नए IAS के सपनों का बंगला

जीवन भर धाकड़ नौकरी करने के बाद अफसर का सपना होता है एक बंगला बने न्यारा। कुछ पहले बना चुके होते हैं, कुछ को बहुत बाद में वक्त मिलता है। धाकड़ नौकरी करके आईएएस बने और फिर एक जिले की कलेक्टरी करने के बाद सुकून भरी जगह पर वक्त बिता रहे अफसर को अपना बंगला बनाने के लिए अब वक्त मिला है। देर से ही सही, लेकिन ड्रीम्स कम ट्रू जैसे हालात आ गए हैं तो कसर भी नहीं छोड़ी जा रही है। साहब ने किसी भी कॉम्प्रोमाइज से इनकार कर दिया है। झूमर की कीमत लाखों में है तो वही होगी, पेटर्न भी सेम ही रहेगा। दरवाज़े भी ऐरे-गैरे नहीं होंगी, फुल क्लासिक एंड ऑटोमेटिक डोर ही इस्तेमाल किए जाएंगे। थंब इम्प्रेशन बायोमीट्रिक मशीन भी लगेगी, जिसका उपयोग साहब ही जानते हैं। घर में ऊपर नीचे होने में परेशानी नहीं हो, इसलिए आला दर्जे की लिफ्ट का इस्तेमाल किया जा रहा है। 3600 वर्ग फीट के प्लॉट पर बने मकान में अब इंटीरियर का काम शुरू हुआ है। साहब का मूड और चॉइस देखकर लगता नहीं कि जल्दी खत्म होने वाला है। साहब और उनकी फैमिली भी ड्रीम बंगले को तामीरी में तसल्ली भर के दिलचस्पी ले रहे हैं। इनकम टैक्स वालों ने भी इस दिलचस्पी में दिलचस्पी नज़र आने लगी है। साहब की पुरानी पोस्टिंग से इस बंगले के खर्च के तार जोड़े जाने शुरू हो गए हैं।

नौकरी के बाद भारी सक्रिय

जबलपुर के बेदाग, विनम्र, सख्त मिजाज़, मिलनसार अफसर यदि 16 बरस पहले ही रिटायरमेंट ले लें तो चौंकना तो पड़ेगा ही। साहब की कार्यशैली से ज्यादा श्यामला पहाड़ी तक सीधी पहुंच उन्हें सबसे ज्यादा काबिल होने का दर्जा देती है। बहरहाल, ऐसी पहुंच-पकड़ के बाद तो मेन स्ट्रीम पोस्ट पर लगातार बैठने का सौभाग्य वरदान हासिल किया जाता है। लेकिन साहब ने वीआरएस लेकर सबको चौंका दिया। वैसे, तो साहब कहते हैं कि आगे पठन-पाठन-लेखन का इरादा है। यह बात हज़म नहीं होती जो वीआरएस की वजह तक जाने की ललक बढ़ाती है। बहरहाल, मामला खंगाला गया तो पता चला कि महाकौशल में कुछ और अफसर भी हैं, जो रिटायरमेंट के बाद महफिलें बढ़ा रहे हैं। इन महफिलों के ज़रिए वे अपनी सक्रियता का एहसास करा रहे हैं। जाहिर बात है, ये सारे पूर्व अफसरों के तार श्यामला हिल्स तक जुड़े हैं। इसलिए भविष्य में कुछ और नया करके चौंका भी सकते हैं। चूंकि आने वाले दिनों में चुनाव आने वाले हैं, इसलिए ऐसे अफसरों के चुनावी मैदान में जोतने के कयास लगाए जा सकते हैं। सूत्र तो यह बताते हैं कि इन्हें चुनाव लड़ने के लिए तैयार रहने को कहा गया है। कुछ दिन के बाद ऐसे पूर्व अफसरों को संभावित सीट का अंदाज़ा भी करा दिया जाएगा। लेकिन बदले हुए दौर में टिकट को लेकर किसी अफसर का नाम आ जाए तो चौंकिएगा नहीं। सियासत में ऐसे प्रयोग कई हो चुके हैं। नए दौर की बीजेपी इस तरह के प्रयोग ज्यादा कर रही है।

