जमीन का खेल (1)
राजधानी में जमीन का बड़ा खेल चल रहा है. करोड़ों रुपए की जमीन इधर से उधर की जा रही है. रसूखदार, भू माफिया और पुलिस के चंद अफसरों के गठजोड़ से एक ऐसा सिंडिकेट बन गया है, जिनकी नज़र पुरानी विवादित ज़मीनों पर है. खासतौर पर ऐसी ज़मीनें जो रिकॉर्ड पर मौजूद है, लेकिन मौके पर नहीं है. मसलन अगर बेतरतीब मकानों के निर्माण की वजह से जमीनों पर या तो कब्जा कर लिया गया, या फिर सड़क वगैरह बना दिया गया. रसूखदार और भू माफिया ऐसी जमीनों के दस्तावेज औने-पौने दाम पर खरीद रहे हैं. इन्हें जमीन से मतलब नहीं, दस्तावेजों से हैं. मौके पर जमीन उगाने का हुनर इनके पास है. चर्चा है कि ये रसूखदार-भू माफिया उस जमीन के खसरा नंबर पर बनाए गए मकानों का चिन्हांकन करते हैं. इसके बाद पुलिस में शिकायत दी जाती है कि फलाने व्यक्ति ने उसकी जमीन पर कब्जा कर मकान बना रखा है. रसूखदारों- भू माफिया से सांठगांठ करने वाले पुलिस के अफसर अवैध ढंग से संबंधित कब्जाधारी व्यक्ति को नोटिस देकर बुलाते हैं. जमीन के वास्तविक कब्जाधारी व्यक्ति को डराया-धमकाया जाता है. ना मानने पर पिटाई तक की जाती है. एग्रीमेंट पेपर पर दस्तखत कराए जाते हैं, जिस पर ये लिखवाया जाता है कि अमुक जमीन पर उसने कब्जा कर रखा है, जिसे कुछ महीनों में छोड़ दिया जाएगा. एग्रीमेंट के साथ पुलिस संबंधित व्यक्ति से चेक भी मांगती है. माने कोर्ट का काम पुलिस कर रही है. सुनते हैं कि इस काम के लिए पुलिस के अफसरों को जमीन की वास्तविक कीमत का 25 से 30 फीसदी तक हिस्सा मिल रहा है. यानी साफ है पुलिस अफसरों की भूमिका इस पूरे खेल में एक पार्टनर की बन गई है.
नए नवेले आईपीएस (2)
चर्चा है कि जमीन के अवैध सिंडिकेट चलाने वाले चेहरों में एक नए नवेले आईपीएस भी शामिल हैं, जो पिच पर आते ही पहली बॉल पर छक्का जड़ रहे हैं. वरना एक वक्त था, जब हुनर सीखने में सालों लग जाते थे. नई-नई वर्दी का जोश और जुनून ऐसा होता था कि अपराधियों के मन में पुलिस का खौफ बस जाता था. मगर अब यह सब गुजरे जमाने की बात हो गई है. आज तस्वीर पूरी तरह बदल चुकी है. बताते हैं कि पुलिस के इस नए नवेले अफसर की रुचि जमीन कारोबार में है. शायद यही वजह है कि रसूखदारों और भू माफियाओं के साथ मेलजोल बढ़ाकर जोरशोर से काम किया जा रहा है. इधर-उधर की कमाई के लिए शराब, हुक्का बार जैसे जरिये खत्म हो गए हैं, ऐसे में जमीन ही है, जो सौ टका फायदा देने वाला नया जरिया बन गया है. अपराध के बढ़ते आंकड़ों पर अब बात नहीं होती, बात होती है कि जमीन के ऐसे मामले ढूंढ ढूंढ कर सामने लाने की, जिससे कमाई का मीटर चलता रहे. अब ऐसे अफसरों का काम महज ला एंड आर्डर, प्रिवेंशन अगेंस्ट क्राइम या फिर किसी अपराध की जांच तक सिमट कर नहीं रह गया, अब बड़े मामलों को सुलझाने बड़े कांट्रैक्ट लिए जा रहे हैं. हालांकि खबर है कि नए आईपीएस को ऊपर के अफसरों ने खूब खुराक दी है. बहरहाल इन सबके बावजूद पुलिस समाज में सुरक्षा का भाव पैदा करती है. ऊँघती रातों में वीरान सड़कों पर कोई राहगीर अगर संकट में आता है, तो उसके जेहन में सबसे पहले कोई आता है, तो वह पुलिस ही है. भला लालच से भरे चंद अफसरों की कपटता का दोष पूरी पुलिस बिरादरी पर कैसे थोपा जा सकता है?
