रायपुर. छत्तीसगढ़ के हर क्षेत्र में महिलाओं ने अपनी आय का एक निश्चित साधन ढूंढ लिया है. सरगुजा से लेकर बस्तर तक महिलाएं आत्मनिर्भर हो रही हैं. जिसमें वारदान बनी है मशरुम की खेती. जिसका छोटी जगह में भी आसानी से उत्पादन किया जा सकता है. दंतेवाड़ा इलाके में गांव की महिलाएं मशरूम बेचकर अपने और परिवार की समृद्धि का मार्ग प्रशस्त कर रही हैं. महिलाओं ने पहले कृषि विज्ञान केंद्र से मशरूम की खेती का प्रशिक्षण लिया और फिर खुद खेती करने के कार्य को शुरू कर दिया है. आज यहां की महिलाएं मशरूम बेचकर काफी अच्छी आय प्राप्त कर रही हैं.

इन दिनों भारत में मशरूम काफी ट्रेंड में है. यह एक तरह का फंगी/कवक है, जो अपने अनोखे टेस्ट और हेल्थ बेनिफिट्स के लिए मशहूर है. इसमें एंटीऑक्सीडेंट्स, प्रोटीन, विटामिन-डी, सेलेनियम और जिंक की काफी अच्छी क्वांटिटी होती है. यही वजह है कि कुछ खास वैरायटी के मशरूम का सेवन दवा के तौर पर भी किया जाता हैं. दुनियाभर में मशरूम की कई वैरायटी पाई जाती है. कुछ की कीमत सामान्य होती है तो कुछ किस्में लाखों रुपए में बिकती हैं. कुछ किस्में बाजार में आसानी से उपलब्ध हैं तो कुछ इतनी दुर्लभ और महंगी होती हैं कि इन्हें खरीदने के आपको लाखों रुपये खर्च करना पड़ सकता है.

कांकेर के सोमेश साहू ने मशरूम की खेती कर सभी का ध्यान अपनी ओर खींचा है. उसने बातया खेती में किसान को 75 फीसदी से ज्यादा का मुनाफा है. झोपड़ी या छप्पर का घर बनाकर मशरूम की खेती से किसान लाखों की बचत कर सकता है. छोटे किसान पेड़ के नीचे भी मशरूम की खेती में हाथ आजमा सकते हैं. अम्बिकापुर जनपद के सोहगा गांव में महिलाओं द्वारा मशरूम की जो खेती की गई है. उसके पहले ही दिन 4.5 किलोग्राम आयस्टर मशरूम का उत्पादन हुआ है. जिसे समूह की महिलाओं ने 200 रुपये प्रति किलो की दर से बेचकर 900 रुपये की कमाई की है.

वैज्ञानिकों ने बताया है कि आयस्टर मशरूम को ढिंगरी के नाम से भी जाना जाता है. इस मशरूम की खेती लगभग साल भर की जा सकती है. इसके लिये अनुकूल तापक्रम 20-&0 डिग्री सेन्टीग्रेट और आपेक्षित आद्र्रता 70-90 प्रतिशत होती है. उपचारित भूसा और पैरा कुट्टी जब भीगकर 40 किलो वजन कम हो जाता है. उसमें 3 प्रतिशत की दर से मशरूम स्पॉन (बीज) को मिलाते है. मशरूम का उत्पादन एक अच्छा बिजनेस आइडिया है. इसमें लागत बहुत कम लगती है. उत्पादन कक्ष भी कच्चे और कम लागत पर बनाए जा सकते हैं. एक किलो ढींगरी मशरूम पर 10-15 रुपए लागत आती है और बाजार में मांग के अनुसार 200-250 रुपये प्रति किलो ढींगरी मशरूम बेची जा सकती है.

प्रदेश में मिल रहा मशरूम की खेती का प्रशिक्षण

अखिल भारतीय समन्वित अनुसंधान परियोजना मशरूम के अलावा इंदिरा गांधी कृषि विव के माध्यम से सभी कृषि केंद्रों में मशरूम उत्पादन के लिए किसानों को प्रशिक्षण दिया जा रहा है.यहां पर मशरूम की कई तरह की प्रजातियां जैसे कि बटन मशरूम, ऑयस्टर, पैडी स्ट्रॉ, मिल्की मशरूम को उगाने की तकनीक बताई जा रही है. इंदिरा गांधी कृषि विश्विद्यालय में शैक्षणिक व मशरूम में एक्सपर्ट डॉ. एम.पी ठाकुर के अनुसार विभिन्न जिलों में तैयार हो रहे मशरूम काफी दूर तक पहुंच रहा है. ग्रामीण क्षेत्र की महिला और किसानों की आर्थिक स्थिति में काफी ज्यादा सुधार हो रहा है.