नई दिल्ली . समलैंगिक शादी को कानूनी मान्यता देने के मामले में आज सुप्रीम कोर्ट में एक बार फिर से सुनवाई हुई. सुनवाई के दौरान दोनों पक्षों की तरफ से कई दलीलें दी गईं. लेकिन इन दलीलों के बीच आज सुप्रीम कोर्ट और सरकार के बीच एक अहम मुद्दे पर सहमति भी बनी. दरअसल, सॉलिसीटर जनरल ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि समलैंगिक शादी को कानूनी मान्यता दिए बिना ऐसे जोड़ों को सामाजिक अधिकार देने पर सरकार जरूर विचार करेगी. इसके लिए कैबिनेट सेक्रेट्री की अध्यक्षता में कमिटी का गठन किया जाएगा.

सेम-सेक्‍स मैरिज के मामले पर केंद्र सरकार ने कहा है कि वह समलैंगिक जोड़ों को सामाजिक फायदे देने पर विचार के लिए समिति बनाएगा. सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि इस मामले में विभिन्‍न मंत्रालयों के बीच कोऑर्डिनेशन की जरूरत पड़ेगी. कैबिनेट सेक्रेटरी की अध्‍यक्षता में समिति बनाई जाएगी और वह याचिकाकर्ताओं के सुझावों पर विचार करेगी.

भारत के मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पांच-न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने कहा कि अगर समलैंगिक विवाह की अनुमति दी जाती है, तो इसके परिणामी पहलुओं को ध्यान में रखते हुए इसकी न्यायिक व्याख्या, विशेष विवाह अधिनियम, 1954 तक ही सीमित नहीं रहेगी. इसके दायरे में व्यक्तिगत कानून भी चलन में आ जाएंगे. पीठ ने कहा कि शुरू में हमारा विचार था कि इस मुद्दे पर हम पर्सनल लॉ को नहीं छूएंगे, लेकिन बिना पर्सनल लॉ में परिवर्तन किए समलैंगिक शादी को मान्यता देना आसान काम नहीं है.

इससे पहले 27 अप्रैल को SC ने केंद्र को सामाजिक लाभों पर अपनी प्रतिक्रिया के साथ 3 मई को वापस आने के लिए कहा था. सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि समलैंगिक जोड़ों को उनकी वैवाहिक स्थिति की कानूनी मान्यता के बिना क्या सामाजिक लाभ दिए जा सकते हैं. सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने सुप्रीम कोर्ट से कहा कि समलैंगिक जोड़ों की चिंताओं को दूर करने के लिए प्रशासनिक कदमों की खोज के सुझाव के बारे में केंद्र सरकार सकारात्मक है.