपी संगठन क्षमता को परख लिया और दुर्ग शहर में भाजपा का परचम लहराते देखना स्व. सारंग जी की तमन्ना थी उन्होने तत्काल हेमचंद यादव के सामने चुनौती रखते हुए कहा दुर्ग शहर के सभी 45 वार्डों में जिस दिन युवा मोर्चा की ईकाई का गठन करके उनकी सामुहिक बैठक एक स्थान पर रखोगे उसी दिन तुम शहर भाजयुमो अध्यक्ष के अपने पद से न्याय कर सकोगे । हेमचंद यादव ने इस चुनौती को स्वीकार करके एक महीने का समय लिया और इस काम को कर दिखाया । जब छितरमल धर्मशाला के हाल में स्व. गोविन्द सारंग जी ने सभी भाजयुमो वार्ड अध्यक्षों को एक के बाद एक खड़े करके उनका और उनकी टीम का परिचय लिया और वार्ड अध्यक्षों की शत-प्रतिशत उपस्थिति देखकर सारंग जी ने कहा कि अब मुझे विश्वास है कि दुर्ग में कांग्रेस का किला जरुर ढहेगा ।
1992 में शहर भाजपा अध्यक्ष का चुनाव प्रत्यक्ष मतदान से हुआ, हेमचंद यादव इस संगठनात्मक चुनाव में भाग लिया और निर्वाचित होकर शहर भाजपा की कमान संभाली । जिस ओर जवानी चलती है उस ओर जमाना चलता है इन पंक्तियों को युवा हेमचंद यादव ने अपनी टीम के साथ साबित करके दिखाया । 1993 में पार्टी ने जब पहली बार पार्टी ने उन्हे दुर्ग विधानसभा का प्रत्याशी बनाया तो पूरे जोश के साथ चुनाव लड़ा, एक तरफ सीमित साधनों के साथ कृषक पुत्र और दूसरी तरफ अथाह साधन-संसाधनों से लैस बरसों से दुर्ग की राजनीति में परंपरागतरुप से स्थापित वोरा परिवार । धारा के विपरीत बहकर भी 52088 वोट हेमचंद यादव को मिले जो कि पार्टी के पक्ष में अब तक का सबसे बड़ा आंकड़ा था । इस चुनाव में 17120 वोटों से हारकर भी कार्यकर्ताओं के जोश को हेमचंद यादव जी ने बरकरार रखा क्योंकि निराशा और हताशा जैसे शब्द हेमचंद यादव के लिए बने ही नही है ।

हेमचंद यादव जी के शहर भाजपा अध्यक्ष के सफल कार्यकाल से प्रभावित पार्टी ने उन्हे 1996 में जिला भाजपा की कमान सौंपी इस दौरान जब वे प्रदेश भाजपा की बैठकों में शामिल होने भोपाल जाया करते थे तब वहां दुर्ग विधानसभा सीट को लेकर कटाक्ष होते थे कि जिस दिन भाजपा मध्यप्रदेश की 320 सीटों में से 319 सीटें जीत लेगी तब हारने वाली जो 1 सीट बचेगी वह दुर्ग की ही सीट होगी, दुर्ग में भाजपा की जीत सिर्फ एक सपना है लेकिन कटाक्ष करने वालों को 1998 में जवाब मिल गया जब हेमचंद यादव ने पहली बार दुर्ग में भाजपा का परचम लहराया इस बार धारा के विपरीत बहने बाद भी दुगुने जोश से भरी उनकी युवा टीम ने ऐसा कमाल करके दिखाया जिसकी कल्पना पार्टी के वरिष्ठों ने भी कभी नही की थी 73766 वोट पाकर हेमचंद यादव ने 3279 वोटों के अंतर से चुनाव जीता । चुनाव जीतने के बाद हेमचंद यादव जब पहली बार विधायक के रुप में भोपाल विधानसभा पहुंचे तब वहां उनसे मिलने