कर्ण मिश्रा,ग्वालियर। 26 नवंबर यानी आज संविधान दिवस है. इस मौक पर ग्वालियर की सेंट्रल लाइब्रेरी खास आकर्षण का केंद्र रहती है, क्यूोंकि यहां संविधान की मूल प्रतियों में से एक प्रति मौजूद है. जिसे लोग देखने दूर दूर से आते है. खास बात यह है कि इसे अब डिजिटल मोड़ में भी उपलब्ध कराया गया है. जिससे संविधान के हर के पेज को लोग बारीकी से जूम कर पढ़ सकते है.

दरअसल 1950 में जब भारत का संविधान तैयार हुआ था, उस संविधान की मूल प्रति की एक कॉपी ग्वालियर की सेंट्रल लाइब्रेरी में रखी हुई है. संविधान की इस प्रति में देश के पहले राष्ट्रपति डॉ. राजेन्द्र प्रसाद और प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू सहित संविधान सभा के सदस्यों के हस्ताक्षर हैं. संविधान लागू होने के समय देशभर में कुल 16 मूल प्रतियां जारी की गई थीं, भारत सरकार ने एक मूल प्रति सिंधिया राजवंश को दी थी. ये वही कॉपी है.

1950 में सिंधिया राजवंश को मिली ये मूल प्रति सन 1956 में महाराज बाड़ा स्थित सेंट्रल लाइब्रेरी में सुरक्षित रखी गई. लाइब्रेरी में यह प्रति 31 मार्च 1956 में लाई गई थी. प्रबंधकों का कहना है संविधान का ये कागज बेहत उच्च गुणवत्ता वाला है जिसकी उम्र एक हजार साल तक रहेगी. हर साल स्वतंत्रता दिवस, गणतंत्र दिवस और संविधान दिवस के मौके पर इसे लाइब्रेरी में आने वाले लोगों के देखने के लिए रखा जाता है. सामान्य तौर पर यह अलमारी में सुरक्षित रहती है. आज संविधान दिवस के मौके पर इसे देखने के लिए काफी लोग आते हैं. संविधान की प्रति देखने आने वाले भी इसे अनमोल मानते हैं. साथ ही उनका कहना है इससे हमें देश के गौरवशाली संविधान के बारे में जानने का मौका भी मिलता है.

संविधान की कुछ खास बातें

बाइट-दिनेश बख्शी-छात्र(25 sec)

वीओ-आइए संविधान की कुछ खास बातें जिनसे आपको रूबरू कराते है..

  • वर्ष 29 अगस्त 1947 को संविधान की ड्राफ्टिंग कमेटी का गठन हुआ.
  • संविधान सभा ने भारत के संविधान को 2 वर्ष 11 माह 18 दिन में 26 नवम्बर 1949 को पूरा कर राष्ट्र को समर्पित किया.
  • 26 नवंबर 1949 को पूर्ण रूप से संविधान तैयार हुआ.
  • 26 जनवरी 1950 को इसे देश में लागू किया गया.
  • संविधान की इस मूल प्रति को 31 मार्च 1956 को ग्वालियर लाया गया था.
  • संविधान के आवरण पृष्ठ पर स्वर्ण अक्षर अंकित हैं.
  • प्रति में कुल 231 पेज हैं.
  • संविधान की इस प्रति में देश के पहले राष्ट्रपति डॉ. राजेन्द्र प्रसाद और प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के हस्ताक्षर हैं.
  • संविधान सभा के 285 सदस्यों के मूल हस्ताक्षर भी इस प्रति में मौजूद हैं.

देश के अलग-अलग स्थानों में रखी संविधान की 16 मूल प्रतियों में से एक मूल प्रति जो ग्वालियर में है, उसे अब डिजिटली भी पढ़ा जा सकता है. केंद्रीय पुस्तकालय में ही भारत के संविधान की मूल प्रति को स्मार्ट सिटी ने डिजिटलाइज किया है. इस प्रति को पुस्तकालय में लगी बड़ी टच स्क्रीन के माध्यम से एक-एक पेज पलटकर पढ़ा जा सकता है.

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16 मूल प्रतियों में से यह एक होने के कारण केंद्रीय पुस्तकालय में इसे सहेजकर रखा जाता था और अक्सर लोगों को दिखाने में परेशानी आती थी. स्मार्ट सिटी ने विशेष परियोजना के तहत इस मूल प्रति को डिजिटल कर दिया है. अब पुस्तकालय में लगी बड़ी स्क्रीनों पर सिर्फ हाथ के इशारे से संविधान के पन्नाों को पलटकर पढ़ा जा सकता है. इसके लिए स्मार्ट सिटी ने विशेषज्ञों के माध्यम से संविधान की प्रति के एक-एक पन्नो को हाइ डाट्स पर इंच (डीपीआइ) पर स्कैन किया गया. प्रत्येक पन्नों को दो-दो बार स्कैन किया गया. इसके बाद इसे आपस में मर्ज किया गया, ताकि कहीं भी कोई मिस प्रिंटिंग न रह जाए. वर्षों पुरानी प्रति होने के कारण यह भी ख्याल रखा गया कि स्कैनिंग की प्रक्रिया के दौरान इसे कोई नुकसान नहीं पहुंचे. फिर इसे साफ्टवेयर के माध्यम से इंटरेक्टिव स्क्रीन पर डिस्प्ले किया गया है.

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संविधान की मूल प्रति के डिजिटलाइज होने का लाभ यह है कि अब सालभर लोग इसे देख सकते हैं. इससे पहले साल में सिर्फ तीन दिन 26 जनवरी, 15 अगस्त और 26 नवंबर यानी संविधान दिवस के दिन ही मूल प्रति को आम जनता के लिए एक शो-केस में रखा जाता था. हालांकि आज भी पुस्तकालय में यह मूल प्रति लोगों के लिए उपलब्ध रहेगी, लेकिन लोग अब इसके डिजिटल वर्जन को देखना भी पसंद कर रहे हैं. इसका कारण है कि मूल प्रति को वे हाथ नहीं लगा सकते हैं, लेकिन डिजिटल प्रति को वे जूम कर आसानी से पढ़ सकते हैं.

https://youtu.be/FKknu63dKoM

गौरतलब है कि भारत का संविधान 26 नवंबर 1949 को बनकर तैयार हुआ था. संविधान सभा के प्रारूप समिति के अध्यक्ष डॉ. भीमराव आंबेडकर के 125वें जयंती वर्ष के रूप में 26 नवम्बर 2015 को पहली बार भारत सरकार द्वारा संविधान दिवस सम्पूर्ण भारत में मनाया गया. 26 नवम्बर 2015 से प्रत्येक वर्ष सम्पूर्ण भारत में संविधान दिवस मनाया जा रहा है. इससे पहले इसे राष्ट्रिय कानून दिवस के रूप में मनाया जाता था.

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