मोदी सरकार की नीतियों से रोटी, रोजगार पर बढ़ते हमलों और मंहगाई से आम जनता के जीवन पर निरंतर हमलों के खिलाफ और अडानी पर लगे आरोपों की संयुक्त संसदीय समिति से जांच की मांग को लेकर माकपा ने देश भर में फरवरी अभियान का आवाहन किया है. इस अभियान के तहत पूरे प्रदेश में नुक्कड़ सभाएं, रैली, जत्थे आदि निकालकर 22 से 28 फरवरी को प्रदेश के सभी जिलों में प्रदर्शन आदि आयोजित किए जाएंगे.

माकपा राज्य समिति ने उक्त जानकारी देते हुए कहा कि एक अंतर्राष्ट्रीय रिसर्च संस्था हिंडनबर्ग रिसर्च द्वारा अदानी समूह पर लगाए आरोप के खुलासे के बाद आम जनता की बैंकों और एलआईसी जैसी संस्था में जमा बचत पर भी खतरे उत्पन्न हुए हैं. इस रिपोर्ट के उजागर होने के बाद अडानी समूह के पूंजीकरण में 50 अरब डालर से ज्यादा की गिरावट आई है. निश्चय ही इसका खामियाजा आम निवेशक ही भुगत रहे हैं. माकपा सहित पूरे विपक्ष की इसकी संयुक्त संसदीय समिति से जांच की मांग को मोदी सरकार अस्वीकार कर रही है. जबकि यह एक महाघोटाला है.

पार्टी ने कहा कि अर्थव्यवस्था मंदी की चपेट में है. आर्थिक क्षेत्र में बहाली के सरकारी दावे के विपरीत आक्सफेम की रिपोर्ट यह बताती है कि देश की 40% से ज्यादा संपत्ति आबादी के केवल 1% के ही हाथ में है . देश के दस सबसे धनी लोगों की संपत्ति 2022 में 27.52 लाख करोड़ रुपये हो गई है जो 2021 के मुकाबले 32.8% ज्यादा है. देश में अरबपतियों की संख्या 2020 के 102 की तुलना में करोना के दौर के बावजूद 2022 में 166 हो गई है. जबकि 23 करोड़ जनता गरीबी में जी रही है.

ये रिपोर्ट ये बताती है कि देश की आबादी के सबसे निचले पायदान पर जी रहे 50% लोग अप्रत्यक्ष कर के जरिए अपनी आय के हिस्से के तौर पर धनी 10% आबादी के मुकाबले 6 गुना ज्यादा कर देते हैं. इसलिए यह जरूरी हो गया है कि अमीरों को दी जा रही छूटों को बंद कर उनकी संपदा और पैतृक संपदा पर कर लगाकर खाद्य वस्तुओं सहित सभी आवश्यक वस्तु पर जीएसटी को खत्म किया जाय. आम जनता के खरीदने की ताकत में बढ़ोतरी के कदम उठाए जाएं, रोजगार सृजन के लिए सरकारी निवेश बढ़ाया जाए, मनरेगा में आबंटन बढ़ाकर उसे शहरी गरीबों पर भी लागू किया जाय. लेकिन केंद्र सरकार द्वारा पेश किया गया बजट इन लक्ष्यों को संबोधित करने की बजाय छात्र, युवा, मजदूर, किसान अर्थात जनता पर और हमला बढ़ाकर, सार्वजनिक क्षेत्र के उद्योग के निजीकरण और अमीरों को ही और रियायत का मार्ग प्रशस्त कर रहा है.

भाजपा की केंद्र सरकार जनता के इन मुद्दों से ध्यान भटकाने सांप्रदायिक विभाजन के जहर फैलाने में ही लगी है. कभी लव जिहाद, सामान नागरिक संहिता तो कभी धर्मांतरण की आड़ में घर वापसी, कभी गौ रक्षा के नाम पर, वह यही घृणा की मुहिम चला रही है. छत्तीसगढ में बस्तर के आदिवासी क्षेत्रों में आदिवासियों के मध्य ही ईसाई आदिवासी और आम आदिवासी के मध्य नफरत पैदा कर हिंसक कार्रवाई भाजपा, संघ और उनके अनुसांगिक संगठन चलाए हुए हैं. इसमें महिला और बच्चों तक को निशाना बनाया गया है और उनके परिवार में मृत लोगों के अपने जमीन पर ही दफनाने के अधिकार से ही उन्हे वंचित किया जा रहा है. भाजपा सरकार हर स्वतंत्र संस्था पर हमले कर रही है, न्यायिक संस्थाएं भी उससे अछूती नहीं है. वे राज्यपालों के जरिए गैर भाजपा शासित राज्यों के अधिकारों पर अतिक्रमण कर देश के संघीय ढांचे पर हमले कर रहीं हैं.

मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी ने इस परिप्रेक्ष में उपरोक्त मुद्दों के साथ-

अडानी समूह पर हिंडनबर्ग रिपोर्ट की संयुक्त संसदीय समिति से जांच कराओ.

रोजगार पैदा करने वाली ढांचागत परियोजनाओं में सार्वजनिक निवेश बढ़ाया जाए.

5 किलो मुफ्त राशन के साथ-साथ 5 किलो सस्ता खाद्यान्न वितरण बहाल किया जाए.

अमीरों को दी गई कर छूटों को खत्म कर उनकी संपदा और पैतृक संपदा पर कर लगाया जाए.

खाद्य वस्तुओं और दवाओं समेत अन्य आवश्यक वस्तुओं पर से जीएसटी हटाया जाए.

इन मांगों को लेकर 22 से 28 फरवरी 2023 को देश भर में जन अभियान चलाने और विरोध का आवाहन किया गया है. पार्टी ने प्रदेश की आम जनता से मोदी सरकार की जनविरोधी इन नीतियों के खिलाफ माकपा के अभियान को सफल बनाने की अपील की है.