रायपुर। मसाला एवं सुगंधित फसलों की खेती की जब भी बात आती है तो पहला नाम दक्षिण के राज्य का ही आता है. लेकिन अब सुगंधित और मसालों की खेती में छत्तीसगढ़ भी अग्रिम पंक्ति में खड़ा हो रहा है. ये सम्भव हो पाया इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय के प्रयासों से.
कोरिया जिले में विगत वर्ष किसानों के 150 एकड़ खेतों पर लेमनग्रास, पामारोसा, सिट्रोनेला, खस आदि सुगंधित फसलों का उत्पादन कर इनका तेल निकालकर बाजार में क्रय हेतु उपलब्ध कराया गया. इसी प्रकार मसाला फसलों के अंतर्गत बेमेतरा, बिलासपुर, रायगढ़ जिलों में हल्दी, अदरक और धनिया की फसलों का खेतों में उत्पादन किया जा रहा है. मिर्च, अदरक, लहसुन, हल्दी, धनिया और मेथी राज्य में उगने वाले प्रमुख मसाले हैं.
वर्ष 2020-21 में मसाले का कुल क्षेत्रफल 67,756 तथा उत्पादन 4,49,&5& मीट्रिक टन रहा है. इसी तरह राज्य में सुगंध और औषधीय पौधे में औषधीय फसलों में अश्वगंधा, सर्पगंधा, सतवार, बुच, आओला, तिखुर एवं सुगंधित फसलों जैसे कि लेमनग्रास, पामारोजा, जमारोजा, पचौली, ई-सीट्रिडोरा शामिल है. वर्ष 2020-21 में सुगन्धित और औषधीय फसलों का रकबा &520 हेक्टेयर तथा उत्पादन 22,195 मीट्रिक टन है.
बिलासपुर की जलवायु हल्की और अदरक के लिए बेस्ट
कृषि विज्ञान केंद्र के वैज्ञानिकों को यहां की जलवायु अदरक और हल्दी की खेती के लिए उपयुक्त पाई है. यही वजह है कि वे बड़े पैमाने पर यह काम करना चाह रहे हैं. एग्रीकल्चर कॉलेज के वैज्ञानिकों ने बताया यह काम किसानों को फायदे में ऊपर लेकर जाने वाला है. उनके मुताबिक बिलासपुर की मिट्टी रेतीली है, और इसमें ही अदरक और हल्दी की खेती बेहतर हो सकती है.
बेमेतरा में धनिया से मिल रही शहद की मिठास
कृषि आधारित उद्योग को बढ़ावा देने बेमेतरा जिले में धनिया का उत्पादन हो रहा है. यहां एक ब्लॉक में 60 मधुमक्खी पेटी में पालन कार्य संचालित किया जा रहा. जिले में सूरजमुखी एवं धनिया फसल के खेतों मेें मधुमक्खी पालन का कार्य हो रहा है. जिससे किसानों को दोगुना लाभ मिल रहा है.
विश्वविद्यालय को मिला बेस्ट परफॉर्मर का अवार्ड
सुपारी एवं मसाला विकास निदेशालय, कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा केरल में 14 जुलाई को आयोजित 16वें वार्षिक कार्यशाला में इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय को 2021-22 में बागवानी कार्यक्रम के अंतर्गत मसाला एवं सुगंधित फसलों के एकीकृत विकास हेतु बेस्ट परफॉर्मर अवार्ड से सम्मानित किया गया था. इस कार्यशाला में 45 विभिन्न कृषि विश्वविद्यालय एवं भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के संस्थानों के वैज्ञानिकों ने हिस्सा लिया एवं अपना वार्षिक प्रतिवेदन प्रस्तुत किया था.
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