कर्ण मिश्रा, ग्वालियर। ग्वालियर शहर अतीत के आईने में न जाने कितनी यादों को खुद में समेटा हुआ है। यहां के किले की पहचान सात समंदर पार भी बड़े अदब से है। लेकिन ये शहर किलों के अलावा भी कई और चीजों के लिए फेमस है। उन्हीं में से एक है मोती महल.. किसी जमाने में सिंधिया राजघराने का सचिवालय रहा मोती महल में आज मध्य प्रदेश शासन के सरकारी विभाग काम कर रहे हैं। मोतीमहल के इतिहास की गाथा उतनी ही जीवंत है।

19वीं शताब्दी में हुआ था निर्माण

मोती महल का निर्माण 19वीं शताब्दी में सिंधिया घराने के महाराजा जयाजीराव सिंधिया ने कराया था। कहा जाता है कि मोती महल और जयविलास पैलेस का निर्माण एक साथ कराया गया था। जयविलास पैसे जहां महाराजा के रहने की जगह थी तो वहीं मोती महल को प्रशासनिक कामकाजों की देखरेख के लिहाज से तैयार किया गया। यही वजह है कि इसे सिंधियाओं का सचिवालय भी कहा जाता है। सबसे अहम बात यह है कि कभी महाराजाओं की शान और शौकत की मिसाल रहा मोती महल आजादी के बाद विधानसभा बना था। जी हां 1947 में जब देश को आजादी मिली तो ग्वालियर को मध्य भारत की राजधानी बनाया गया। उस वक्त इसी मोती महल में मध्यभारत की विधानसभा बैठा करती थी। तब मध्य भारत में छोटी बड़ी 22 रियासतें शामिल थीं, जीवाजी राव सिंधिया 28 मई 1948 से 31 अक्टूबर 1956 तक राज्य के राजप्रमुख थे और लीलाधर जोशी पहले ‘मुख्यमंत्री’ थे। जिन्हें जीवाजी राव सिंधिया ने शपथ दिलाई थी।

महल के नाम के पीछे की ये रही वजह

अतीत के आइने में देखें तो जयाजीराव सिंधिया इसी मोती महल के अंदर बने दीवान-ए-आम और दीवान-ए-खास में सामंतों के साथ बैठकें किया करते थे और रियासत की रीतिनीति तय होती थी। मोती महल को मोती महल नाम दिए जाने की भी बड़ी दिलचस्प कहानी है। कहते हैं सिंधिया राजाओं को मोतियों का राजा कहा जाता था। लिहाजा जब उन्होंने इस महल का निर्माण कराया तो इसे मोती महल कहा जाने लगा। 

महल की खूबसूरती का राज

वैसे मोती महल के अंदर जाकर देखें तो इसे मोती महल कहने में शायद ही किसी को गुरेज हो। दीवान-ए-आम और दीवान-ए- खास की खूबसूरती इस कदर है कि बस देखते ही लोग मंत्रमुग्ध हो जाते हैं। दीवारों पर बाकायाद मोती के आकार की बनावट है। कहा तो ये भी जाता है कि दीवारों और छत पर बनी कला कृतियों पर असली सोने का पानी चढ़ा है। 

मोती महल की तीसरी मंजिल पर एक खास कमरा

मोती महल की तीसरी मंजिल पर बना एक कमरा आज भी सैलानियों के लिए आकर्षण का केंद्र रहता है। दरअसल, इस कमरे में बनी रागरागिणी कलाकृतियां इतनी जीवंत हैं कि लोग बस एकटक देखते रह जाते हैं। इस कमरे की दीवारों पर अतीत को बड़े करीब से दिखाया गया है। चित्र लगता है मानों सालों बाद आज भी बोल उठेंगे। इन चित्रों में दिखाया गया है कि कैसे सिंधिया शासक अपनी प्रजा से मिला करते थे और कैसे शिकार पर जाया करते थे। इतना ही नहीं कई चित्र प्रेरणा दायक भी हैं। इन सभी चित्रों को रागों के आधार पर बनाया गया है। ये कमरा कितना खास है इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि 6 रागों की 64 रागिणियां आपको इन चित्रों में उकेरी हुई मिल जाएंगी।

मोती महल का इतिहास अपने आप में बेहद खास है। यही वजह है कि इस खूबसूरत इमारत को सहेजने की कवायद चल रही है, सरकार इसके पुराने वैभव को वापस लाने के लिए इसका जीर्णोद्धार करवा रही है, ताकि नई युवा पीढ़ी इस ऐतिहासिक इमारत के साथ ही ग्वालियर के वैभवशाली इतिहास से रूबरू हो सके।

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