तमिलनाडु के इरोड में 22 दिसंबर 1887 को जन्म लिए श्रीनिवास रामानुजन को आज भी गणित का जादूगर भी कहा जाता है, गणित के हर सवालों को मिनटों में सुलझा देना उनके लिए बाएं हाथ का खेल हुआ करता था. रामानुजन ने गणित की दुनिया में ऐसी कई थ्योरी दी है, जिसे आज भी बच्चे पढ़ाई के लिए इस्तेमाल करते हैं. कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर जीएच हार्डी ने रामानुजन को दुनिया का महान गणितज्ञ की उपाधि दी थी. यह महान गणितज्ञ भले ही दुनिया में नहीं हैं लेकिन उनके गणित के जादू को आज भी याद किया जाता है. आज के दिन हर साल 26 अप्रैल को उनकी पुण्यतिथि मनाई जाती है. आइए जानते हैं उनके जीवन से जुड़ी रोचक जानकारी.
ऐसे मिली महान गणितज्ञ की उपाधि
रामानुजन बेहद गरीब परिवार के थे लेकिन गणित को लेकर उनकी दिवानगी ने इसे पढ़ाई के बीच आड़े नहीं आने दिया. वह गणित के लिए समर्पित थे लेकिन रामानुजन बाकी विषयों में काफी पीछे होते नजर आ रहे थे. कई बार ऐसा भी हुआ कि स्कूली पढ़ाई में गणित में तो बहुत अच्छे नंबर आए लेकिन बाकी विषयों का अंक बेहद कम रहा गणित की आगे की पढ़ाई के लिए वह विदेश पढ़ने जाना चाहते थे लेकिन आर्थिक तंगी के कारण यह संभव नहीं लग रहा था. इसके के लिए कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर को कई लेटर लिखे. कई चिट्ठियां लिखने के बाद आखिरकार एक दिन जवाब आया. प्रोफेसर जीएच हार्डी ने इन्हें लंदन बुलाया. हार्डी ने गणितज्ञों की योग्यता जांचने के लिए 0 से 100 अंक तक का एक पैमाना बनाया. इस परीक्षा में हार्डी ने खुद को 25 अंक दिए, महान गणितज्ञ डेविज गिल्बर्ट को 80 और रामानुजन को 100 मिले. इसलिए हार्डी ने रामानुजन को दुनिया का महान गणितज्ञ कहा.
सभी भाई बहन को हुआ चेचक
रामानुजन बचपन से ही बेहद होशियार थे, लेकिन 3 साल तक उन्होंने कुछ भी बात नहीं की थी वह बोल नहीं पाते थे जिसे लेकर उनके परिवार के लोग काफी चिंतित रहते थे लोगों ने यह तब बोल दिया था कि शायद यह बच्चा कभी बोल ही नहीं पाएगा. इस बीच परिवार में एक और बड़ी घटना हो गई, जिसमें 1889 में चेचक का प्रकोप फैला और सभी भाई-बहन की मौत हो गई. केवल रामानुजन की जिंदा बचे थे. इस समय घर वालों की मानसिक स्थिति बेहद खराब हो गई थी.
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