राजस्थान. दूर तक पसरे घास के मैदानों में दौड़ते और ऊंची छलांगें मारते कृष्णमृगों (Blackbucks) और सुनहरी हिरणियों को देखना कितना मनभावन होता है, ये जानने और इसका प्रत्यक्ष अनुभव करने के लिए आपको राजस्थान के ताल छापर कृष्ण मृग अभयारण्य में आना होगा. थार के द्वार पर स्थित विश्व विख्यात तालछापर अभयारण्य यूं तो अनेक प्रजाति के पशु-पक्षियों का ठिकाना है, लेकिन यहां काले हिरणों की वजह से इस अभयारण्य को विशेष अभयारण्य दर्जा मिला है. यहां कुलांचे मारते काले हिरण (Blackbucks) पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित कर लेते हैं.
आजादी के बाद राज्य सरकार ने 1962 में इसे वन्यजीव आरक्षित क्षेत्र घोषित कर यहां शिकार पर पूर्ण रूप से प्रतिबंध लगा दिया है. वर्तमान में यहां 4 हजार से ज्यादा हिरण हैं. मेल और फीमेल हिरण बचपन में भूरे ही होते हैं, लेकिन मेल बड़ा होने के साथ-साथ काला होना शुरू हो जाता है.
333 वैरायटी के पक्षी
इस अभयारण्य में 333 वैरायटी के पक्षी भी पाए जाते हैं. इनमें लॉन्ग इयर्ड आउल, स्टेप ईगल, व्हाइट ब्रॉड बुश चैट, व्हाइट टेल ईगल, स्पोटेड फ्लाई कैचर, कुरजा पक्षी, येलो आइड पिजन, हैरियर प्रमुख हैं. साथ ही यहां करीब दो दर्जन तरह की घास भी पाई जाती है. इनमें मोथिया, धामण, करड, डाब, लापला प्रमुख है.
ऐसे पहुंचे अभयारण्य
सड़क मार्ग-चुरू से 85 किमी दूर ये ताल छापर अभयारण्य नोखा-सुजानगढ़ हाईवे पर है. टूरिस्ट यहां से बस और टैक्सी लेकर ताल छापर सेंचुरी पहुंच सकते हैं. हवाई मार्ग-यहां तक पहुंचने का सबसे नजदीकी जयपुर एयरपोर्ट है, जहां से सेंचुरी की दूरी 215 किमी है. रेलमार्ग-तालछापर सेंचुरी जाने का सबसे नजदीकी रेलवे स्टेशन छापर रेलवे स्टेशन है.
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