सुरेन्द्र जैन, धरसीवां। एक बेबस बाप था, मौत हो गई, एक बेबस बेटा था, मौत हो गई, एक बेबस पति था, मौत हो गई, एक बेबस उम्मीद थी, मौत हो गई. अब एक सक्षम फैक्ट्री है, जो बेबस परिवार को मरने के लिए छोड़ दिया है. वे तीन दिनों से भूखे-प्यासे कंपनी के सामने मुआवजे की गुहार लगाते रहे, लेकिन बात बड़ी फैक्ट्री की थी, बात बेबस परिवार की थी, मौत एक गरीब ड्राइवर की हुई थी, इसलिए फैक्ट्री प्रबंधन का दिल नहीं पसीजा. आखिरकार मौत देके भी जीत निको स्टील प्लांट की हुई. बड़ी फैक्ट्री से बेबस परिवार हार गया. परिजन आंखों में आंसू और कंधे पर लाश लेकर निकल गए.

दरअसल, 32 वर्षीय निको के हेडरा चालक गणेश देवांगन तीन दिन पूर्व बुधवार को रोजाना की तरह ड्यूटी आया था, लेकिन घर वापस नहीं पहुचा. फैक्ट्री प्रबंधन ने हार्ट अटैक से मौत की सूचना दी थी. इसी सूचना पर गुरुवार को पुलिस अंबेडकर हॉस्पिटल पहुची. जहां मृतक का पोस्टमार्टम हुआ.

प्रबंधन और मृतक के रिश्तेदारों के बीच उचित मुआवजा तय न होने से परिजनों ने शव नहीं लिया था. गुरुवार दिनभर फैक्ट्री के सामने धरना प्रदर्शन चला. बात 6 लाख पर अटकी रही, जबकि परिजन 25 लाख की मांग रखे थे.

गणेश की मृत्यु के तीसरे दिन शुक्रवार को सुबह से ही परिजन रिश्तेदार शुभचिंतक फैक्ट्री के सामने एकत्रित होने लगे. काफी देर प्रदर्शन चला. उधर कुछ परिजनों के साथ प्रबन्धन की चर्चा हुई. परिजन 6 लाख का मुआवजा और पेंशन पर संतुष्ट होकर बाहर आ गए.

समझौते के बाद जब एक प्रतिनिधि ने मृतक के रिश्तेदारों से चर्चा की. उन्होंने बताया कि इतनी बड़ी कंपनी से कहां तक लड़ते. तीन दिन हो गए अंतिम संस्कार भी करना है. उन्हें दुख इस बात का है कि पूर्व में अन्य फैक्ट्रियों में श्रमिकों की मृत्यु पर 15 से 20 लाख तक मृतक के परिजनों को मिले.

मृतक अपने पीछे दो बच्चे और पत्नी के अलावा वृद्ध मां को छोड़ गया है, जिनका लालन पालन बेटा करता था, क्योंकि मृतक के पिता का पहले ही निधन हो चुका है. इस दौरान नम आंखों से सांकरा सिलतरा के जायसवाल निको स्टील प्लांट को लेकर परिजनों ने कहा कि इतनी बड़ी कम्पनी से हम कब तक लड़ेंगे ?

Read more- Health Ministry Deploys an Expert Team to Kerala to Take Stock of Zika Virus