श्री हनुमान जी महाराज के पास दिव्य औषधि है जिससे समाज मैं व्याप्त व्याधियों को ठीक किया जा सकता है उस औषधि का नाम ही राम रसायन है।
महावीर बिनवऊं हनुमाना ।
राम जासु जस आप बखाना॥
पवनतनय केशरीनंदन जी के लिए समर्पित इस चौपाई के अन्तरंग विषयों पर अब कुछ विस्तार से चर्चा करेंगे। भगवान श्री राघवेंद्र जी ने हनुमानजी महराज को “महावीर” से संबोधित किया। हनुमानजी महराज राम चरित मानस के “महावीर” है। महावीर जी का चरित्र किष्किंधा काण्ड से माता सीताजी के अन्वेषण के समय से प्रारंभ होता है। राष्ट्र चिंतन संस्कॄति और सभ्यता को “महावीर” जैसे दिव्य व्यक्तित्व की कब आवश्यकता होती है?
इसको एक उदाहरण से समझने का प्रयास करेंगे। सिंह जब सिंहनाद करता है। तो पूरा वनांचल प्रकंपित हो उठता है और वन अंचल के प्राणी गिरि कन्दराओं की खोह मे तब तक भागते रहते है जब तक कि सिंह का सिंहनाद उनके कर्ण कुहरों में प्रतिध्वनित होती रहती है। जिस सिंह की गर्जना से वनांचल के प्राणी भागते हैं, उसी सिंह को आप सर्कस मे जगमगाती हुई ट्यूबलाइट के बीच लोहे की सलाखों के पीछे एक व्यक्ति के इशारे पर नाचते देखते हैं। जिस सिंह के दहाड़ने से पूरा वनांचल भयभीत हो उठता है, उसी सिंह को एक व्यक्ति अपने इशारे पर नचाता है। सिंह तो वही है क्या कमी आ गई सिंह में?
सिंह से जब उसका सिंहत्व छीन लिया जाता है, उसका पोषक तत्व छीन लिया जाता है, तब सिंह दुर्बल हो जाता है। ठीक उसी प्रकार संस्कॄति सभ्यता और धर्म से उसकी शांति को जब कोई रावण छीन लेता है, संस्कृति की सीता को अर्थात समाज की व्यवस्था को दुर्बल कर देता है तब शांति और पराभक्ति की स्थापना हेतु महावीर स्वरूप जैसे योद्धा का प्राक्ट्य होता है, और वही झकझोर कर समाज को जगाता है। इसीलिए आज के सामाजिक परिवेश मे शायद निराला की ये पंक्तियां उपयुक्त सिद्ध होती है।
जागो फिर एक बार, स्मरण करो बार बार।
पश्चिम की उक्ति नहीं, भारत की गीता है।
जागो फिर एक बार।
श्री राम चरित मानस के महावीर भी सोये हुए संतत्व को सोई हुई सत प्रवृति को भयरहित करके जगाते है। जैसे विभीषण जी की सदप्रवृतिया भय के कारण अंर्तमुखी थी। अंजनीनंदनजी ने उन्हे जगाया।
मन महु तरक करै कपि लागा।
तेही समय विभीषनु जागा॥
संतों और सदविचारों को भयमुक्त करके उनकी शंकाओं को निर्मूल करते हुए जो विश्व की शांति और पराभक्ति को खोज सकते है वही राम चरित मानस के महावीर हो सकते है। अतः गोस्वामी तुलसीदास जी ने लिखा।
महावीर बिनवऊं हनुमाना।
राम जासु जस आप बखाना॥
महावीर की समुचित और व्यावहरिक व्याख्या को समझने के लिए पहले वीर को समझना होगा। तब कही महावीर को समझ पायेंगे।
राम रसायन तुम्हरे पासा, सदा रहो रघुपति के दासा।
श्री हनुमान जयंती की आप सभी को हार्दिक शुभकामनाएं।
पंडित संदीप अखिल,
सलाहकार संपादक, News24 मध्य प्रदेश-छत्तीसगढ़/ lalluram.com