रायपुर। आरक्षण संशोधन विधेयक को लेकर महीने भर से प्रदेश में चढ़ा सियासी पारा छत्तीसगढ़ विधानसभा के शीतकालीन सत्र के पहले दिन अपने शबाब पर था. सदन में विपक्ष सरकार को कॉन्टिफाइबल डाटा आयोग की रिपोर्ट पर घेरना चाह रही थी, वहीं सत्तापक्ष राज्यपाल के आरक्षण विधेयक पर हस्ताक्षर नहीं करने को मुद्दा बनाते हुए भाजपा की घेराबंदी कर रही थी.
छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय के 19 सितम्बर को एक फैसले ने छत्तीसगढ़ में सियासत की हवा बदल दी. हाई कोर्ट ने पूर्ववर्ती सरकार के 58 प्रतिशत आरक्षण के फैसले को असंवैधानिक बताकर रद्द कर दिया था. ऐसे में प्रदेश की कांग्रेस सरकार ने एक-दो दिसम्बर को विधानसभा का विशेष सत्र बुलाया. दो दिसंबर को नया आरक्षण संशोधन विधेयक पारित कर राज्यपाल को हस्ताक्षर के लिए भेजा गया.
नए आरक्षण संशोधन विधेयक में अनुसूचित जाति के लिए 13%, अनुसूचित जनजाति के लिए 32%, अन्य पिछड़ा वर्ग के लिए 27 प्रतिशत और सामान्य वर्ग के गरीबों के लिए 4% आरक्षण की व्यवस्था की गई है. विधेयक के विधानसभा से पारित होने के तत्काल बाद मंत्रिमंडल के सदस्यों के राज्यपाल अनुसुईया उइके को राजभवन जाकर विधेयक सौंपा था. उम्मीद थी कि राज्यपाल जल्द विधेयक पर हस्ताक्षर कर प्रदेश में नए आरक्षण की राह प्रशस्त करेंगी, लेकिन ऐसा हुआ नहीं है.
राज्यपाल उइके ने विधिक सलाहकारों से मशविरा के बाद 14 दिसंबर को राज्य सरकार को आरक्षण विधेयक के मद्देनजर दस सवाल पर जानकारी मांगी थी. इनमें विधेयक का आधार बने क्वांटिफायबल डाटा आयोग की रिपोर्ट भी शामिल थी. सरकार को ओर से इन सवालों का जवाब भेजा गया है, लेकिन राजभवन के कथित पत्र में आयोग की रिपोर्ट नहीं भेजने की बात सामने आई है.
विधानसभा के शीतकालीन सत्र के पहले दिन इसी क्वांटिफायबल डाटा आयोग पर विपक्ष सरकार को घेरते नजर आई, वहीं दूसरी ओर सत्तापक्ष सदन के अंदर और बाहर भाजपा की रणनीति को निशाना बनाते हुए राज्यपाल के हस्ताक्षर नहीं करने के पीछे पार्टी को जिम्मेदार ठहराया गया. सदन में आज की कार्यवाही में मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की बजाए उनके सहयोगियों ने मोर्चा संभाला हुआ था.
कांग्रेस विधायक मोहन मरकाम ने आरक्षण विधेयक के सर्वसम्मति से पारित होने के 32 दिन बाद भी राज्यपाल के दस्तखत नहीं किए जाने के पीछे बीजेपी को घेरा. उन्होंने भाजपा पर सदन में कुछ और कहने और बाहर कुछ और करने का आरोप लगाया. कैबिनेट मंत्री कवासी लखमा ने भी भाजपा पर आरक्षण को रोकने और राज्यपाल को गुमराह करने का आरोप लगाया. उन्होंने इसकी निंदा करते हुए कहा कि बीजेपी के खाने के दांत अलग और दिखाने के दांत अलग है.
वहीं दूसरी ओर भाजपा की ओर से अजय चंद्राकर ने मोर्चा संभालते हुए कहा कि राज्यपाल पर निशाना साधने पर आपत्ति जताई. उन्होंने कहा कि जो उत्तर राजभवन में भेजा है, उस पर विधानसभा में चर्चा क्यों नहीं हो सकती. कॉन्टिफाइबल डाटा आयोग की रिपोर्ट में क्या है, इसे सिर्फ मुख्यमंत्री जानते हैं, छत्तीसगढ़ में कोई दूसरा व्यक्ति नहीं जानता. वहीं बृजमोहन अग्रवाल ने सरकार पर क्वांटिफिएबल डाटा आयोग की रिपोर्ट पर चर्चा करने से बचने का आरोप लगाया. उन्होंने कहा कि जब इस आधार पर विधेयक लाया है तो इसकी रिपोर्ट पेश करने से क्या दिक्कत है.
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