मैडम ने छुड़वाई 12 बॉटल

बीते पखवाड़े का मामला है, जब भारत टाकीज चौराहे से थोड़ी ही दूर एक शख्स जेक डेनियल और जेंटलमेन जैक जैसे महंगे शराब ब्रांड की 12 बोतलों के साथ पकड़ा गया। महंगी शराब के साथ रसूखदार का जुड़ाव हो सकता है, ऐसा आभास होने के बाद पुलिस कुछ ज्यादा ही चुस्त हो जाती है। तुरंत लड़के को पकड़ कर किनारे किया गया। शर्ट और पेंट की जेब खंगालने के बाद जो कागज़ निकले उसमें लड़के की पहचान पत्र में पता रायसेन का मिला। लड़का भी महंगी शराब धरे था, उसने आव देखा न ताव पुलिस वालों के सामने निडरता दिखाते हुए तुरंत फोन घुमा कर पुलिस को ही पकड़ा दिया। दूसरी तरफ से जो आवाज़ आई वह किसी संभ्रात महिला की थी। मैडम ने जब बात करनी शुरू की तो पहचान भी खुलती चली गई। इसके बाद पुलिस वाले कुछ कहने की स्थिति में नहीं रहे। मामला बहुत ऊपर का था। पुलिस वालों को भी समझते देर नहीं लगी क्योंकि मैडम और उनकी ब्रांड के चर्चे पहले से ही भोपाल के आबकारी और पुलिस महकमे के अमले के बीच में चल रहे हैं। मैडम की बात सुनकर लड़के को छोड़ दिया गया। इस हिदायत के साथ कि कम से कम चोरी-छिपे तो ले जाया करो। वैसे, यह बात पुलिस वाले और आबकारी वाले भी जानते हैं कि महंगी ब्रांड के शौक के चर्चे इतने ज्यादा होने लगे हैं कि बंगले तक बात पहुंचाने के बावजूद भी न तो डिमांड खत्म हो रही है और न ही ट्रांसपोर्टेशन। आपसी समझ बूझ के मामले को जैसे-तैसे हैंडल किया जा रहा है।

फोटो पर हर दफ्तर में बवाल

बात एक ऐसी तस्वीर की, जिसकी वजह से हर प्रमुख सरकारी दफ्तर के होश उड़े हुए हैं। यहां एक सर्कुलर आया है, जिसमें राष्ट्रपति की एप्रूव्ड तस्वीर को दफ्तर में लगाने के निर्देश दिए गए हैं। तस्वीर देखकर सरकारी अमले के होश फाख्ता हो गए हैं। ब्लैक एंड व्हाइट प्रिंट पर भेजी गई तस्वीर पूरी तरह अस्पष्ट है। सर्कुलर में तस्वीर लगाने का ज़िक्र और तस्वीर के अस्पष्ट होने से बीच में गड़बड़ होने का अंदाज़ा साफ लगाया जा सकता है। सर्कुलर में लिखा गया है कि कार्यालय में राष्ट्रपति भवन से एप्रूव्ड यह तस्वीर ही लगाई जाए। माजरा समझने के लिए महीने भर पहले जाना होगा, उस वक्त राष्ट्रपति भवन से एक ई-मेल आया था। जिसमें राष्ट्रपति भवन से एप्रूव्ड तस्वीर ही उपयोग में लिए जाने के निर्देश थे। गलती केवल यह हुई कि राष्ट्रपति भवन से भेजी गई तस्वीर रंगीन थी। लेकिन मंत्रालय के अमले ने गफलत में उस मेल में भेजी गई तस्वीर का ब्लैक एंड व्हाइट प्रिंट लेकर प्रदेश के सभी कार्यालय प्रमुखों को सर्कुलर भेज दिया। मामला 15 दिन पहले क्लीयर हुआ है, और उस गफलत को दुरुस्त करने का काम भी खत्म हो चुका है। अब गलती सुधार कर नई तस्वीर उपयोग की जा रही है। मामले को अफसरों ने 10-15 दिन तक बाहर आने से पूरी तरह रोके रखा। लेकिन टॉप सीक्रेट भी ज्यादा दिनों तक दफन नहीं रखे जा सकते हैं। सरकारी कागजात तो सारे राज़ खोल ही देते हैं।

