Share Market News: शेयर बाजार में इन दिनों गिरावट आई है और निवेशक तनाव में हैं। बाजार में गिरावट के बीच निवेशकों को डर है कि कहीं यहां लोअर सर्किट न लग जाए। क्या आप जानते हैं कि शेयर बाजार में अपर सर्किट या लोअर सर्किट क्या होता है और क्यों होता है?

आम निवेशक कभी-कभी बहुत हैरान होते हैं कि शेयर की कीमत कैसे बढ़ती और घटती रहती है। अधिकांश शेयरों की आपूर्ति और मांग के कारण शेयरों का मूल्य बढ़ता और घटता रहता है। जब भी किसी शेयर की मांग बढ़ती है तो उसकी कीमत बढ़ जाती है।

जब लोग शेयर बेचना शुरू करते हैं तो शेयर का मूल्य घटने लगता है। किसी भी शेयर बाजार में 2 तरह के सर्किट होते हैं। पहला अपर सर्किट और दूसरा लोअर सर्किट। जिस प्रतिशत पर इस सर्किट को चार्ज किया जाएगा, वह एक्सचेंज द्वारा तय किया जाता है।

लोअर सर्किट क्या है

कई बार किसी कंपनी के शेयर तेजी से गिरते हैं। ऐसे में उस शेयर में ज्यादा गिरावट न हो, इसलिए सर्किट लगाया गया है. ऐसे में अचानक सभी लोग किसी कंपनी के शेयर बेचने लगते हैं तो उस शेयर की कीमत कुछ हद तक कम हो जाएगी और उसकी ट्रेडिंग बंद हो जाएगी। मूल्य में कमी की इस सीमा को निचला सर्किट कहा जाता है। निचले सर्किट में 3 चरण होते हैं। यह 10 फीसदी, 15 फीसदी और 20 फीसदी की गिरावट पर लगाया जाता है।

अपर सर्किट क्या है

कई बार किसी कंपनी में निवेशकों की दिलचस्पी बढ़ जाती है। ऐसे में उस कंपनी के शेयर की कीमत आसमान छूने लगती है। ऐसे में एक अतिरिक्त सर्किट लगाने का प्रावधान है। जैसे ही शेयर की कीमत एक निश्चित सीमा तक पहुंचती है, उसमें एक अपर सर्किट लग जाता है और उसकी ट्रेडिंग बंद हो जाती है। अपर सर्किट में भी 3 चरण होते हैं। यह 10 फीसदी, 15 फीसदी और 20 फीसदी की दर से लगाया जाता है।

सर्किट का प्रावधान कब शुरू हुआ?

शेयर बाजार में अपर सर्किट और लोअर सर्किट का इतिहास 28 जून 2001 से शुरू हुआ था। इसी दिन बाजार नियामक सेबी ने सर्किट ब्रेकर की व्यवस्था की थी। इस सिस्टम का पहली बार इस्तेमाल 17 मई 2004 को किया गया था।

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