राहत की सांस
पिछले दिनों आई एक खबर ने जनकपुर से लेकर कोंटा तक पूरे सिस्टम को हिलाकर रख दिया. दरअसल खबर थी कि झीरम घाटी मामले में एक बड़ी गिरफ्तारी होने वाली है. एनआईए ने आमद दे दी है. खबर सरपट दौड़ पड़ी. सिस्टम फौरन हरकत में आया. कहते हैं कि एयरपोर्ट से लेकर राज्य की सीमा तक पूछताछ शुरू हो गई कि क्या कहीं से एनआईए की बड़ी टीम आई है? घंटों हाथ-पैर मारने के बाद सिस्टम ने राहत भरी सांस ली. मालूम पड़ा कि एनआईए से जुड़े एक अफसर जो इन दिनों अध्ययन अवकाश पर विदेश में हैं, वह अपने निजी काम से छत्तीसगढ़ आए हैं. छत्तीसगढ़ उनका कैडर स्टेट है. अपने इस दौरे में उन्होंने कई अफसरों से मुलाकात भी की. चर्चा है कि जिस तेजी से खबर फैली, उससे कईयों की सांसें लगभग अटक गई थी.
‘शाह’ का दौरा
केंद्रीय मंत्री अमित शाह के दौरे ने राज्य में बीजेपी के चुनावी अभियान का शंखनाद कर दिया है. शाह का अपने भाषण में यह कहना कि 2024 के पहले 2023 में राज्य में बीजेपी की सरकार बनानी है, यह बताने के लिए काफी है कि इस दफे चुनाव अभियान की कमान अप्रत्यक्ष रूप से शाह के हाथ आ सकती है. कोरबा में शाह ने अपने भाषण के जरिए राज्य सरकार पर जमकर हमला बोला. इस हमले में डीएमएफ में भ्रष्टाचार एक अहम मुद्दा रहा. शाह ने इसका जिक्र करते हुए कहा कि- 9 हजार 300 करोड़ रुपए राज्य को दिए गए, लेकिन इन पैसों से जनता का नहीं, कांग्रेस नेताओं का विकास हुआ. टिन-टप्पर में रहने वाले कांग्रेस नेताओं के बड़े घर बन गए. बाइक पर चलने वाले आडी में घूमने लग गए. इन सियासी हमलों के परे एक चर्चा यह है कि कोरबा के जरिए अमित शाह का मकसद उत्तर छत्तीसगढ़ पर फोकस करना है. छत्तीसगढ़ में कोरबा ऐसी संसदीय सीट है, जहां मोदी लहर के बावजूद बीजेपी को हार का सामना करना पड़ा था. बीजेपी ऐसी हारी हुई सीटों पर फोकस कर रही है. बस्तर में धर्मांतरण बीजेपी के एक बड़ा मुद्दा है ही. इन सबके बीच एक बड़ा सवाल यह है कि अमित शाह ने अपने लोकसभा प्रवास के लिए कोरबा को ही क्यों चुना? महज सिर्फ सियासी गुणा-भाग के तहत अमित शाह कोरबा आए? शाह की जगह कोई और बड़ा नेता भी कोरबा आ सकता था? अमित शाह ही क्यों? चर्चा है कि शाह के इस दौरे के पीछे पांच बड़ी वजह हैं. पहला- कोल प्रोडक्शन बढ़ाना, गेवरा रोड से पेंड्रा तक की रेल लाइन के रुके प्रोजेक्ट को गति देना, भारतमाला प्रोजेक्ट के तहत बनने वाला कॉरिडोर के काम में तेजी लाना और वन धन केंद्र खोला जाना. अब दूसरा बड़ा सवाल, ये सब किसके लिए? दूसरी अहम बात ये कि लेमरू प्रोजेक्ट हो या हसदेव का मुद्दा, ये दोनों मामले कोरबा जिले में आते हैं. शाह की दिलचस्पी की एक बड़ी वजह कहीं इसके इर्द-गिर्द तो नहीं है, फिलहाल ये महज सवाल है.
सरकारी हेलीकाॅप्टर में रमन
परिस्थितियां ऐसी बनी कि पूर्व मुख्यमंत्री डॉक्टर रमन सिंह एक बार फिर सरकारी हेलीकॉप्टर में सवार हुए. हुआ कुछ यूं कि केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह को झारखंड के चाईबासा से प्लेन से रायपुर आना था. इसके बाद रायपुर से हेलीकॉप्टर में सवार होकर कोरबा जाना था. डॉक्टर रमन सिंह भी उनके साथ जाते, लेकिन ऐन वक्त पर कार्यक्रम बदल गया. शाह चाईबासा से सीधे कोरबा चले गए और रमन रायपुर में ही फंस गए. इस बीच खबर आई कि अमित शाह के एक हेलीकॉप्टर में तकनीकी दिक्कत आ गई. ऐसे में राजिम दौरे पर गए मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने उन्हें अपना हेलीकॉप्टर दे दिया और खुद सड़क मार्ग से रायपुर लौट आए. पूर्व मुख्यमंत्री उस हेलीकॉप्टर से ही कोरबा पहुंच सके. राजनीति में सियासी विरोध की अपनी जगह है, मगर इतनी शिष्टाचार बाकी रहनी ही चाहिए कि आड़े वक्त एक-दूसरे की मदद की जा सके.