कर्ण मिश्रा, ग्वालियर। मध्यप्रदेश के ग्वालियर में गर्भस्थ शिशु लिंग परीक्षण मामले में सजा का ऐलान हो गया है। आरोपित कपिल पांडेय को दो साल की सजा और 20 हजार रुपये का अर्थदंड लगाया है। उसका साथ देने वाली नर्स प्रियंका नरवरिया को एक साल की सजा और चार हजार रुपये का जुर्माना लगाया है। इधर अपर सत्र न्यायालय ने जीडीए की अपील को स्वीकर करते हुए 16 करोड़ से अधिक की बेशकीमती जमीन को GDA की घोषित किया है।
लिंग परीक्षण मामले में साल
विशेष न्यायालय ने शिशु लिंग परीक्षण करने वाले आरोपी कपिल पांडेय को दो साल की सजा सुनाई है। 20 हजार रुपये का जुर्माना भी लगाया है। साथ ही नर्स प्रियंका नरवरिया को एक साल की सजा और चार हजार रुपये का जुर्माना लगाया है।
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अभियोजन अधिकारी अभिषेक सिरोठिया ने बताया कि ग्वालियर कलेक्टर को 22 अप्रैल 2014 में एक गोपनीय सूचना मिली। उन्हें बताया कि सरस्वती नगर में एक लिंग परीक्षण का सेंटर संचालित है। इस सेंटर पर अवैध रूप से भ्रूण का लिंग परीक्षण किया जा रहा है। इसी सूचना पर स्वास्थ विभाग की टीम ने रंगे हाथ पकड़ा। विश्विविद्यालय थाना में PC PNDT एक्ट के तहत मामला दर्ज हुआ था। इसके बाद कोर्ट में परिवाद दायर किया। वहीं आज दोनों आरोपितों को कोर्ट ने सजा सुनाई है।
GDA की हुई 16 करोड़ की बेशकीमती जमीन, ये है पूरा पूरा मामला
ग्वालियर जिला आदलत में अपर सत्र न्यायालय ने ग्वालियर विकास प्राधिकरण यानी कि GDA की उस अपील को स्वीकार कर लिया जिसमें ग्राम केशोबाग की बेशकीमती 5 बीघा जमीन की डिक्री को चुनौती दी थी, कोर्ट ने जमीन को जीडीए के हक की माना है। इस तरह लम्बी सुनवाई के बाद जीडीए अपनी 16 करोड़ से अधिक की बेशकीमत जमीन को बचाने में कामयाब हो गया है।
आपको बता दें कि गांव केशोबाग में सर्वे क्रमांक 320 322 की 5 बीघा से अधिक जमीन विशेष स्कीम के लिए अधिसूचित थी, लेकिन इस जमीन पर ग्यासिराम और अन्य ने अपना-अपना दावा मजिस्ट्रेट के यहां पेश किया था। न्यायिक मजिस्ट्रेट ने 31 अक्टूबर 2014 को ग्यासीराम और अन्य के पक्ष में फैसला दिया। इस फैसले के खिलाफ GDA और अंबेडकर गृह निर्माण सहकारी समिति ने अपील दायर की थी।
जीडीए की ओर से पैरवी करते हुए सीनियर एडवोकेट राघवेंद्र दीक्षित ने तर्क दिया कि जमीन जीडीए को आवंटित है, इस पर विशेष स्कीम के तहत कार्य किया जाएगा। चूंकि निचली अदालत ने तथ्यों पर विचार नहीं किया और फैसला देने में गलती की है। वह इस पर जमीन का दावा करने वाले प्रतिवादियों की ओर से अपील का विरोध करते हुए अपना कब्जा बताया। कोर्ट ने दोनों पक्षों को सुनने के बाद जीडीए की अपील को स्वीकार कर लिया और 16 करोड़ से अधिक की बेशकीमती जमीन को जीडीए की घोषित किया।
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