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Unique Holi of CG: पुरुषोत्तम पात्र, गरियाबंद. गौ एवं अन्य प्राकृतिक अतिथियों के स्वागत के साथ कांडसर गौ शाला में 18 वर्ष पुरानी होली रस्म की शुरूवात हुई. यहां तीन दिनों तक यज्ञ की धुनि जलेगी, फिर उससे निकले राख से होली खेली जाएगी. इस बार गौ माता के साथ आम वृक्ष, गौरैया, चींटी आयोजन के अतिथि हैं. किसी प्रदेश की यह इकलौती होली है, जहां गौ वंश व प्रकृति के प्रति कृतज्ञता जाहिर करने होली खेली जाती है.
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अलेख ब्रम्ह उपासक बाबा उदयनाथ द्वारा संचालित कांडसर स्थित गौ शाला में मनाए जाने वाली अनूठी ही नहीं प्रकृति प्रेम जगाने वाली होली की शुरुवात 4 फरवरी को अतिथि सत्कार के साथ हो गई है. हालांकि फागुन की नवमी तिथि से गौ भ्रमण की शुरूवात हो जाती है. होलिका दहन के तीन दिन पूर्व शुरू होने वाले यज्ञ में भ्रमण कर लौटने वाली गाय अतिथि होती हैं. इनके साथ तीन और अतिथि का चयन होता है, जिन्हें तीन दिवस तक मुख्य मंच पर विराजमान किया जाता है.
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इस बार की यह तीन अतिथि फलों के राजा आम वृक्ष, गौरेया पक्षी व चींटी को बनाया गया. आज इन 4 अतिथियों का भव्य स्वागत किया गया. स्वागत रैली व कलश यात्रा साथ-साथ चल रहा था. प्रकृति प्रेम से जुड़ी 200 से भी ज्यादा माता बहनें कलश यात्रा में शामिल हुई. अतिथियो के स्वागत में पूरे रास्ते भर नए कपड़े बिछाए गए थे. लगभग 2 किमी दूर से अतिथियों का स्वागत कर यज्ञ स्थल पर लाया गया. स्वागत की इस बेला को देखने प्रदेश के दुर्ग, रायपुर,महासमुंद, जशपुर समेत दूर दराज से भी श्रदालु आए थे.
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निर्गुण ब्रम्ह उपासना पद्धति से होता है यज्ञ
बाबा उदय नाथ निर्गुण ब्रम्ह यानी शून्य के उपासक हैं. इस उपासना में प्रकृति प्रेम को श्रेष्ठ माना गया है. गौ सेवा, गौ के प्रति आस्था व प्रकृति प्रेम को बढ़ावा देने 2005 में इस प्रकृति यज्ञ व धुनि की राख से होली खेलने की शुरुवात की गई थी. बाबा उदय नाथ बताते हैं कि शुरूवात में केवल उनके अनुयायी जिनकी संख्या उस समय 2 हजार थी वही आते हैं. अब दूर दराज से लोगों की भीड़ व 7 हजार से भी ज्यादा अनुयायी यज्ञ में जुटेंगे. बाबा उदयनाथ ने बताया कि हवन में कंडा व ओषधिय काष्ठ की आहुति दी जाती है. धुनि तीन दिनों तक अनवरत जलेगा. 7 को पूर्णाहुति व 8 मार्च होली के दिन सुबह इसी धुनि की राख से होली खेली जाएगी.
बाहर से आए लोगों ने कहा – प्रकृति का सभी सम्मान करें
राजधानी से होली पूर्व रस्म में शामिल होने पहुंचे जागृति मंडल के प्रदेश सचिव महावीर प्रसाद, भारतीय किसान संघ के संगठन मंत्री तुलाराम धीवर, गौ सेवक शांता राम जाल, महासमुंद जिला पंचायत सदस्य अलका चन्द्राकर ने कहा, ऐसे आयोजन से सनातन धर्म का प्रचार तो होता है, प्रकृति जो हमें सब कुछ देती है उसका भी हमें सम्मान करना चाहिए, यही सीख मिलता है.
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गौ पग बाधा दूर करती है रोग व्याधि
इस पूरे आयोजन में गौ पग बाधा बनने का रिवाज भी प्रमुख माना गया है. मान्यता है कि भ्रमण से लौट कर आने वाले गौ माता के रास्ते मे लेटकर जो व्यक्ति गौ पग बाधा बनते हैं, जिनके शरीर से गौ माता पार हो कर गुजरती है उनकी शारीरिक कष्ट दूर हो जाता है. इसी मान्यता के चलते स्थानीय लोगों के अलावा दूर दराज से आए लोग गौ के रास्ते में लेट जाते हैं. अब तक किसी भी श्रद्धालु को गौ चलने से नुकसान न होना इसकी सत्यता को भी प्रमाणित करता है.
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