के लिए विधायकों का तांता लग गया हर कोई देखना और मिलना चाहता था कि कौन है वो जिसने दुर्ग में वोरा परिवार का वर्चस्व खत्म करके रिकार्ड बनाया है । कांग्रेस शासनकाल में विपक्ष का विधायक रहते हुए भी जनता के लिए संघर्ष करने में कभी पीछे नही हटे । इसी का परिणाम रहा कि 2003 में दोबारा इतिहास रचा और 107484 वोट पाकर 22573 वोटों से ऐतिहासिक जीत दर्ज की । भाजपा सरकार में जब उन्हे मंत्री बनाया गया तब दुर्ग शहर में उत्सव सा माहौल बना क्योंकि पहली बार दुर्ग शहर से भारतीय जनता पार्टी के विधायक को मंत्री का पद मिला था । जनता व कार्यकर्ता के लिए सहज उपलब्धता और सरल व्यवहार से ही हेमचंद यादव ने लोगों के दिलों में जगह बनाई है । यही कारण है कि 2008 के विधानसभा चुनाव जीतकर उन्होने हैट्रिक बनाई और दोबारा मंत्री पद की शपथ ली ।

चुनाव मैनेजमेंट में हेमचंद यादव की जबरदस्त विशेषज्ञता उन्हे बाकी राजनीतिज्ञों से अलग करती है, बतौर मुख्य चुनाव संचालक आधा दर्जन से ज्यादा चुनावों में उन्होने पार्टी को जीत दिलाई है और हर चुनाव अपने आप में चुनौतीपूर्ण था । 1998 और 1999 के लोकसभा चुनाव में उन्होने दुर्ग विधानसभा के मुख्य चुनाव संचालक की भूमिका निभाकर अपने विधानसभा में पार्टी को जिताया इसके बाद 2004 में दुर्ग लोकसभा चुनाव, 2004 में दुर्ग नगर निगम चुनाव, 2005 में भिलाई नगर निगम चुनाव, 2007 में खैरागढ़ उपचुनाव, 2009 में दुर्ग लोकसभा चुनाव, और 2009 में ही दुर्ग नगर निगम चुनाव में मुख्य चुनाव संचालक के रुप में पार्टी द्वारा दी गई चुनौती को सफलता में बदलकर दिखाया। हर बार उन्होने चुनाव मैनेजमेंट के अपने कौशल का जबरदस्त प्रदर्शन किया और पार्टी का सिर झुकने नही दिया। इन सबमें जून 2007 में खैरागढ़ विधानसभा चुनाव विशेष रुप से चर्चा करने योग्य है, क्योंकि खैरागढ़ मध्यप्रदेश-छत्तीसगढ़ में ऐसी सीट रही जिसमें कभी भाजपा नही जीती थी, राजपरिवार के वर्चस्व वाली यह सीट वास्तव में भाजपा के लिए एक कठिन चुनौती थी लेकिन हेमचंद यादव ने दुर्ग के इतिहास को दोहराते हुए कांग्रेस के इस किले को भी ढहा दिया । इस चुनाव को महल और हल की लड़ाई निरुपित कर किसान परिवार के साधारण पार्टी कार्यकर्ता कोमल जंघेल को इस चुनाव में 15987 वोटों से जीताकर पार्टी का सिर ऊंचा किया ।  राजनीति के हर क्षेत्र में चाहे नेतृत्व क्षमता का मामला हो, चाहे राजनीतिक कौशल का मामला हो या फिर चुनाव मैनेजमेंट का मामला हो सभी में उन्हे महारत हासिल है यही कारण है कि विपक्षी कितने हथकंडे अपना ले, बिना विचलित हुए वे सहज भाव से अपना काम करते हैं यही उनकी सफलता का राज है । एक कुशल राजनेता के साथ जननेता के रुप में उन्होने अपनी विशिष्ट पहचान बनाई है ।