रायपुर. छत्तीसगढ़ के धमतरी जिले के सेमरा गांव में आज दिवाली का पर्व मनाया जा रहा. ग्रामीणों ने घर परिवार की सुख समृध्दि के लिए 18 अक्टूबर को लक्ष्मी पूजा की. दरअसल इस गांव के लोग किसी अनहोनी और अनजाने खौफ के कारण से सभी तीज त्योहारों को सदियों से पहले ही मनाते आ रहे हैं. ये परंपरा गांव में पीढ़ियों से चली आ रही है.
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देशभर में दिवाली 24 अक्टूबर को मनाया जाएगा, लेकिन सेमरा के ग्रामीण देव प्रकोप से बचने और सिरदार देव पर आस्था के चलते आज यानि 19 अक्टूबर को दिपावली का त्योहार मना रहे हैं. ग्रामीणों ने मंगलवार को लक्ष्मी पूजा की. अब इसे आस्था कहें या अंधविश्वास किसी ने इस रिवाज को तोडने की जुर्ररत नहीं की.
दीवाली का त्योहार भारत में हर साल हिंदी कैलेंडर के मुताबिक कार्तिक अमावस्या को मनाया जाता है, क्योंकि इसी दिन भगवान रामचंद्र लंका विजय करके अयोध्या लौटे थे. इसके बाद उनके लौटने की खुशी में पूरी अयोध्या को दीपों से सजाया गया था इसलिए ये दीपावली का पर्व मनाया जाता है, लेकिन धमतरी जिले का सेमरा गांव की परंपरा अजीब है. यहां दीपावली समय से करीब सप्ताहभर पहले यानी कार्तिक अष्टमी की तिथि को ही मना ली जाती है. सिर्फ दिपावली ही नहीं इस गांव में सारे तीज त्योहार इसी तरह मनाए जाने की परंपरा है.
अनहोनी से बचने ग्रामीण पहले ही मना लेते हैं त्योहार
ग्रामीणों ने बताया, दीपावली के अलावा हरेली, होली, पोला कुल चार पर्व एक सप्ताह पहले मनाते हैं. सबसे पहले सिरदार देव की पूजा करते हैं, फिर त्योहार मनाते हैं. वैसे तो पर्व मनाने के पीछे कई कारण हैं. एक साथ त्योहार मनाने से अनहोनी घटनाएं होनी की आशंका रहती है इसलिए पहले ही मना लेते हैं. परंपरा अनुसार बरसों से लक्ष्मी पूजा यानी दीपावली और गोवर्धन पूजा पहले और धनतेरस, नरक चतुर्दशी जब सभी गांव के लोग मनाते हैं, तब मनाया जाता है.
जानिए, इस गांव में आखिर ऐसी परंपरा कैसे शुरू हुई
किवदंती के अनुसार लगभग 1200 की जनसंख्या वाले इस गांव में सैकड़ों साल पहले एक बुजुर्ग आया और यहीं बस गया. उनका नाम सिरदार था. गांव वालों को उनमें आस्था थी इसलिए ग्राम देवता के रूप में उनकी पूजा अर्चना की गई. उनके ही कहने पर चार प्रमुख त्योहारों को गांववालों ने निर्धारित तिथि से एक सप्ताह पहले मनाने की शुरुआत की, तब से यह सिलसिला जारी है. जिले के ग्राम अरकार, बोहारा, हसदा, भिरई, पलारी, डोटोपार, सनौद, पड़कीभाट, कोसागोंदी सहित 40 गांव के लोग सेमरा पहुंचते हैं.
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