खाली खजाने से आलीशान इवेंट

बीते पखवाड़े की बात है, रोज़गार से जुड़े एक महकमे को मुख्यमंत्री के कार्यक्रम आयोजन की जानकारी दी गई। लंबे अर्से से अटक रहे इस कार्यक्रम को लेकर महकमे के अफसर मुख्यमंत्री की तारीख मिलने का इंतज़ार कर रहे थे। खैर, कार्यक्रम की तारीख तय हो गई। महकमे के एक जूनियर अफसर ने बाद में जानकारी दी कि कार्यक्रम को लेकर बजट ही नहीं है। टॉप प्रायोरिटी के इस कार्यक्रम के लिए जब खाली खजाने का खुलासा हुआ तो अफसरों के पैरों के नीचे से ज़मीन ही खिसकने लगी थी। एक जूनियर की गलती की वजह से सब कुछ बिगड़ने की स्थिति बनी तो जिम्मेदार अफसरों ने कमान संभाली। इसके बाद कार्यक्रम को तीन दिन के लिए टाला गया, जिस दौरान बजट का इंतज़ाम किया गया। इसके बाद कार्यक्रम तय हो गया। इस तरह की गलतियों की वजह से अफसरों पर मिस मैनेजमेंट का दाग लग जाता है। वह तो अच्छा यह रहा कि अफसरों के पास तरकीबें थीं, जिनका वक्त पर इस्तेमाल किया गया। वरना मुख्यमंत्री के कार्यक्रम में ऐसी गलतियां माफी योग्य नहीं समझी जाती हैं। अहम बात यह है कि सभी प्रमुख कार्यक्रमों को लेकर महकमे में बजट का प्रावधान हर वक्त रखा जाता है। मुख्यमंत्री की तारीख मिलते ही उस बजट का इस्तेमाल शुरू कर दिया जाता है। इसमें ज़रा भी लापरवाही हो तो कई लोगों पर संकट छा सकता है। बहरहाल, यहां मामला क्लीयर कर लिया गया है। लेकिन चर्चाएं हैं कि खाली खजाने के बाद आलीशान इवेंट का ऐलान करने वाला महकमा गजब ही करने निकला था।

दुमछल्ला…

नेताजी को 52 साल बाद लौटा बुखार तो याद होगा ही आपको। पिछले हफ्ते ही हमने बताया था कि 52 साल बाद जब बुढ़ापे में बुखार आया तो नेताजी थर्रा गए। कान्फिडेंस इतना लूज़ हो गया कि बुखार के चंद रोज़ बाद दाढ़ में दर्द शुरू हो गया। दाढ़ का दर्द झेल चुके लोग ये जानते हैं कि चंद सेकेंड में ही यह दर्द दादी-नानी याद दिला देता है। बुखार के बाद कमजोर हुए शरीर में जब दाढ़ के दर्द की एंट्री हुई तो नेताजी के साथ भी ऐसा ही हुआ है। दाढ़ भी ऐसी वैसी नहीं थी, अक्कल दाढ़ थी। दिलेर दिल के नेताजी ने डॉक्टर की सलाह पर दर्द को जड़ से ही खत्म कर दिया, यानी दाढ़ निकलवा दी है। चिंता की कोई बात नहीं है, दर्द की परेशानी अब खत्म हो चुकी है। हम ईश्वर से प्रार्थना करते हैं कि कांग्रेस में अहम जिम्मेदारी निभा रहे नेताजी पर कोई कष्ट नहीं आए।

(संदीप भम्मरकर की कलम से)

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