जयपुर. मकर संक्रांति के मौके पर राजस्थान के जयपुर में होने वाली पतंगबाजी पूरी दुनिया में मशहूर है. यहां की पतंगबाजी देश-दुनिया में खास पहचान रखती है. इसे लेकर जयपुर के बाजार रंग-बिरंगी पतंगों से दुल्हन की तरह सज चुके हैं और लोग इसकी खरीददारी में जुट गए है. पतंग बाजार में लोगों की काफी भीड़ देखी जा रही हैं, जयपुर में पतंग विक्रेताओं की अलग ही पहचान है. शहर में पतंगों का होल सेल मार्केट है, जो जयपुर से पूरे देश में पतंगों को भेजते हैं.

राजधानी में सालभर होता है उत्सव का इंतजार
देश के विभिन्न हिस्सों में मकर संक्रांति का त्यौहार धूमधाम से मनाने को लेकर तैयारियां चल रही है. राजस्थान और गुजरात की बात कर तो इस पर्व को लेकर महिलाएं, बुजुर्ग, बच्चे से लेकर सभी आयु वर्ग के लोगों को साल भर इंतजार रहता है. दो दिनों तक पूरे राजस्थान में पतंगबाजी होती है. अब मकर संक्रांति पर पतंगबाजी उत्सव को पूरे देश ने अपना लिया है. 14 जनवरी को सभी पतंगबाजी के शौकीन आसमान पर दावं-पेंच लगाना शुरू कर देते हैं.

सालभर चलती है जयपुर में तैयारी
मकर संक्रांति को लेकर जयपुर में सालभर पतंग-मांझा बनाने का कार्य चलता है. राजधानी के प्रमुख बाजारों में पतंग दुकानों की साज-सज्जा किसी ज्वेलरी शोरूम से कम नहीं दिख रही है. आधुनिकता के दौर में 14 जनवरी को आने वाले पतंग उत्सव को लेकर बाजार में तरह-तरह की काइट उपलब्ध है. तीन दिवसीय जयपुर का काइट फेस्ट दुनियाभर के पतंगबाजों का कुंभ कहा जाता है.

उत्तरायण पर रंग-बिरंगा हो जाता है आसमान
राजधानी का आसमान रंग-बिरंगी पतंगों से पट जाता है. जहां नजऱ दौड़ाई जाए वहां केवल और केवल पतंगे ही दिखाई देती है. सभी लोग अपने घरों की छतों पर पतंगे ले लेकर पहुंच जाते हैं. इस दौरान सभी के बीच में होड़ लगी रहती हैं कि कौन अपनी पतंगे कम कटवाकर दूसरों की कितनी ज्यादा पतंगे काटता है. इसी के साथ अपनी पतंग को बिना कटवाए सबसे ऊंची ले जाने की भी होड़ लगी रहती हैं कि तभी कोई आता हैं और उस पतंग से पेंचे लेकर उसे काट देता है.

क्या होता है उत्तरायण ?
दरअसल, मकर संक्रांति पर्व का संबंध सूर्य देव का अपनी दिशा बदलने से हैं. छह माह तक दक्षिणायन में रहने के पश्चात सूर्य देव इसी दिन उत्तरायण अर्थात दक्षिण से उत्तर दिशा में प्रवेश कर जाते हैं. इसके बाद शरद ऋतु से ग्रीष्म ऋतु की शुरुआत हो जाती हैं और राते छोटी व दिन लंबे हो जाते हैं.

राजस्थान में पतंगबाजी का इतिहास
पतंगबाजी का इतिहास करीब 150 साल पुराना बताया जाता है। जयपुर में पतंगबाजी का कनेक्शन नवाबों के शहर यूपी के लखनऊ से जुड़ा है। इतिहासकारों के मुताबिक जयपुर राजघराने के महाराजा सवाई जय सिंह के बेटे महाराजा राम सिंह द्वितीय (18&5-1880 ई.) सबसे पहले पहले लखनऊ से पतंग लेकर आए थे। महाराजा रामसिंह द्वितीय को पतंगबाजी का इतना शौक था। आजादी के पहले जयपुर में आमेर रोड पर जलमहल और लालडूंगरी के मैदान में पतंगबाजी के मुकाबले होते थे. कई राज्यों से पतंगबाज इसमें हिस्सा लेते थे.

जयपुर के इतिहासकार बताते हैं कि, महाराजा रामसिंह चंद्रमहल की छत से बड़ी-बड़ी पतंग उड़ाया करते थे. ये तुक्कल कपड़े से बने आदम कद की पतंग होती थी. इनके पैरों में चांदी की छोटी-छोटी घुंघरियां लटकी रहती थी.