रायपुर। नौ दिन चले अढ़ाई कोस की कहावत तो अाप ने सुनी होगी लेकिन रेलवे की पुलिस ने इस कहावत को भी मात दे दी. उन्हें एक आरोपी को गिरफ्तार करने में दो-चार साल नहीं बल्कि 42 साल का लंबा वक्त लग गया जिसमें कि एक आरोपी अभी भी फरार है. और तो और जितने की आऱोपियों ने चोरी नहीं कि उससे कई गुना ज्यादा खर्चा पुलिस ने उनको पकड़ने में कर दिया. कई गुना खर्च करने के बावजूद पुलिस चोरी का पूरा माल भी बरामद नहीं कर पाई.
दरअसल आरपीएफ ने चोरी के मामले में बिहार से एक आरोपी को गिरफ्तार किया है. जिस दौरान आरोपी ने चोरी किया था उस वक्त उसकी उम्र 26 साल की थी और जब पकड़ाया तब उसकी उम्र 68 वर्ष की हो गई. मामला 1976 का है बीएमवाई चरोदा यार्ड में पदस्थ रेलकर्मी रामाधार पाण्डेय ने अपने 8 साथियों के साथ मिलकर सूरत से शालीमार जा रही मालगाड़ी का लोहे की सीट काटकर उसमें रखा लकड़ी के बक्सों को चुरा लिया था. उन बाक्सों में सिल्क की 89 साड़ियाँ थीं. जब मालगाड़ी शालीमार पहुंची तब चोरी का पता चला. मामले की पतासाजी के दौरान घटना बीएमवाई चरोदा की पता चली. जिसके बाद पुलिस ने आरोपी रामाधार पाण्डेय सहित 9 लोगों को मामले में गिरफ्तार किया था. जमानत में रिहा होने के बाद से रामाधार पाण्डेय के साथ ही एक और आरोपी जो कि उड़ीसा का रहने वाला है फरार था.
माल से कई गुना ज्यादा किए खर्च
पुलिस के अनुसार रामाधार छूटने के बाद अपने गांव बिहार के छपरा स्थित नटवर सिमरिया खुर्द चले गया था जहां आरोपी पुजारी का कार्य करने लगा. जमानत होने के बाद से लापता रामाधार को गिरफ्तार करने के लिए 24 साल पहले 1994 में आरोपी के खिलाफ स्थाई वारंट जारी हुआ था. उसके बाद से पुलिस लगातार उसे गिरफ्तार करने उसके गांव जाती रही है लेकिन आरोपी को गिरफ्तार करने मेें पुलिस को जरा भी सफलता नहीं मिली. आरपीएफ के अधिकारियों के मुताबिक दूर रहने वाले किसी फरार आरोपी को पकड़ने साल में कम से कम 2 से 3 बार दबिश दी जाती है. आरोपियों को पकड़ने के लिए 1 अधिकारी सहित 3 से 4 लोगों की टीम जाती है और स्थानीय पुलिस का सहयोग लेकर कार्रवाई की जाती है. जो टीम बाहर जाती है उसे टीए-डीए सहित सभी भत्ते विभाग द्वारा दिया जाता है, जिसमें उसके रुकने का खाना खाने और रहने के भत्ते शामिल हैं. इस लिहाज से आरपीएफ की टीम रामाधार को पकड़ने के लिए बिहार 70 से ज्यादा बार गई और वहां रुकी. ऐसे ही पुलिस दूसरे आरोपी को गिरफ्तार करने उड़ीसा में दबिश देती रही है. इस लिहाज से आरोपियों को पकड़ने में आने वाले खर्चा का अनुमान आप लगा सकते हैं. आपको बता दें कि जो साड़िया चोरी हुईं थी उनकी कीमत 3645 रुपए बताई जा रही है.
पुलिस के मुताबिक मामले में सुनवाई करते हुए कोर्ट ने 1994 में 4 आरोपियों को बरी कर दिया था जबकि 3 आरोपियों की मौत सुनवाई के दौरान हो गई.
आधी रात देनी पड़ी दबिश
अधिकारियों के मुताबिक पुलिस के गांव पहुंचने से पहले ही उसे इसकी भनक लग जाती थी और आरोपी फरार हो जाता था लिहाजा इस बार आला अधिकारियों ने छपरा एसपी से संपर्क कर उनसे मदद मांगी और स्थानीय पुलिस को इसकी सूचना नहीं देने का अनुरोध किया. आला अधिकारियों के अनुरोध पर छपरा एसपी ने 12 लोगों की टीम गठित की और यहां से छपरा गए आरपीएफ के तीन अधिकारी-जवान के साथ टीम के सदस्यों ने देर रात आरोपी के गांव में दबिश देने की योजना बनाई. गांव में किसी को भनक न लगे इस वजह से पुलिस ने आरोपी के घर में दबिश देने के पहले तकरीबन आधा किलोमीटर पहले गांव के बाहर सूनसान इलाके में पुलिस ने अपनी गाड़ियों को खड़ा कर दिया और पैदल पहुंचकर रात 1 बजे आरोपी को उसके घर से गिरफ्तार कर लिया. बताया जा रहा है कि आरोपी गांव में पुजारी का कार्य करता है और काफी रसूखदार है.