रायपुर. अमरकंटक से उद्गम नर्मदा मध्यप्रदेश और गुजरात की जीवनदायनी नदी है. मां नर्मदा का धार्मिक महत्व गंगा से भी ज्यादा है. सनातन पद्धति में देवी-देवता की परिक्रमा करने का विधान है. इसीलिए मंदिरों में परिक्रमा पथ बनाए जाते हैं. सिर्फ देवी-देवताओं की ही नहीं पीपल, तुलसी समेत अन्य वृक्षों के अलावा, नर्मदा नदी की परिक्रमा भी की जाती है. क्योंकि सनातन धर्म में प्रकृति को भी साक्षात भगवान समान माना गया है.

नर्मदा नदी भारत की एकमात्र ऐसी नदी है जिसकी परिक्रमा की जाती है. आमतौर अनेक नदियों से कोई ना कोई कथा जुड़ी हुई है, लेकिन मां नर्मदा इनमें सबसे भिन्न हैं. यह एकमात्र ऐसी नदी है जिसके नाम से पुराण है. बड़े-बड़े ऋषि मुनि नर्मदा के तटों पर गुप्त तप करते हैं. मान्यता है कि एक बार क्रोध में आकर इन्होंने अपनी दिशा परिवर्तित कर ली और चिरकाल तक अकेले ही बहने का निर्णय लिया. नर्मदा से निकले हुए पत्थरों को शिव का रूप माना जाता है. ये स्वयं प्राण प्रतिष्ठित होते हैं अर्थात् नर्मदा के पत्थरों को प्राण प्रतिष्ठित करने की आवश्यकता नहीं होती.

जीवनदायनी है मां नर्मदा

भारत के मध्य भाग में पूर्व की दिशा से पश्चिम की तरफ बहने वाली मध्यप्रदेश और गुजरात की प्रमुख नदी के रूप में जानी जाती है. नर्मदा नदी की पूजा भी भारत की प्रसिद्ध नदी गंगा की तरह ही की जाती है. भारत में गंगा से भी पवित्र नदी के रूप में नर्मदा नदी को माना जाता है. ऐसी पुरातन मान्यता है कि गंगा स्वयं प्रत्येक साल नर्मदा से भेंट एवं स्नान करने आती हैं. मां नर्मदा को मां गंगा से भी अधिक पवित्र माना गया है. कहा जाता है कि इसी वजह से गंगा हर साल स्वयं को पवित्र करने नर्मदा के पास पहुंचती हैं. यह दिन गंगा दशहरा का माना जाता है.

नर्मदा शब्द का अर्थ

नर्मदा शब्द का अर्थ होता है, सुख देने वाली. नर्मदा शब्द दो शब्दों से मिलकर बना है, पहला नरम और दूसरा दा. नरम का अर्थ होता है, सुख और दा का अर्थ होता है देने वाली. मां नर्मदा अपने उद्गम स्थल अमरकंटक से निकलकर छत्तीसगढ़ से होते हुए मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, गुजरात में पहुंचकर लगभग 1310 किलोमीटर की दूरी तय करने के बाद भरुच के आगे खंभात की खाड़ी में से होते हुए समुद्र में जाकर मिल जाती है.