30 विधायकों वाले कांग्रेस नेता
कांग्रेस के एक नेताजी पूर्व मंत्री और वर्तमान विधायक हैं। कांग्रेसी गलियारों में उनके साथ 30 विधायकों के होने के दावे की चर्चा जमकर चल रही है। विधायक जी ने एक घटनाक्रम को लेकर तपाक से कमलनाथ के सामने कह दिया था कि उनके साथ करीब 30 विधायक हैं, जो हंगामा मचा सकते हैं। बात आई-गई हो गई, लेकिन कांग्रेसी नेताओं के फितूरी दिमाग में घर कर गई है। 28 विधायकों के बीजेपी में जाने की वजह से सरकार गंवा चुकी कांग्रेस में यह किस्सा और बातचीत भूले नहीं भुलाया जा रहा है। नेताओं की महफिल में यह बात हंसी में उड़ाए जा रही है कि कमलनाथ से नीचे के दर्जे वाले एमपी के किसी नेता की छतरी में इतने विधायक एक साथ ठीक नहीं हैं। दूसरी तरफ यह भी कयास लगाए जा रहे हैं कि इस किस्से के बाद कांग्रेस के इंटेलीजेंस ने नेताजी से मुलाकात करने वालों पर नजर रखना और उचित जगह पर सूचना पहुंचाना भी शुरू कर दिया है। नेताजी सुर्खियां बटोरने के लिए जाने जाते हैं। वे राहुल गांधी के करीबी भी हैं। फिर कांग्रेस में यह बीमारी भी है कि जिसे सीधे सोनिया-प्रियंका और राहुल कैंप का जाना जाता है, वह एमपी पहुंचते ही अपने रुतबे का इज़हार करने लग जाते हैं। खैर, कांग्रेस में इस बीमारी के इलाज की तलाश जारी है।
गड्ढा भरने में खुल रहे खजाने
न…न…बात वोट हासिल करने की नहीं हो रही है, हेडिंग से कंफ्यूज मत होइएगा। चुनावी दौर में सियासी दलों की यह पांच साला तरकीब अब जगजाहिर हो चुकी है। हम यहां सीक्रेट बातों पर चर्चा करते हैं। मामला महाकौशल इलाके के एक दिग्गज नेताजी के बंगले का है। जो उन्हीं के गृह क्षेत्र में बन रहा है। इस बंगले को बनाने के लिए बहुत बड़े गड्ढे को भरा जा रहा है। सीक्रेट यह है कि इस बंगले के निर्माण के लिए एक सरकारी योजना का फायदा लिया जा रहा है। यानी नेताजी को खुशियां फ्री-फंड में मिल रही हैं। यही नहीं, औद्योगिक क्षेत्रों के द्वारा समाज कल्याण के लिए किए जाने वाले सीएसआर फंड की भी चर्चा है। अब यह शोध, जांच या परीक्षण का विषय है कि किसी बंगले से समाज सेवा और सरकारी सेवाएं कैसे प्रदान की जा सकती है? बहरहाल, बंगले का निर्माण ज़ोरों पर है, जल्द ही उसे तैयार किया जाना है। जिसके लिए बढ़िया इंटीरियर भी प्लान किया गया है। बंगला आलीशान बनेगा इसमें कोई संदेह नहीं है। अब कुछ तो लोग कहेंगे ही, उनका तो काम ही है कहना।
मंत्री कहे ‘जा’, अफसर कहें ‘ना’
मंत्री और महकमे के पीएस के बीच विवाद कोई नया नहीं है। तनातनी, अनसुनी और नाफरमानी की खबरें लगातार आती रहती हैं। लेकिन इन सब खबरों में क्या हालात पैदा होते हैं, यह किस्सा उसी परिस्थिति को बयां करने वाला है। दरअसल, शिक्षा से जुड़े एक महकमे में एक दफ्तर में लंबे अर्से बाद मुख्यालय से एडिशनल डायरेक्टर स्तर के दिग्गज अफसरों का तबादला कर दिया गया। ये वह अफसर हैं, जिनकी तूती महकमे में बोला करती थी। कोई मंत्री आए कोई जाए, इनकी तूती के स्वर कभी नीचे नहीं रहे। जाहिर है, हाथ सीधे आला अफसरों का रहता है। लिहाजा मंत्री के सख्त निर्देश से निकाले गए तबादला आदेश के बाद भी रवानगी नहीं डाली जा रही है। ये अफसर मुख्यालय के आईएएस अफसरों के चहेते कहे जाते हैं। इनके पास इस दफ्तर के सबसे अहम जिम्मेदारियां हैं। चाहें मैडम हों या साहब सभी के सभी लंबे अर्से से यहीं डटे हुए हैं। सुना है, अफसरों ने जाने से इनकार कर दिया है। लिहाजा, इन सभी दिग्गज अफसरों की कार्यमुक्ति नहीं हो पा रही है। मंत्रीजी को लगता है कि अंगद के इन पांवों को हटाने के बाद कुछ नया और अच्छा किया जा सकता है। लेकिन जब तक अंगद के साथ अफसर हैं, तब तक तो तूती को हाई नोट्स ही लगेंगे।
