Guru Nanak Jayanti. सिखों में भी कार्तिक पूर्णिमा का विशेष महत्व है. सिख धर्म के प्रथम गुरु, नानक देव जी का जन्म भी कार्तिक पूर्णिमा के दिन हुआ था. इस दिन को सिख धर्म में प्रकाश उत्सव के रूप में मनाया जाता है. गुरुद्वारों में इस दिन विशेष कार्यक्रमों और लंगर का आयोजन होता है. इस बार ये तिथि 8 नवंबर को है. इस मौके पर जानिए गुरु नानकदेव जी से जुड़ी कुछ खास बातें.
ऐसे हुई लंगर की परंपरा की शुरुआत
गुरुनानक देव जी को धार्मिक नवप्रवर्तनक भी माना जाता है. सिख धर्म के प्रथम गुरु होने के साथ-साथ वे एक महान दार्शनिक, समाजसुधारक, देशभक्त, धर्मसुधारक, योगी आदि भी थे. गुरुनानक देव को उनके अनुयायी बाबा नानक और नानकशाह आदि नामों से भी बुलाते हैं. उन्होंने समाज में फैली कुरीतियों का कट्टर विरोध किया. 1507 में गुरुनानक देव अपने चार साथियों को लेकर तीर्थयात्रा के लिये निकल पड़े. 1521 तक उन्होंने भारत, अफगानिस्तान, फारस और अरब के अनेक स्थानों पर भ्रमण किया और मानवता की अलख जगाई. करतारपुर (अब पाकिस्तान) में उन्होंने अपने जीवन का अंतिम समय बिताया. यहीं से लंगर की परंपरा की शुरुआत भी की.
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इस समय हुई थी सिख धर्म की स्थापना
जब हिंदू धर्म पर मुगलों द्वारा अत्याचार किए जा रहे थे, तब गुरुनानक देव जी ने ही सिख धर्म की स्थापना की. सिख एक तरह से हिंदू धर्म को बचाने वाली एक सेना है. हर साल कार्तिक पूर्णिमा पर गुरुनानक देव की जयंती बड़े ही धूम-धाम से मनाई जाती है. इसे प्रकाश पर्व या प्रकाश उत्सव भी कहा जाता है.
इसलिए कहते हैं प्रकाश पर्व
साल 1469 में कार्तिक पूर्णिमा के दिन गुरु नानकदेव का जन्म हुआ था. बचपन से ही नानक सांसारिक कामों से उदासीन रहा करते थे. उनकी रूचि आध्यात्म की ओर ज्यादा थी. बचपन में उनके साथ कई चमत्कारिक घटनाएं घटी, जिन्हें देखकर गांव के लोग इन्हें दिव्य मानने लगे. बाद में उनके जन्मदिवस को प्रकाश पर्व के रूप में मनाया जाने लगा. प्रकाश पर्व पर गुरुद्वारों में विशेष दीवान सजाया जाता है, अरदास होती है. प्रार्थना सभाओं को आयोजन किया जाता है.
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