पीताम्बर जोशी, नर्मदापुरम। जेडीयू के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष स्वर्गीय शरद यादव देह त्याग देने के बाद भी कई परंपराओं को तोड़ते हुए मिसाल दे गए। उनकी आखिरी इच्छा के मुताबिक अस्थियों को नदी में नहीं बहाई गई, बल्कि दो अलग-अलग कलशों के अंदर संग्रह कर एक को गांव में जमीन के अंदर दबा दिया गया। दूसरा कलश कर्मभूमि पटना में दबाया जाएगा। ताकि नदियों को दूषित होने से बचाया जा सके। बेटी सुभाषिनी ने सोशल मीडिया पर फोटो और पोस्ट शेयर करते हुए इस बात की जानकारी दी।
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सुभाषिनी ने सोशल मीडिया पर पोस्ट करते हुए लिखा है कि स्वर्गीय शरद यादव जी ताउम्र प्रकृति से बेहद करीब रहे और उन्हें नदियों, पेड़-पौधों और पशुओं के साथ-साथ अपने जन्म भूमि और कर्म भूमि से बेहद लगाव था। उनकी हमेशा से एक इच्छा रही थी कि जब भी उनका देहावसान हो तो उनकी अस्थियों को नदी में बहाने के बजाय जन्मभूमि बाबई के आखमऊ और कर्म भूमि मधेपुरा में जमीन के अंदर दबा दिया जाए। उनकी भावना के अनुरूप हमने अस्थियों को दो कलशों के अंदर संग्रह किया है। एक कलश उनके पैतृक गांव में जहां उनका दाह संस्कार हुआ है वहां स्थापित कर दिया गया है और दूसरे कलश को उनकी कर्मभूमि मधेपुरा पटना से सड़क मार्ग द्वारा मंडल मसीहा के समर्थकों के अंतिम दर्शन हेतु लेकर जाया जाएगा।
मुत्यु भोज कार्यक्रम भी नहीं होगा
सुभाषिनी ने पोस्ट करते यह भी लिखा है कि पिताजी मरणोपरांत भोज कार्यक्रम के खिलाफ थे। उनका मानना था कि इससे समाज में खाई बढ़ती है। चाहे अमीर हो या गरीब। सब को सम्मान का अधिकार होना चाहिए। जो सक्षम है उनके द्वारा भोज के आयोजन से गरीबों को भी इस प्रथा का अनुसरण करना पड़ता है। गरीब सक्षम नहीं होते और उन पर कर्ज तथा आर्थिक दबाव बढ़ता है, इसलिए भोज प्रथा को बढ़ावा नहीं देना चाहिए। स्वर्गीय शरद यादव के विचार को आगे बढ़ाते हुए परिजनों ने भोज कार्यक्रम नहीं रखने का निर्णय लिया है। इसके बदले दिल्ली में एक शोक बैठक का आयोजन किया जाएगा।
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