वर्चुअल चकल्लस में भूल गए ज़मीन
कमलनाथ ने जैसे ही मीडिया टीम को सोशल मीडिया पर सक्रियता का आईना दिखाया तो पूरी टीम ने वर्चुअल दुनिया में डुबकी लगा दी। ट्वीटर, फेसबुक, इंस्टाग्राम के साथ ही मीडिया और नेताओं के चर्चित एमपी टाइम्स और एमपी की बात जैसे वॉट्स एप ग्रुप पर सक्रियता के खंभे गाड़ दिए। पूरी टीम वर्चुअल दुनिया में ऐसी डूब गई कि बाहरी दुनिया में भी वर्चुअल दुनिया में अपने झंडे गाड़ने के बातें होने लगी हैं। सचमुच ही मीडिया टीम ने कमाल कर डाला और अपने-अपने मोबाइल फोन में अपनी पूरी दुनिया समेट ली। फिर वह दिन आया, जब शिवराज ने कमलनाथ के लिए ऐसे विशेषण का प्रयोग किया, जिसे अब तक का सबसे बड़ा प्रहार समझा गया। इस दिन की दोपहर यह मामला गर्म हुआ। तब कमलनाथ के मीडिया सलाहकार ने अपनी टीम को झकझोर दिया। दरअसल,वर्चुअल दुनिया में पूरी तरह डूबे हुए होनहार नेताओं ने जनाब के सामने दीगर विषयों पर किए गए ट्वीट का ज़िक्र किया तो जनाब ने जवाब देकर जगाया। उन्होंने कहा कि हमारे नेता के लिए ऐसे शब्द इस्तेमाल किए गए हैं और आपको इधर-उधर के मुद्दे सूझ रहे हैं।
बीजेपी नेताओं का दक्षिणायन
समूचे देश के भाजपाई दिग्गज दक्षिणायन हो गए हैं। वहां चुनाव जो हैं। चुनाव तो हमारे यहां भी हैं, इसलिए हमारे यहां भी बीजेपी नेताओं के दक्षिणायन होने का सिलसिला जारी है। दरअसल, भोपाल दक्षिण-पश्चिम सीट की चर्चा है। जहां कई विधायक और टिकट के दावेदारों ने सक्रियता दिखानी शुरू कर दी है। अपनी तरफ से ऊपरी और ज़मीनी जमावट शुरू हो गई है। कर्मचारी बाहुल्य इस सीट को बीजेपी के लिए मुफीद समझा जाता है, लेकिन बीते चुनाव में यहां से कांग्रेसी दिग्गज पीसी शर्मा ने जीत हासिल की थी। वे मौजूदा विधायक हैं और अपनी सीट पर सक्रियता के लिए जाने जाते हैं। बीजेपी के कई दिग्गज विधायक और उदीयमान नेताजी भी इसी सीट से टिकट का दावा करने लगे हैं। मज़े की बात तो यह है कि जो नेता उत्तरायण थे या मध्यावर्ती के प्रयास में थे, वे भी दक्षिणावर्ती नज़र आने लगे हैं। हां, भोपाल के कुछ नेता ऐसे भी हैं, जो यहां की रस्साकशी को भांपकर भोपाल से बाहर संभावनाएं तलाश रहे हैं। बीजेपी के पूर्व मीडिया प्रभारी इछावर की इच्छा जता दी है, उनसे भी पहले के एक मीडिया प्रभारी अपना पारिवारिक बैकग्राउंड बताकर भोजपुर से दावा ठोंक रहे हैं।
दुमछल्ला…
भोपाल के एक आईएएस अफसर जो लोकल में ही तैनात हैं। अपनी सख्ती के लिए जाने जाते हैं। सख्ती इतनी कि नियम विरुद्ध होने पर बड़ी से बड़ी कार्यवाही के लिए तैयार हो जाते हैं। उन्होंने कई बड़ी कार्यवाहियां की भी हैं। लेकिन ज्यादातर मामलों में शिकार वे लोग रहे, जिनका कोई खैरख्वाह नहीं था। जिन लोगों के खैरख्वाह कोई नेताजी थे, उनके फोन पर ही कई बड़ी कार्यवाहियां रोक दी जाती हैं। कभी तो यह भी हुआ है कि नेताजी कोई काम नियम विरुद्ध कर रहे हैं और उसकी शिकायत भी पहुंच जाती है तो साहब नेताजी के खिलाफ कार्यवाही से कतरा जाते हैं। लिहाज़ा अब अंदर-बाहर यही चर्चाएं हैं कि साहब की सख्ती केवल जनता पर ही लागू होती है। किसी नेता के फोन आने पर उनकी सख्ती और नियम-कायदों का गुब्बारा फूट जाता है।
(संदीप भम्मरकर की कलम से)
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