पुरुषोत्तम पात्र, गरियाबंद. जिले के ग्राम पंचायत आमदी में रहने वाले 5 साल के जयेश पटेल एक बीमारी से ग्रसित है, जिसमें उसे ‘बोन मैरो’ ट्रांस्प्लांट की जरूरत है. उसकी बीमारी को देख माता-पिता के आंसू नहीं थमते हैं. इलाज की बड़ी कीमत के आगे उनकी हिम्मत भी जवाब दे रही है. अबोध बच्चे को बीमारी से निजात के लिए बोन मैरो ट्रांसप्लांट करना पड़ेगा, जिसका खर्च लगभग 30 से 35 लाख रुपए आ सकता है. इतनी बड़ी कीमत के लिए माता-पिता अब सीएम से मदद की गुहार लगा रहे हैं. जयेश के पिता बलिराम की माने तो पैदा होने के बाद से हर माह जयेश खून चढ़ाने के दौर से गुजर रहा है.

पहले ठीक था जयेश, तबीयत बिगड़ी तो बीमारी का पता चला

बच्चे के पिता बलिराम ने बताया कि जयेश जन्म के वक्त काफी स्वस्थ था, मगर माहभर बाद ही जब उसकी तबीयत बिगड़ी तो डाक्टर ने परिजनों को ब्लड चढ़ाने कहा और यही से जयेश को ब्लड चढ़ाने का सिलसिला शुरू हुआ, जो आज 5 साल बाद भी यथावत जारी है. बलिराम ने बताया कि शुरू में तो ब्लड की कमी होगी सोचकर ब्लड चढ़ाया था मगर धीरे-धीरे जब हर माह ब्लड चढ़ाना पड़ा तब डाक्टरों से पता चला कि जयेश को बोन मैरो जैसी कोई दुर्लभ बीमारी है, जिसमें शरीर में खून नहीं बनता है, जो लाखो में से किसी एक को होती है. तब से लेकर आज तक हर माह जयेश को एक बोतल खून की चढ़ानी पड़ती है. अब तक लगभग 50 बोतल ब्लड लग चुका है.

जमा पूंजी खत्म हुई तो पिता ने लगाई मदद की गुहार

पटेल परिवार ने कमजोर आर्थिक स्थिति होने के बाद भी उन्होंने हिम्मत नहीं हारी और जमा पूंजी दांव पर लगाकर पिछले 5 साल से बच्चे का इलाज करवा रहे हैं. अब तक लगभग 3 से 4 लाख रुपए बच्चे के इलाज में खर्च कर चुके हैं. जहां से उम्मीद मिलती वही के अस्पताल में जाकर इलाज करवाते. बाद में पता चला कि बच्चे को जो बीमारी है उसके इलाज के लिए लगभग 30 से 35 लाख रुपए इलाज में लगना है तो पिता ने मदद की गुहार लगाई है.

रिपोर्ट के बाद मिलेगी खर्च की मंजूरी

स्थानीय प्रशासन और स्वास्थ्य विभाग की मदद से कुछ दिनों पहर्ले चिरायु योजना के अंतर्गत बच्चे का टेस्ट बालको कैंसर हॉस्पिटल में हो चुका है. बच्चे के चेकअप में ही लगभग 60 हजार रुपए का खर्च आया, जिसे चिरायु राष्ट्रीय बाल स्वस्थ कार्यक्रम द्वारा वहन किया गया है. जांच के बाद रिपोर्ट आने पर इलाज के लिए लगने वाले खर्च पर मुहर लगेगी.

इलाज के लिए परिवार अब शासन की योजना पर निर्भर

बच्चे के चेकअप में ही 60 हजार रुपए का खर्च आया है. डाॅक्टरों की माने तो रिपोर्ट आने के बाद इलाज में लगभग 30 से 35 लाख रुपए खर्च आना तय है और बच्चे का इलाज भी राज्य में ही हो पाए इसकी संभावना कम है. इलाज के लिए बच्चे को बाहर ले जाना पड़ सकता है. इतनी बड़ी रकम के बारे में सुनने के बाद अब परिवार की हिम्मत भी जवाब दे रही है. चिरायु योजना के अंतर्गत हुई जांच के बाद परिजन अब इलाज के लिए भी इसी योजना पर निर्भर हो गए हैं. उन्हे उम्मीद है कि स्थानीय प्रशासन और सरकार उनकी मदद जरूर करेगी.

जांच रिपोर्ट के बाद आगे बढ़ाएंगे इलाज की प्रक्रिया: डाॅ. एलएन

डॉ. एलएन चंद्राकर, एमओ चिरायु ने बताया, जयेश पटेल के पालक कुछ दिनों पहले मेगा कैंप में आए थे. इस दौरान बच्चे को हो रही समस्या के बारे में पता चला. बच्चे को हर माह ब्लड की आवश्यकता पढ़ती है. इसे देखते हुए उसकी जांच के लिए बालको कैंसर हॉस्पिटल में बच्चे की जांच कराई गई है. रिपोर्ट आने के बाद इलाज के प्रोसेस को आगे बढ़ाया जाएगा.

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