Column By- Ashish Tiwari , Resident Editor

एक था कलेक्टर…यकीन मानिए ये अफसर जादूगर है. हरफनमौला खिलाड़ी की तरह बड़े-बड़े खेल खेल जाते हैं, मगर किसी को भनक तक नहीं लगती. जिस जिले की कलेक्टरी करते हुए बड़ा नाम कमाया, वहां एक बड़े कांड में फंसते-फंसते रह गए. बात थोड़ी पुरानी है, मगर मौजूं है. इसकी चर्चा अब तक मंत्रालय के गलियारों में की जाती है. एक केंद्रीय एजेंसी ने एक औद्योगिक समूह के ठिकानों पर छापा मारा था. इस छापे में बड़े पैमाने पर दस्तावेज मिले थे. इन दस्तावेजों में से एक दस्तावेज आदिवासियों की जमीन खरीदी से जुड़ा था. आदिवासियों की सैकड़ों एकड़ जमीन कलेक्टर की अनुमति से खरीदा-बेचा गया. बाद में इन जमीनों को एक औद्योगिक समूह ने खरीद लिया. केंद्रीय एजेंसी ने कलेक्टर को नोटिस जारी कर जवाब-तलब किया. नोटिस मिलते ही तब कलेक्टर की धड़कने तेज हो गई. कहा जाता है कि आदिवासियों की करीब 125 एकड़ जमीन खरीदने-बेचने की अनुमति कलेक्टर ने ही दी थी. आनन-फानन में कलेक्टर ने अपने ही आदेश को रद्द कर दिया. इस बीच केंद्रीय एजेंसी ने औद्योगिक समूह की प्राॅपर्टी अटैच कर लिया था. बताते हैं कि देश के एक बड़े औद्योगिक समूह ने राज्य की इस औद्योगिक इकाई को जब टेक ओवर किया, तब पूरा मामला रफा-दफा हो गया. वैसे ये इकलौते कलेक्टर नहीं थे, जिन्होंने आदिवासियों की जमीन खरीदने की अनुमति दी हो. उनसे पहले भी दो कलेक्टर इसी काम में जुटे थे. कलेक्टर जो कर ले कम है. आखिर अपने जिले के राजा जो ठहरे. डीएमएफ के आने के बाद कलेक्टरों को पर लगे सो अलग. 

माय फुट’

पिछले दिनों मध्यप्रदेश की एक महिला आईपीएस से जुड़ी एक खबर आई. खबर ये थी कि महिला आईपीएस ने अपने बंगले के रोजमर्रा के कामकाज के लिए 44 कांस्टेबलों को तैनात कर रखा है. इनके पति आईएएस हैं, उनके कोटे से 12 कर्मचारी और रखे गए हैं. खाना बनाना, बंगले की साफ-सफाई, झाड़ू-पोछा-कपड़ा, माली, मोची, स्वीपर जैसे कामों के लिए कई-कई लोगों को तैनात किया गया है. हिसाब-किताब निकाला गया तो मालूम चला कि इन कर्मचारियों की तनख्वाह ही करीब 27 लाख रुपए होती है. हर किसी का माथा ठनक सा गया. चर्चा छिड़ी की इतने अर्दली तो मुख्यमंत्री निवास में भी नहीं होते होंगे, जितने इस दंपत्ति ने अपने घर में तैनात कर रखे हैं. इधर पड़ोसी राज्य छत्तीसगढ़ तक इसकी गूंज सुनाई पड़ी. मालूम पड़ा कि यहां भी कई खटराल अफसर रहे हैं, जिन्होंने अपनी झांकी बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी. राज्य गठन के बाद के शुरुआती सालों में एक डीजीपी हुए थे. बताते हैं कि उन्होंने उत्तरप्रदेश के अपने गांव में करीब दर्जन भर कांस्टेबल तैनात कर दिया था, जिनका काम घर और खेत-खलिहान की रखवाली करना था. खैर ये पुरानी बात हो गई. हाल के दिनों में तस्वीर कुछ बदली नहीं है. अफसरों के बंगलों में तैनात अर्दलियों की एक सूची ही निकाल लें, तो मालूम चल जाएगा कि मध्यप्रदेश की इस आईपीएस-आईएएस दंपत्ति के मुकाबले तो नहीं, मगर तामझाम में कहीं कोई कमी नहीं है. ब्यूरोक्रेसी का यही जलवा है. आम आदमी कब इलीट क्लास का बन जाता है, पता ही नहीं चलता. फिर यूपीएससी के इंटरव्यू में ब्यूरोक्रेसी में आने के लिए बताया गया ‘उद्देश्य’ भी किनारे हो जाता है. जुबां पर आई विल सर्व फार माय कंट्री की उनकी रटी रटाई लाइन के आखिरी हिस्से में दो शब्द और जुड़ जाते हैं, ”माय फुट”.

