रायपुर। छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में अन्तर्राष्ट्रीय कृषि मड़ई ‘‘एग्री कार्नीवाल 2022’’ में आज भविष्य के लिए पर्याप्त भोजन की उपलब्धता और इसके लिए अपनायी जाने वाली आधुनिक तकनीक के उपयोग से फसलों की उपज में वृद्धि पर विचार-विमर्श के लिए कार्यशाला का आयोजन किया गया. इस दौरान भावी पीढ़ी के लिए भोजन की पर्याप्त उपलब्धता को ध्यान में रखते हुए धान की रोग-प्रतिरोधक, सस्ती और यूजर फ्रेंडली वेरायटी के उत्पादन के लिए आधुनिक तकनीकी पर चर्चा और प्रस्तुतीकरण किया गया. कार्नीवाल में दस अफ्रीकी देशों युगांडा, जिम्वाम्बे, मेडागास्कर, सेनेगल, इथोपिया, नामिबिया, घाना, माली, सेशेल्स, साउथ एशियन देश नेपाल, बांग्लादेश, श्रीलंका और भारत सहित लगभग 15 देशों के कृषि वैज्ञानिक शामिल हुए.
उल्लेखनीय है कि फसल प्रजनन का यह कार्यक्रम एशिया और अफ्रीकी उप महाद्वीप में चावल प्रजनन कार्यक्रमों के आधुनिकीकरण में तेजी लाने की एक पहल है। इसका उद्देश्य अत्याधुनिक तकनीकों के विषय में क्षमता निर्माण, स्मार्ट प्रजनन प्रौद्योगिकियों, प्रजनन सूचना विज्ञान और लागत उपकरणों पर विशेषज्ञता विकसित करने के लिए विशेष व्यावहारिक प्रशिक्षण प्रदान करना है। इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय रायपुर द्वारा राज्य शासन के कृषि विभाग, छत्तीसगढ़ बायोटेक्नोलॉजी प्रमोशन सोसायटी, अन्तर्राष्ट्रीय चावल अनुसंधान संस्थान, फिलीपींस, नाबार्ड, कंसल्टेटिव ग्रुप ऑफ इन्टरनेशनल एग्रीकल्चरल रिसर्च, कृषि एवं प्रसंस्कृत खाद्य निर्यात विकास प्राधिकरण (एपीडा), एनएबीएल तथा अन्य संस्थाओं के सहयोग से अन्तर्राष्ट्रीय कृषि मड़ई ‘‘एग्री कार्नीवाल 2022’’ का आयोजन किया जा रहा है.
14 से 18 अक्टूबर तक चलने वाले इस आयोजन में पहले दिन अन्तर्राष्ट्रीय एवं राष्ट्रीय स्तर के कृषि संस्थानों के निदेशकों, कृषि वैज्ञानिकों विभिन्न कृषि उत्पाद निर्माता कम्पनियों के वरिष्ठ अधिकारियों, स्टार्टअप्स उद्यमियों एवं बड़ी संख्या में प्रगतिशील कृषक शामिल हुए.
अंतर्राष्ट्रीय धान अनुसंधान संस्थान, मनीला (फिलीपिंस) के कृषिविद् डॉ. संजय कटियार ने बताया कि हरित क्रांति के बाद लगभग 60 सालों से धान की नई किस्में लाने का काम हो रहा है. वर्तमान समय में जलवायु परिवर्तन (ग्लोबल क्लाईमेट चेंज) के कारण बाढ़, सूखा जैसी कई चुनौतियां सामने हैं. ऐसे में अच्छी और जल्दी पैदावार देने वाली रोग प्रतिरोधक फसलों की किस्मों की जरूरत है, जिससे भविष्य में बढ़ती आबादी और बदलते जलवायु के साथ भोजन की पर्याप्त उपलब्धता की चुनौतियों से लड़ा जा सकता है. इसके लिए आधुनिक ब्रीडिंग प्रोग्राम के तहत कई नई वेरायटी लाई जा रही है.
उन्होंने कहा कि जलवायु परिवर्तन के खतरे को देखते हुए खाद्य सुरक्षा के लक्ष्यों को पूरा करने के लिए दुनिया भर में चावल आधारित कृषि प्रणालियों में व्यापक परिवर्तन की आवश्यकता है. किसानों को जलवायु परिवर्तन के अनुकूल और उच्च उत्पादकता और बेहतर पोषण के साथ चावल की किस्मों की आवश्यकता है. उनकी इस जरूरत को जल्द पूरा करने के लिए आधुनिक तकनीक के माध्यम से कई नई धान की किस्में लाई जा रही है.
छत्तीसगढ़ में भी किसानों को नई किस्मों को लगाने के लिए जागरूक किया जा रहा है और सीड सिस्टम का नया एप्रोच उन तक पहुंचाया जा रहा है. यहां लगभग सभी जिलों के किसानों के लगभग 130 एकड़ खेत में आठ से दस प्रकार की नई वेरायटी को पुरानी वेरायटी के साथ लगाकर उन्हें उत्पादन का अंतर समझाया जा रहा है। उन्होंने बताया कि साउथ अफ्रीका के कई देश में अब भी धान उत्पादन की आधुनिक तकनीक का विकास नहीं हो सका है. कार्नीवाल में छत्तीसगढ़ आए विभिन्न देशों के कृषि वैज्ञानिक यहां की तकनीक सीख कर अपने देशों में लागू करेंगे.
इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय रायपुर के सहायक प्राध्यापक डॉ. अभिनव साव ने कार्यशाला में सीड ब्रीडिंग पर प्रस्तुतीकरण देते हुए बताया कि पहले धान की किस्मों की नई वेरायटी तैयार कर किसानों तक पहुंचने में लगभग 12 साल लग जाते थे. सीड ब्रीडिंग की आधुनिक तकनीक के माध्यम से अब आठ साल में ही नई वेरायटी किसानों तक पहुंच जाएगी. इसका समय और कम करने की कोशिश की जा रही है, ताकि कम समय में अधिक से अधिक कॉस्ट इफेक्टिव, यूजर फ्रेंडली वेरायटी किसानों तक पहुंच सके.
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