रायपुर। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष भूपेश बघेल ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को खुला पत्र लिखकर करारा तंज कसा है। बघेल ने खुले पत्र के जरिए रमन सरकाप पर तेंदुपत्ता में सैकड़ों करोड़ के घोटाले का आरोप लगाया है।

भूपेश बघेल का ये है खुला-पत्र
गत 14 अप्रैल को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी बस्तर के बीजापुर आए थे। आदतन उन्होंने बहुत सी बातें कहीं फिर उन्होंने तेंदूपत्ता बीनने वाली एक आदिवासी महिला को अपने हाथों से चप्पल पहनाई। मोदी जी ये चप्पल अपने साथ एयर इंडिया के विशेष विमान से लेकर नहीं आए थे। न ही ये प्रधानमंत्री का पैसा था और न मुख्यमंत्री ये रमन सिंह जी के खाते से खरीदी हुई चप्पल थी। ये चप्पल राज्य सरकार की ‘चरण पादुका योजना’ के तहत खरीदी हुई चप्पल थी।

‘चरण पादुका योजना’ तेंदूपत्ता एकत्रित करने वाले गरीब मजदूरों के लिए राज्य सरकार की ओर से चलाई जाने वाली योजना है। इसका पैसा तेंदूपत्ता की बिक्री से आते है। मजदूर जंगलों में जाकर तेंदूपत्ता की तोड़ाई करते हैं और फिर उसे एकत्रित करके बंडल बनाकर जमा करते हैं। फिर सरकार इसकी नीलामी करती है और जो पैसा आता है उसे मजदूरों को बोनस के रूप में बांटती है और तरह की योजनाएं चलाती है।
सरल भाषा में कहें तो यह चप्पल उस आदिवासी महिला की मजदूरी से खरीदी हुई चप्पल थी। जो पैसा उसे नकद मिल जाना चाहिए था उससे मुख्यमंत्री जी ने चप्पल खरीदी और फिर प्रधानमंत्री जी ने मंच पर नाटकीय अंदाज में उसे महिला को पहनाया। रमन सरकार की खासियत हो गई है कि वह जनता के पैसों को जनता को इस तरह लौटाते हैं मानों वे किसी रियासत के राजा हों और जनता का पैसा लौटाकर वे अपनी रियाया पर एहसान कर रहे हों। यह लोकतंत्र का मजाक है, लेकिन क्या करें कि मुख्यमंत्री की सामंतशाही जाती ही नहीं।
लेकिन एक चप्पल के नाम से इस आदिवासी महिला से जो धनराशि रमन सिंह सरकार ने इस साल लूट ली है उसका सच भी जानना चाहिए। रमन सिंह सरकार हर चुनाव के साल एक षडयंत्र करती है और अचानक तेंदूपत्ता की बोली लगाने वाले और तेंदूपत्ता की बोली घटकर आधी हो जाती है। ऐसी गिरोहबंदी इसलिए होती है ताकि तेंदूपत्ता ठेकेदार आधी बोली लगाकर जी भरके कमाई कर लें और उस कमाई का एक हिस्सा रमन सिंह को चुनाव फंड के रूप में दे दें।
तेंदूपत्ते की बोली कम लगने का मतलब यह है कि आने वाले साल में तेंदूपत्ता का बोनस आधा ही मिलेगा और ‘चरण पादुका योजना’ से लेकर छात्रवृत्ति देने जैसी कई योजनाएं ठीक तरह से नहीं चलेंगीं। अभी वह आदिवासी महिला रमन सिंह के सच को नहीं जानती होंगीं। हो सकता है कि वे खुश हुई हों कि प्रधानमंत्री के हाथों चप्पल पहनने का अवसर मिला। लेकिन सोचिए कि इस एक आदिवासी महिला और 14 लाख गरीब तेंदूपत्ता मजदूरों को एक चप्पल पहनाने के नाटक के साथ किस तरह से लूट लिया गया।
देखिए कि आंकड़े क्या बताते हैं। वर्ष 2007 में बोली लगाने वालों की संख्या 518 थी जो 2008 में घटकर अचानक 289 हो गई और फिर 2009 में फिर से बढ़कर 401 हो गई। वर्ष 2007 में तेंदूपत्ता विक्रय से 325.59 करोड़ की आय हुई जो 2008 में एकाएक घटकर 197.62 करोड़ हो गई फिर 2009 में 256.42 करोड़ हो गई। फिर अगले चुनाव में यानी 2012-13 में ऐसा ही हुआ। 2012 में बोली लगाने वाले 392 थे जो 2013 में एकाएक घटकर 149 रह गए। चूंकि 2014 में लोकसभा के चुनाव थे इसलिए इस साल भी बोली लगाने वाले बढ़ने की बजाय घटकर 104 ही रह गए। आय का विवरण देखें तो 2012 में आय 646.91 करोड़ की आय हुई जो 2013 में घटकर 362.13 करोड़ रह गई और 2014 में और घटकर 334.75 करोड़ रह गई।
 पिछले साल बोली लगाने वाले 302 थे और तेंदूपत्ते की बिक्री से 1358 करोड़ की आय हुई थी लेकिन इस साल बोली लगाने वाले एकाएक 138 रह गए और दो चक्रों की बिक्री के बाद आय सिर्फ 730.34 करोड़ रह गई है। अनुमान है कि इस साल सरकारी खजाने में करीब 300 करोड़ कम आएंगे यानी हर मजदूर को औसतन 2,142.85 रुपए का नुकसान हो गया। कितनी महंगी चप्पल है ये उस आदिवासी महिला और लाखों तेंदूपत्ता मजदूरों के लिए। आय घटने में इन मजदूरों का क्या दोष है? कौन करेगा इसकी भरपाई?
दूसरा बड़ा सवाल यह है कि रमन सिंह सरकार ने छत्तीसगढ़ में यह कैसा विकास किया है कि आम लोग एक जोड़ी चप्पल खरीदने लायक भी नहीं हो सके? भाजपा सरकार जिस राज्य में प्रति व्यक्ति औसत आय बढ़ जाने का जश्न मनाती है वहां अगर साल दर साल गरीबों की संख्या बढ़ती जा रही है तो यह कैसा विकास है?
तीसरा बड़ा सवाल यह है कि क्या प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जानते हैं कि जिन आदिवासियों को वे विकास की परिभाषा बता रहे थे, उन्हीं आदिवासियों के लिए लघु वनोपज के समर्थन मूल्य में उनकी सरकार ने पिछले साल 54 प्रतिशत तक की कटौती कर दी? रमन सिंह चाहते तो इसकी भरपाई कर सकते थे लेकिन पिछले साल चुनाव नहीं थे तो वे चुप्पी साध गए। इस साल चुनाव आए तो कटौती में से थोड़ी सी राशि बोनस के रूप में बांटने की घोषणा कर दी। लेकिन सच यह है कि बोनस के बाद भी लघु वनोपज के भरोसे जीवन व्यतीत करने वाले आदिवासियों को अभी भी भारी नुकसान हो रहा है। इन भोले आदिवासियों को कब तक ठगते रहेंगे रमन सिंह जी? अब बस भी कीजिए। रख लीजिए अपनी चप्पलें अपने पास, इन मजदूरों को उनके हक का पूरा पैसा दे दीजिए, चप्पलें वे खुद खरीद लेंगे।