जंगल सफारी

नवा रायपुर स्थित एशिया के सबसे बड़े जंगल सफारी को लेकर चर्चा जोरों पर है कि इसका प्राइवेटाइजेशन कर दिया जाएगा. फिलहाल सफारी के भीतर चलने वाली गाड़ियों को प्राइवेटाइज किया जा रहा है. सफारी के भीतर चलने वाली बसों और बैटरी चलित गाड़ियों का संचालन निजी हाथों में सौंपने की तैयारी तेज हो गई है. अब तक इसका संचालन विभाग खुद करता था. सफारी में कुल 26 बसें हैं. इनमें पांच एसी और बाकी नान एसी हैं. इन बसों में से 17 बसें चलने की स्थिति में है. दिलचस्प बात यह है कि विभाग को हड़बड़ी इतनी ज्यादा है कि छुट्टी के दिन अफसर टेंडर प्रक्रिया और नियम शर्तों को लेकर बैठक कर रहे हैं. विभाग के ही कुछ उच्च पदस्थ अफसर हैं, जो यह आशंका जता रहे हैं कि धीरे-धीरे पूरा का पूरा जंगल सफारी ही कहीं निजी हाथों में ना सौंप दिया जाए. सरकारी संपत्ति के प्राइवेटाइजेशन के अपने खतरे हैं. 

होटल बुक

इस महीने के आखिरी हफ्ते रायपुर में कांग्रेस के सभी दिग्गज नेताओं का जमावड़ा होगा. छत्तीसगढ़ में कांग्रेस का पूर्ण अधिवेशन होने जा रहा है. करीब-करीब 15-20 हजार लोग देशभर से रायपुर पहुंच रहे हैं. जाहिर है कांग्रेस संगठन को इतने लोगों की व्यवस्था करनी होगी. चर्चा है कि शहर का ऐसा कोई होटल बाकी नहीं रह गया है जिसकी बुकिंग ना की गई हो. यहां तक की शादी पैलेस में भी ठहराने का प्रबंध किया जा रहा है. खबर है कि कुछ शादी पैलेस और होटल पहले से ही शादी समारोह के लिए बुक किए जा चुके थे, जिन्हें अब कैंसल किया जा रहा है. अब जिन परिवारों में शादियां है, वह कांग्रेस को कोस रहे हैं. लोग कह रहे हैं कि-हमने कार्ड बांट दिया है. नई जगह ढूंढ भी लें, तो बांटे गए कार्ड का क्या? 

बृजमोहन का दम…

बृजमोहन अग्रवाल बीजेपी के दमदार नेता है. 5-6 फरवरी को उनकी बेटी की शादी है और 6-7 फरवरी को बीजेपी ने प्रदेश भर के आला नेताओं की एक बड़ी बैठक बुलाई है. जाहिर है, तमाम नेता रायपुर आएंगे. सभी बैठक में शामिल होंगे और शादी में शरीक भी. अब इसे संयोग माने या फिर उनका दम. संगठन के नेता कहते हैं कि बैठक आगे-पीछे भी हो सकती थी, लेकिन यह बृजमोहन अग्रवाल का प्रभाव है कि बैठक ऐसी तारीख में रखी गई कि सभी बड़े नेता एकजुट हो सके. बैठक के बहाने प्रदेश प्रभारी ओम माथुर, राष्ट्रीय सह संगठन मंत्री शिव प्रकाश, क्षेत्रीय संगठन मंत्री अजय जामवाल, सह प्रभारी नितिन नवीन की मौजूदगी होगी. बृजमोहन अग्रवाल के देशभर में संपर्क हैं. पिछले दिनों दिल्ली, भोपाल, कर्नाटक समेत देश के कई राज्यों में खुद जाकर उन्होंने वरिष्ठ नेताओं को शादी में आने का न्यौता दिया है. कई नामचीन हस्तियों के शामिल होने की अटकलें भी हैं. चुनावी साल है, जाहिर है शादी के बहाने दमखम दिखाने का एक मौका भी उनके हिस्से आया है.