पुरषोत्तम पात्र, गरियाबंद। हाय रे सिस्टम औऱ हाय रे बदनसीबी, कहां जाएं, क्या करें, कौन सुनेगा गुहार बस लाचार सिस्टम पर झिरिया करारा तमाचा मार रही है. कितनी सरकारें आई और कितनी सरकारें गई, लेकिन पानी की बदनसीबी और पानी की किल्लत कम नहीं हुई. चिलचिलाती धूप और नंगे पांव बस पानी की आस लिए सुबह 5 बजे से 8 बजे और शाम 4 बजे से शाम 6 बजे तक झिरिया पहुंचकर पानी ला रहे हैं. तब जाकर प्यास बुझाते हैं. महिलाएं और बच्चे अपनी बदनसीबी को कोस रहे हैं. केंद्र सरकार की जल जीवन मिशन योजना सिर्फ कागजों में है, धरातल पर बस बदहाली है.
सिस्टम को कोसती तस्वीरें
दरअसल, ये सिस्टम को कोसती तस्वीरें छत्तीसगढ़ के गरियाबंद जिले की हैं, जहां के लोगों को बूंद-बूंद पानी के लिए तरसना पड़ रहा है. लोगों का हाल बेहाल है. बिन पानी सब सून लग रहा है. लोग पानी की एक-एक बूंद के लिए तरह रहे हैं. गांव में लोगों की दयनीय स्थिति है, लेकिन जिम्मेदार इस ओर ध्यान नहीं दे रहे हैं. नदी की पानी सप्लाई की जिद्द में गांव में अब तक शुरू नहीं हो सका.
तेल नदी का पानी पीकर गुजारा
बता दें कि 1 हजार की आबादी वाले गांव में पहले से मौजूद सभी हैंडपंप में आयरन की मात्रा मानक से ज्यादा है. पानी से दाल चांवल नहीं पकता. बच्चों के दांत भी पीले हो रहे हैं. कई वर्षों से लोग तेल नदी का पानी पीकर गुजारा कर रहे हैं. ब्लॉक मुख्यालय से 6 कि मी की दूरी पर तेल नदी किनारे बसे गांव पूरनापानी के सभी ग्रामीण आज भी पीने और भोजन के लिए तेल नदी का पानी इस्तेमाल करते हैं.
100 साल से भी ज्यादा पुरानी समस्या
12 माह नदी से झिरिया खोद कर महिलाएं पानी ले जाती हैं. पहट 5 बजे से 8 बजे और संध्या 4 बजे से शाम 6 बजे तक पानी लेने महिलाओ की भीड़ लगी रहती है. ग्राम प्रमुख मनीराम, हिमांचल निधि ने बताया की गांव 100 साल से भी ज्यादा पुराना है. शुरू से यहा के पानी में आयरन की मात्रा ज्यादा है. बाप दादा के जमाने में पानी से दाल नहीं पकता था. चावल पीले हो जाते थे. बच्चों के दांत पीले पड़ने लगे थे. इसलिए बुजुर्गो ने गांव से 1 किमी दूर बहने वाले तेल नदी में झिरिया खोद कर पानी पीने के लिए इस्तेमाल करना शुरू किया, जो आज भी कायम है.
1.9 करोड़ की स्वीकृति
साल भर बाद भी शुरू नही हो सका जल जीवन मिशन का काम जल जीवन मिशन के तहत पुरनापानी गांव में एकल ग्राम योजना के तहत 1.9 करोड़ की स्वीकृति हुई है. पूरे गांव में 285 कनेक्शन के जरिए पीने का साफ पानी घर घर पहुंचाया जाना है. इसके लिए 29 मार्च 2023 को अनुबंध भी हुआ है, लेकिन आज तक काम शुरू नही हो सका है.
ग्राम के उप सरपंच सुशील निधि ने बताया कि,5 साल पहले पीचई विभाग ने गांव के सभी हैंडपंप की जांच किया था. आयरन की मात्रा सभी में अनुपात से ज्यादा मिले थे. विभाग ने पानी पीने से मना किया था. स्कूल में एक रिमूवल प्लांट भी लगवाया है. अब विभाग गांव के सोर्स से नया स्कीम के तहत पानी देना चाह रही है, जिस पानी का इस्तेमाल हम नहीं करते उसे घर घर पहुंचाया गया तो क्या फायदा. हमारी मांग है कि गांव के बाहर नदी के पास सप्लाई का सोर्स बना कर घर घर आयरन रहित पानी दिया जाए.
अधिकारियों से मार्गदर्शन लिया जा रहा
मामले में पी एच ई विभाग के एसडीओ जागेश्वर मरकाम ने कहा कि ग्रामीणों की मांग को उच्च कार्यलय में अवगत कराया गया है. वरिष्ठ अधिकारियों से मार्ग दर्शन लिया जा रहा है, जैसे निर्देश मिलेगा आगे वैसे काम किया जाएगा.
10 से ज्यादा गांव में आयरन फ्लोराइड की मात्रा ज्यादा
वर्ष 2018 में ब्लॉक के सभी सरकारी स्कूल में मौजूद 130 से ज्यादा हैंडपंप के पानी की जांच हुई थी, जिसमें 40 में फ्लोराइड व 15 में आयरन की मात्रा ज्यादा पाई गई थी. 2 हजार से भी ज्यादा बच्चो के दांत पीले होने की रिपोर्ट भी चिरायू दल ने किया था, तब पीएचई विभाग ने 6 करोड़ लागत से सभी प्रभावित स्कूल के सोर्स में रिमूवल प्लांट लगा दिया था.
सोर्स प्रभावित होने की आशंका
इस समय कहा गया था की स्कूल के आलावा कुछ गांव के अधिकतर सोर्स प्रभावित है, पूरनापानी उन प्रभावित गांव में से एक है. इसी तरह नांगलदेगी, पीठापारा, धुपकोट जैसे एक दर्जन गांव है. जंहां के सोर्स प्रभावित होने की आशंका जताई गई थी.
गोवर्धन मांझी ने लगाए आरोप
पूर्व विधायक गोवर्धन मांझी का आरोप है कि जल जीवन मिशन के तहत योजना लागू करने से पहले पानी की गुणवत्ता की जांच होनी चाहिए थी, जो नहीं कराया गया. पूरनापानी के लोगों ने दूषित जल सप्लाई नहीं होने दे रहे हैं. इन ग्रामीणों ने जागरूकता का परिचय दिया है. प्रभावित गांव के सोर्स को दोबारा जांच कर साफ पानी सप्लाई देना चाहिए.
PM की सोच पर कौन लगा रहा पलीता ?
बता दें कि जल जीवन मिशन की घोषणा प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने 15 अगस्त 2019 को की थी. यह मिशन भारत के सभी दूर-सुदूर गांवों के हर घर तक शुद्ध पेय जल पहुंचाने का लक्ष्य 2024 तक पूरा करेगा. जल जीवन मिशन को सफलता पूर्वक पूरा करने के लिए केंद्र, राज्य और केन्द्रशासित प्रदेश मिलकर काम करेंगे, लेकिन यहां अफसरों की नाकामी के कारण लोग बूंद-बूंद पानी को तरस रहे हैं.
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