रायपुर. प्रत्येक के मन में यह प्रश्न अवश्य आता है कि उसका भावी जीवनसाथी कैसा होगा, क्या करता होगा, कहा से होगा तथा उसका व्यवहार कैसा होगा और उसके साथ रिश्ता कैसे निभायेगा या कितना प्यार करेगा. यह सारी बातें किसी जातक की कुंडली के सप्तम भाव, सप्तमेष तथा सप्तमस्त ग्रह, द्ववादश भाव या भावेश तथा नवांश के अध्ययन से जाना जा सकता है. सप्तमभाव या सप्तमेष का किसी भी प्रकार से मंगल, शनि या केतु से संबंध होने पर विवाह में बाधा, वैवाहिक सुख में कमी का कारण बनता है.

वहीं, शुक्र से संबंधित हो तो वर आकर्षक तथा प्रेमी होगा तथा उसकी आर्थिक स्थिति तथा भौतिक चाहत भी अच्छी होगी. गुरू, बुध होने पर जीवनसाथी बुद्धिमान, उच्च पद में हो सकता है किसी भी प्रकार से राहु से संबंध बनने पर व्यसनी, काल्पनिक व्यक्तित्व हो सकता है. वहीं चंद्रमा के होने पर भावुक किंतु आलसी होगा. सूर्य या राहु से संबंधित होने पर राजनीति या प्रशासन से संबंधित होने के साथ रिश्तों में अलगाव दिखाई दे सकता है. ऐसी स्थिति सप्तम या सप्तमेश का किसी भी प्रकार का संबंध 6, 8 या 12 वे भाव से बनने पर भी दिखाई देता है.

वहीं, पर लग्नेष, पंचमेष, सप्तमेष या द्वादषेष की युक्ति किसी भी प्रकार से शनि के साथ बनने पर प्रेम विवाह का योग बनता है साथ ही दूसरे, तीसरे, पंचम या दसम स्थान पर विशेष ध्यान देना आवश्यक होता है, क्योंकि इससे पति की आयु, आरोग्यता, कार्य, धन और सामाजिक स्थिति का निर्धारण किया जाता है. अतः इन ग्रहों के विपरीत फलकारी होने पर या कू्रर ग्रहों से आक्रांत होने पर सर्वप्रथम इन ग्रहों से संबंधित निदान कराने के उपरांत ही विवाह कराना उचित होता है. साथ ही कुंडली मिलान में 9 ग्रहों के मिलान कर विवाह किए जाने पर अपना मनचाहा जीवनसाथी तथा परिवार की प्राप्ति होती है.

किसी भी जातक के लिए मनचाहा जीवन साथी प्राप्त करने के पूर्व कुंडली के ग्रह दोषो का निवारण कर लेना चाहिए. वर के लिए अर्क विवाह और कन्या के लिए कुंभ विवाह करना चाहिए. इसके अलावा प्रतिकूल ग्रहों की शांति के लिए ग्रहशांति, मंत्रजाप, दान तथा हवन कराना चाहिए.