14 फरवरी के दिन देशभर में मातृ-पितृ पूजन दिवस भी मनाया जा रहा है. सनातन, संस्कृति और संस्कारों का हवाला देते हुए कुछ सामाजिक लोगों का ऐसा भी मानना है कि पश्चिमी सभ्यता से आया वैलेंटाइन्स-डे बाजार का फैलाया मकडजाल है. अगर आपको किसी से असल प्रेम है तो वह आपके माता-पिता ही हो सकते हैं. इसी के मद्देनजर बीते कुछ सालों से मातृ-पितृ पूजन दिवस मनाने की परंपरा सी चल पड़ी है.

स्कूल में हुए कार्यक्रम भी बच्चों ने अपने माता-पिता का विधिवत पूजन किया. 14 फरवरी सिर्फ प्रेमी-प्रेमिका से ही नहीं बल्कि माता-पिता से भी प्यार जताने का दिन होता है. हिंदू धर्म ने इस मातृ-पितृ को पूजने के इस दिन को लेकर बड़ी ही रोमांचित कहानी है, जिसे आप पहले भी कई बार देख और सुन चुके होंगे. Read More – वैलेंटाइन डे : वॉट्सएप के इन खास स्टिकर्स से करें अपने प्यार का इजहार…

मातृ-पितृ पूजन दिवस की कहानी

प्रचलित कथा के अनुसार एक बार भगवान शंकर और माता पार्वती के दोनों पुत्र गणेश और कार्तिकेय के बीच होड़ लगी कि, कौन बड़ा है? इस बात का निर्णय लेने के लिए शिव-पार्वती जी ने दोनों से कहा कि जो संपूर्ण पृथ्वी की परिक्रमा करके सबसे पहले यहां पहुंचेगा, उसी को बड़ा माना जाएगा. ये बात सुन भगवान कार्तिकेय अपने वाहन मयूर लेकर पृथ्वी की परिक्रमा करने निकल पड़े. लेकिन भगवान गणेश चुपके से एकांत में जाकर बैठ गए और सोचने लगे. कुछ देर बाद वो उठे और झट से माता पार्वती और पिता शिव के पास जाकर हाथ जोड़कर बैठ गए. Read More – वैलेंटाइन डे : वॉट्सएप के इन खास स्टिकर्स से करें अपने प्यार का इजहार…

भगवान गणेश ने दोनों की आज्ञा लेकर अपने माता-पिता को ऊंचे स्थान पर बिठाया, उनके चरणों की पूजा की और परिक्रमा करने लगे. माता -पार्वती ने पूछा, इस पर गणेश ने कहा-सर्वतीर्थमयी माता. सर्वदेवमयो पिता. यानी सारी पृथ्वी की परिक्रमा करने से जो पुण्य होता है, वही पुण्य माता की परिक्रमा करने से हो जाता है. पिता का पूजन करने से सब देवताओं का पूजन होता है क्योंकि पिता देवस्वरूप हैं, यह शास्त्रवचन है.