रायपुर. कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी को बैकुंठ चतुर्दशी के नाम से जाना जाता है. प्राचीन मान्यता है कि इस दिन भगवान शिव और भगवान विष्णु का मिलन होता है. बैकुंठ चतुर्दशी के संबंध में हिंदू धर्म में मान्यता है कि संसार के समस्त मांगलिक कार्य भगवान विष्णु के सानिध्य में होते हैं, लेकिन चार महीने विष्णु के शयनकाल में सृष्टि का कार्यभार भगवान शिव संभालते हैं. जब देव उठनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु जागते हैं तो उसके बाद चतुर्दशी के दिन भगवान शिव उन्हें पुन: कार्यभार सौंपते हैं. इसीलिए यह दिन उत्सवी माहौल में मनाया जाता है.

कार्तिक शुक्ल चतुर्दशी भगवान विष्णु तथा शिव जी एक बार विष्णु जी काशी में शिव भगवान को एक हजार स्वर्ण कमल के पुष्प चढ़ाने का संकल्प करते हैं. जब अनुष्ठान का समय आता है, तब शिव भगवान, विष्णु जी की परीक्षा लेने के लिए एक स्वर्ण पुष्प कम कर देते हैं. पुष्प कम होने पर विष्णु जी अपने कमल नयन नाम और पुण्डरी काक्षष नाम को स्मरण करके अपना एक नेत्र चढा़ने को तैयार होते हैं.

भगवान शिव उनकी यह भक्ति देखकर प्रकट होते हैं. वह भगवान शिव का हाथ पकड़ लेते हैं और कहते हैं कि तुम्हारे स्वरुप वाली कार्तिक मास की इस शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी बैकुण्ठ चतुर्दशी के नाम से जानी जाएगी. भगवान शिव, इसी बैकुण्ठ चतुर्दशी को करोड़ों सूर्यों की कांति के समान वाला सुदर्शन चक्र, विष्णु जी को प्रदान करते हैं. इस दिन स्वर्ग के द्वार खुले रहते हैं.