जयपुर। गर्मी शुरू होते ही पलाश के पेड़ पर नारंगी रंग के फूल आने लगते हैं. लाल-केसरी रंग के मनमोहक फूल का सालभर लोगों को इंतजार होता है. इस पेड़ पर भूरे रंग की फलियां भी लगती है. इन फलियों में 2 या 3 बीज होते हैं. इसे भी पढ़ें : देश के आकर्षक और लोकप्रिय शहरों में से एक है अमृतसर, यहां घूमने लायक है बहुत सी जगह …
औषधीय गुणों से भरपूर होता है पलाश
वसंत ऋतु, ठंड के मौसम का अंत और गरमी के आरंभ का सूचक होता पलाश. पलाश के इन्हीं फूलों से राजस्थान में होली के आसपास नहाने की परम्परा है. संस्कृत में हर ऋतु में कुछ खास पौधे के इस्तेमाल पर जोर दिया गया है. कार्तिक में तुलसी, चैत्र में नीम, श्रावण में विली, भाद्रपद में पिपला और वसंत ऋतु में केसु या गेसू या पलाश, टेसू या परसदा के फूलों का उपयोग करने को कहा गया है. वसंत के मौसम में पलाश के फूलों को परम औषधि माना गया है.
सालभर इन बीमारियों का नहीं होता भय
शरीर में खुजली, त्वचा पर चकत्ते, सूजन, खसरा, चेचक जैसी बीमारियों से बचने के लिए पलाश के फूल के पानी से नहाने की सलाह दी जाती है. नहाने के इस पानी का जिक्र शास्त्रों में भी किया गया है. फूल को पानी में डुबोकर या हल्का उबालकर रखते हैं, इससे नहाते हैं. होली के आसपास राजस्थान और गुजरात में पलाश के जल से नहाना जरूरी माना जाता है.
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