एनके भटेले, भिंड। भारत में हर गांव की अपनी एक अलग विशेषता है। ऐसा ही चंबल के भिंड जिले का ‘कमई का पुरा’ गांव शुद्धता के लिए मशहूर है। जिला मुख्यालय से 10 किलोमीटर दूर क्वारी नदी के किनारे बसे इस गांव में कोई भी दूध नहीं बेच सकता, जबकि हर घर में दो-दो दुधारू मवेशी हैं। ग्रामीणों के मुताबिक उनके पूर्वज और आराध्य बाबा ने गांव में दूध की बिक्री की मनाही कर दी थी। यही मान्यता इस गांव की पहचान है।
हर घर दो दुधारू मवेशी, लेकिन दुध नहीं बेच सकते
गांव में रहने वाले एक बुजुर्ग ने बताया कि उनके आराध्य हरसुख बाबा में सभी को गहरी आस्था है। हरसुख बाबा ने समाधि लेने से पहले उनके पूर्वजों से कहा था कि कभी दूध नहीं बेचना। खुद पीयो और दूसरों को पिलाओ। उनकी बात का पालन कई पीढ़ियां गुजरने के बाद भी यहां के लोग करते आ रहे हैं। आज भी इस गांव में कोई दूध नहीं बेचता है। अगर किसी गरीब या जरूरत मंद को दूध चाहिए भी तो उसे मुफ्त में ही दूध दे दिया जाता है।
शुद्ध घी बेचने की है इजाजत
एक अन्य ग्रामीण ने बताया कि अगर किसी को दूध चाहिए होता है तो हम बिना पैसे लिए मुफ्त में दूध उसे दे देते हैं, लेकिन बाबा की बात नहीं काटते। जब हमने ग्रामीणों से पूछा कि हर घर में दो मवेशी है तो इतना दूध निकालने पर उसका होता क्या है। जवाब देते हुए उन्होंने बताया कि, हमें दूध बेचने की इजाजत नहीं है। लेकिन हम घी बेच सकते हैं। वो भी बिल्कुल शुद्ध। इस लिए मवेशियों से निकाला गया दूध घर के उपयोग के लिए निकालकर बचे हुए दूध से मक्खन निकाला जाता है। पूरे हफ्ते इसी तरह मक्खन इकट्ठा किया जाता है और मंगलवार के दिन इस मक्खन से घी तैयार किया जाता है। इस तरह दूध भी खराब नहीं होता और चार पैसे भी मिल जाते हैं।
दूर-दूर से घी खरीदने आते हैं लोग
ग्राम कमई का पुरा में तैयार होने वाले घी की डिमांड बहुत है। बाजार में पैकेट वाला घी महज 500 रुपए किलो तक में उपलब्ध है। वहीं इस गांव से घी लेने के लिए लोग 1 हजार रुपए प्रति किलो तक कीमत चुकाते हैं और दूर-दूर से घी खरीदने आते हैं।गांव में लगभग 40 से 50 घर किसानी के अलावा इस तरह घी बनाकर अपनी गुजर बसर करते हैं। इस परंपरा से हटकर एक सवाल खड़ा हुआ कि इस गांव का अगर कोई परिवार दूध बेचना शुरू कर दे तो क्या होगा। इस सवाल का जवाब देते हुए ग्रामीणों ने बताया कि हरसुख़ बाबा की बात को अनदेखा करने से भारी नुकसान होता है। जब भी गांव में किसी ने पैसों के बदले दूध बेचना शुरू किया तो उसकी भैंस या मवेशी बीमार हो जाती है। दूध देना बंद कर देती है या मर जाती है। दूध में मिलावट नहीं होने का असर भी स्थानीय लोगों पर साफ नजर आता है। क्योंकि लोग हमेशा तरोताजा और स्वस्थ रहते हैं।
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