रायपुर। मध्यप्रदेश में शिक्षाकर्मियों का संविलियन कैसे हुआ ये जानना बेहद रोचक है. क्योंकि जिस फार्मूले के तहत शिवराज कैबिनेट ने संविलियन को मंजूरी दी है, क्या अब उसी फार्मूले के तहत छत्तीसगढ़ में भी शिक्षाकर्मियों का संविलियन होगा ? दरअसल संविलियन के तार 1994 में दिग्विजय सरकार से जुड़े हुए हैं. तब दिग्गी सरकार ने व्याख्यता, शिक्षक और सहायक शिक्षक के पद को डाइंग कैडर में ला दिया था मतलब कि इन पदों पर नियमित भर्ती खत्म कर दी गई थी. यही वो तकनीकी खामी थी जिसकी वजह से संविलियन रुका हुआ था.
इस तकनीकी खामी को दूर करने में मध्यप्रदेश सरकार को 24 साल का लंबा वक्त लग गया. और इन 24 बरस में संविलिनय की मांग को लेकर धरना-प्रदर्शन-आंदोलन-संघर्ष-विरोध निरंतर चलता रहा. आखिरकार 2018 चुनावी वर्ष में शिवराज सरकार ने संविलियन का रास्ता खोज निकाला. और जिन पदों को दिग्गी सरकार ने खत्म कर दिया था उसे शिवराज कैबिनेट ने पुनर्जीवित करते हुए शिक्षाकर्मियों के संविलियन को मंजूरी दे दी. मुख्यमंत्री की इस मंजूरी के बाद पंचायत विभाग के तहत काम करने वाले सभी शिक्षाकर्मी अब शिक्षा विभाग में अध्यापक के तौर पदस्थ हो जाएंगे. मतलब अब वे शिक्षा विभाग में व्याख्याता, शिक्षक और सहायक शिक्षक कहलाएंगे.
जाहिर है शिवराज सरकार के इस फैसले का दबाव रमन सरकार पर पड़ेगा. और छत्तीसगढ़ में भी अब इसी फार्मूले के तहत प्रदेश के शिक्षाकर्मियों का संविलियन का रस्ता खुल सकता है. क्योंकि सीएम रमन सिंह ने कुछ दिनों पहले यह बयान दिया था कि मध्यप्रदेश में संविलियन का आदेश जारी होने के बाद छत्तीसगढ़ में संविलियन कर दिया जाएगा. क्योंकि शिक्षाकर्मियों की भर्ती अविभाजित मध्यप्रदेश शासन में हुई थी. अब प्रदेश के 1 लाख 80 हजार शिक्षाकर्मियों को इंतजार रमन कैबिनेट के फैसले का है. क्या छत्तीसगढ़ में भी जल्द ही संविलियन हो जाएगा ?